हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 15 अक्टूबर 2017

俳句 : हाइकु - प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

दीपक राग 

हाइकु

01. 

आरती थाल
जीवन चक्र राग
दीप आलाप


02.

 रे ! लौ संताप
सृजन का आलाप
दीपक राग ।


03. 

जलता दिया
बुलंद हैं हौंसले
तन सहमा ।


04. 

दीये जलाती
माचिस की तिलियाँ
कभी घर भी ।


05. 

दीप से मिला
प्रेम की पराकाष्ठा
जला पतंगा ।


06.

 दीप जो जला
अज्ञान का अंधेरा
भाग निकला ।


07. 

साहसी दीप
लड़े अंधकार से
पर आदमी ।


08. 

दीपक जला
पर वह तो स्वयं
तम में पला ।


09. 

बत्ती जलती
मोम सह न सका
पिघल पड़ा ।


10. 

दीप जलता
हृदय में उसके
प्रेम पलता ।


11. 

दीप निर्मम
प्रेम करने वाले
जले पतंग ।


12. 

छोटा दीपक
तिमिर हरण का
बने द्योतक ।


13. 

दीपक जला
रोशन कर चला
जग समूचा ।


14. 

अंधेरी रात
एक दीप बता दे
उसे औकात ।


15. 

राह दिखाता
हथेली में सूरज
बन के दीया ।


16. 

दीया तो नहीं
सदियों से जलते
तेल व बाती ।


17. 

राह दिखाता
जगमग करता
नन्हां सा दीया ।


18.

 दीप से दीप
मिल कर मनाते
ज्ञान उत्सव ।


19. 

ज्योत से ज्योत
जलता जला दीया
बनी मालिका ।


20.

 दीप निर्मम
मिलन के बहाने
जले पतंग ।


21. 

दीया व बाती
अंधेरे से लड़ने
बनते साथी ।


22. 

प्रीत पुरानी
दीया और बाती की
कथा कहानी ।


23.

 निशा घनेरी
पर दीपक की लौ
चीर डालती ।


24. 

दीप सम्मुख
थकी, हारी व झुकी
निविड़ निशा ।


25. 

शब्दों के दीप
सुर की बातियों से
बने संगीत ।


26. 

जलता रहा
रात भर दीपक
सिसक रहा ।


27. 

कहता दीप
आनंद है अमृत
वेदना विष ।


28. 

मोम न बनो
पिघल ही जाओगे
इस दीप से ।


29.

 जल दीपक
अज्ञानता चीरते
बुझना मत ।


30. 

बूढ़ा दीपक
रात भर जागता
दिन में सोया ।

 
31. 

पर्व मनाएँ
शुभकामनाओं के
दीप जलाएँ ।


32.

 दीप जलाएँ
तम को पी जाने का
हूनर सीखें ।


33.

 दीये तो नहीं
सदियों से जलते
घी और रुई ।

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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