हाइकु कवयित्री
आशा मेहर
हाइकु
बिटिया प्यारी
चंचल मनुहारी
करे निहाल ।
झंकृत मन
गुंजित सरगम
बूंदों की साज ।
नेह नयन
तकते सूने पथ
जगाये आस ।
सांझ की बेला
रत्नाभ रश्मि संग
मन उदास ।
धीर धरो मां
पुत्री है वरदान
बढाये मान ।
नव अंकुर
हर पल बढ़ता
बने विशाल ।
सजल आंखें
टीस भरे अंतस
निकले आह ।
नारी हो तुम
वसुन्धरा बनना
सहनशील ।
संवेदना है
ढूंढ लेती हैं राहें
नारी की आँखें ।
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