हाइकु कवयित्री
पूर्णिमा सरोज
हाइकु
सावन आओ
मिटे जग की प्यास
खुशियाँ लाओ ।
झूमे जगत
सावन झूलों संग
होके मगन ।
चुनरी हरी
पहनी वसुंधरा
हर्षित फिरी ।
सावन झूला
सब गम है भूला
ख़ुशी से डोला ।
मिटी तपिश
सावन की दस्तक
धरा हरियाई ।
सावन लाता
पीहर की स्मृतियाँ
मनभावन ।
सावन आना
थोड़ा सा रुक जाना
बाढ़ ना लाना ।
बूंदे शीतल
बरसाते बादल
झूमे भूतल ।
श्रावण मास
श्रावण मास
बरखा तरसाये
मिटा दो प्यास ।
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