हाइकु कवयित्री
डाॅ. सुरंगमा यादव
हाइकु
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वर्षा में हवा
चली बदहवास
गीला लिबास ।
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सूर्य से मिली
कई दिनों के बाद
धरती खिली ।
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हो रही साँझ
पथिक भी जल्दी में
सूर्य के संग ।
•••
आ गयी डोली
बरखा अभी तक
करे ठिठोली ।
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