हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)
卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐
बुधवार, 28 फ़रवरी 2018
शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018
~ हाइकु पुरोधा, परम आदरणीय, श्रद्धेय, स्वर्गीय डाॅ. भगवतशरण अग्रवाल जी को हाइकु श्रद्धांजलि ~
हाइकु श्रद्धांजलि
बूँद में समा
सागर और सूर्य
हवा ले उड़ी ।
मर जाऊँगा
यकीन नहीं होता
फिर क्या होगा ?
सत्य ने छला
झूठ ने छला होता
दुख न होता ।
कहानी मेरी
लिखी किसी और ने
जीनी मुझे है ।
जब भी मिले
कहना कुछ चाहा
कहा और ही ।
बोए सपने
सींचे इन्द्रधनुष
फले कैक्टस ।
उनके बिना
दीवारें हैं‚ छत है
घर कहाँ है ?
मैं था ही कहाँ ?
जन्म भर व्यर्थ ही
ढूँढ़ता रहा ।
- डाॅ. भगवतशरण अग्रवाल
* परिचय *
जन्म : २३ फरवरी १९३०‚ फतेहगंज पूर्वी‚ जिला बरेली‚ उत्तरप्रदेश।
देहावसान : 06 फरवरी 2018
शिक्षा : बी.ए. आॅनर्स (हिन्दी), एम.ए.‚ पी.एच.डी. लखनऊ विश्वविद्यालय।
कार्यक्षेत्र :
पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर –इन–चार्ज‚ गुजरात विश्वविद्यालय हिन्दी अनुस्नातक केन्द्र‚ एल.डी. आर्टस कॉलेज‚ अहमदाबाद। विजिटिंग प्रोफेसर एवं पी.एच.डी. निर्देशक‚ गुजरात विश्वविद्यालय।
सम्मानोपाधि :
साहित्य महामहोपाध्याय–हिन्दी साहित्य सम्मेलन‚ इलाहबाद, साहित्यालंकार, साहित्य शिरोमणि, महाकवि जायसी सम्मान तथा अपने कार्य के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित ।
प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियाँ :
01. शाश्वत क्षितिज (1985)
02. टुकड़े- टुकड़े आकाश (1987)
03. अकह (1994)
04. अर्घ्य (1995)
05. सबरस (1997)
06. इन्द्रधनुष (2000)
07. हूँ भी; नहीं भी (2004)
हाइकु संग्रह, काव्य संग्रह, गीत संग्रह, कहानी संग्रह, हास्य व्यंग्य शोध समीक्षा और कई संपादित ग्रंथ प्रकाशित ।
संपादन :
हिन्दी कवयित्रियों की हाइकु साधना (2002)
हाइकु काव्य विश्वकोश (विश्व में प्रथम - 2009)
संपादक : हाइकु–भारती (त्रैमासिक पत्रिका)
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~•~ श्रद्धांजलि के हाइकु ~•~
●●●●●
श्रद्धा के फूल
हे ! दिवंगत आत्मा
करें क़ुबूल ।
आँखें रो रही
आज हाइकु ज्योति
कहीं खो गयी ।
स्मृति नमन
भगवत शरण
धन्य जीवन ।
हाय खो गया
हाइकु आभूषण
ईश शरण ।
श्रद्धा सुमन
अर्पित दिवंगत
तव चरण ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
नमन तुम्हें
हाइकु के पुरोधा
शत प्रणाम ।
अर्पित तुझे
श्रद्धांजली के पुष्प
शत नमन ।
✍अनिता मंदिलवार "सपना"
उड़ा अकेला
कहाँ पहुँचा पंछी
कोई जाने ना ।
आँसू न बहा
'हा. विश्वकोश काव्य'
सदा अमर ।
✍डाॅ. सुधा गुप्ता
करूँ नमन
श्रद्धा पुष्प अर्पण
हे ! महात्मन।
काव्य-सफर
कर चले जग में
नाम अमर ।
नम नयन
करेगा हरपल
तुम्हें स्मरण ।
✍रविबाला "सुधा"ठाकुर
तुम्हें नमन
हाइकु रचयिता
करें वंदन ।
तुम्हें अर्पित
विनम्र श्रद्धांजलि
हाइकु कृति ।
✍मीनाक्षी भटनागर
अस्त हो गया
'सूर्य' सा उदित था
आभा अभी भी ।
दैदीप्यमान..
मौत के आगोश में
रो रही मौत ।
आँसू ढुलके
भगवत जी नहीं
'हाइकु' जिंदा ।
✍रति चौबे
परम पूज्य
हाइकु पितामह
तुम्हें प्रणाम ।
✍क्रांति
छोड खजाना
हाइकु के अंबार
हुआ अमर ।
✍कश्मीरीलाल चावला
शत नमन
विनम्र श्रद्धांजलि
चुप कलम ।
✍ऋतुराज दवे
पुण्य स्मरण
भगवत शरण
स्पर्श चरण ।
स्पर्श चरण
भगवत शरण
शब्द सुमन ।
मार्गदर्शन
भगवत शरण
एक दर्शन ।
छूटा पिंजरा
उड़ गया पखेरू
दे कर ज्ञान ।
छोटी सी विधा
बड़े-बड़े विचार
आप पुरोधा ।
निसर्ग कथ्य
यह आवागमन
शाश्वत सत्य ।
अहो!आकाश
एक पुण्यात्मा आई
तुम्हारे पास ।
✍अविनाश बागड़े
ॐ शांति ओम
भगवतशरण
हाइकु व्योम ।
✍गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
कोटी नमन
भगवत शरण
श्रद्धा सुमन ।
✍एन. एस. गोहिल
तुम्हें नमन
अर्पित हैं तुमको
भाव-सुमन !
✍डाॅ. मिथिलेश दीक्षित
अग्रवाल जी
सादर श्रद्धांजलि
तुम्हें नमन ।
✍मधु गुप्ता
हिवड़ै तणी
सरदाजंलि बाने
नमन घणो ।
✍गोविन्द सिंह गहलोत
आप हुए हैं
भगवत शरण
रोये हाइकु ।
✍डाॅ. आनन्द शाक्य
लय विलीन
ऐतिहासिक योद्धा
खोया कुलीन ।
✍डाॅ.आनन्द शाक्य
श्रद्धा सुमन
बहती अश्रु धारा
है समर्पित ।
✍महेन्द्र देवांगन "माटी"
यादें हैं शेष
केवल इतिहास
प्रेरणादायी ।
✍महेन्द्र देवांगन "माटी"
लेखनी ही थी
इनका भगवान
करे नमन ।
✍वृंदा पंचभाई
मील-पाहन
व्यक्तित्व व कृतित्व
हाइकु कृति ।
साहित्य गंगा
हाइकु की गैलेक्सी
सदा शरण ।
क़लम शांत
हाइकु हैं मुखर
हुए अमर ।
प्रदीप्त दीप
हाइकु विश्व कोश
आत्मा शाब्दिक ।
✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी
मन के पुष्प
विनम्र श्रद्धायुक्त
भाव अर्पित ।
देह का त्याग
जीव की महायात्रा
प्रभु की ओर ।
देह निर्मुक्त
भव बंधन मुक्त
महा प्रयाण ।
जन्म से मृत्यु
सतत काल चक्र
जीवन सत्र ।
अंतिम धाम
प्रभु पद विश्राम
मुक्ति की आस ।
✍सुशील शर्मा
साहित्य सेवी
शब्द ब्रम्ह साधक
तुम्हें प्रणाम ।
✍देवेन्द्रनारायण दास
तुम्हें अर्पित
श्रद्धा सुमन माला
आँसू की धारा ।
अस्त सितारा
अँधेरे में उजाला
करके चला ।
कर कमल
मार्गदर्शन करें
मंजिल दिखे ।
हाइकु गुरु
अश्रुपूरित श्रद्धा
हृदय बसा ।
स्वर्ग स्वागत
सत्रह स्वर्ण वर्ण
सुमन वर्षा ।
✍वीणा शर्मा
नम नयन
व्यथित अंतर्मन
विदा सज्जन ।
✍संजीव कुमार पाणिग्राही
नम हैं आँखें
भगवतशरण
नमन तुम्हें ।
हे कर्मवीर
बढ़ते चले आप
कर्म के साथ ।
शब्दसाधक
प्रेरक रहा जीवन
रहोगे याद ।
अमर आप
देश का इतिहास
रखेगा याद
सारा जीवन
साहित्य साधना का
दिया सन्देश ।
है श्रद्धांजलि
हृदय के अन्तः से
तुम्हें प्रणाम ।
बहते अश्रु
गमगीन है लोग
आओगे याद ।
सो गए सदा
चिरनिद्रा में आप
यादें ही साथ ।
✍पुरुषोत्तम होता
दुख सागर
ऐसे ही उमड़ता
नम नयन ।
अग्रवाल जी
भगवत शरण
किया वरण ।
✍प्रबोध मिश्र "हितैषी"
आत्मा अमर
सदा जीवित रहे
अंतिम सत्य ।
दिव्य लेखक
हर आखर मोती
रचे हाइकु ।
गुरू महान
रचा हाइकु जग
दिव्य है दीप ।
आखर पुष्प
हाइकु गुलदस्ता
झरे महक ।
गुरू महान
भगवत शरण
जग में नाम ।
हाइकु दीप
झरे दिव्य प्रकाश
जग रोशन ।
✍रामेश्वर बंग
देह लेकर
मृत्यु निकल पड़ा
कर्तव्य पीछे ।
✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
हाइकु फूल
हिंदी काव्य सजाये
डॉ. भगवत !
ठगनी माया
ठगे तन गठरी,
आत्मा आजाद !
हाइकु बीज
उगा हिन्दी गगन
बोये, शरण !
हिन्दी जगत
उतारे,भागवत
हाइकु गंगा !
✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"
टूटता तारा
रोता हुआ आंगन
अऩाथ हम ।
सूना हाइकु
बिखर गया मौन
शत नमन ।
✍पूनम मिश्रा
भगवतजी
हाइकु ही आपकी
वसीयत है ।
दे गए हमें
हाइकु का जखीरा
भगवतजी ।
✍संजय डागा
जन्म व मृत्यु
सहज हो स्वीकार
यही शाश्वत ।
बीच में खिले
जीवन रूपी पुष्प
गर्व की बात ।
हर तरफ
महके उपवन
कर्म- सुगंध ।
हो सुसंस्कार
मधुर व्यवहार
जीवन भर ।
बने दिवस
भगवत शरण
मोक्ष वरण ।
✍मधु सिंघी
श्रद्धा सुमन
अर्पित है आपको
करुं नमन ।
यही है सत्य
धरा से सबको जाना
आप अमर ।
दिखा जग को
अपना ये हुनर
हो गये विदा ।
प्रणाम करें
आत्मा को मिले शांति
है श्रद्धांजलि ।
✍मधु गुप्ता "महक"
मिट्टी का चोला
कभी मिट्टी ऊपर
कभी है नीचे ।
सो गया देखो
हाइकु बुनकर
अँखियाँ मीचे ।
हाइकु तांके
वे उन्मुक्त ठहाके
स्मृति से झाँके ।
टूटे पिंजरे
सुख दुख से परे
परिन्दे उड़े ।
मुक्ति की चाह
शाश्वत है क्षितिज
लक्ष्य आकाश ।
✍राकेश गुप्ता
कोश प्रणेता
भगवत शरण
शत नमन ।
हाइकुकार
मान रहे आभार
दिव्य ज्ञान का ।
देश विदेश
हाइकु का संदेश
हुआ मुखर ।
दिव्य आरती
ये हाइकु भारती
हम सबकी ।
मौन तपस्वी
आजीवन साधना
हाइकु हित ।
✍डॉ. राजीव कुमार पाण्डेय
ईश चरण
भगवत शरण
श्रद्धा अर्पण ।
हे सिद्धहस्त
स्वर्ग आसीन भव
कामना स्वस्थ्य ।
हाइकु-पाती
वो हाइकु-भारती
बनी आरती ।
हाइकु निधि
हाइकु विश्व-कोष
उत्कृष्ट कृति ।
✍गंगा पांडेय "भावुक"
श्रद्धा सुमन
अर्पित करते है
यादे है शेष ।
विलीन हुए
भगवत शरण
सूर्य रश्मि थे ।
संग्राहक थे
प्रवीण प्रणेता जो
है इतिहास ।
त्याग देह को
बसे वैकुण्ठ तुम
स्मृति है शेष ।
एकाकार हो
आत्मा से परमात्मा
हंस अकेला ।
✍डॉ. मीता अग्रवाल
मन के भाव
श्रद्धा रूपी शब्दों से
अर्पण पुष्प ।
कमी आपकी
पूर्ण ना होगी कभी
नमन करें ।
धन्य है आप
समर्पित जीवन
हाइकु हेतु ।
आप अमर
कलाम है जिन्दा
तन नश्वर ।
चिर निद्रा में
लीन है पंचतत्व
नवजीवन ।
✍स्नेहलता "स्नेह"
सृजनकर्ता
हाइकु के प्रणेता
डॉ. अग्रवाल ।
विश्व विख्यात
हाइकु विश्व कोश
प्रथम कृति ।
रूठी नियति
चिर निद्रा में लीन
महाविभूति ।
विलुप्त ज्योति
अपूरणीय क्षति
होगी न पूर्ति ।
अश्रुपूरित
देती हूँ श्रद्धांजलि
सुमनांजलि ।
✍सुधा राठौर
वर्ण-गैलेक्सी
भगवती शरण
हाइकु ऋषि ।
✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी
श्रेष्ठ हाइकु
भगवत शरण
नमः लेखनी ।
देव गमन
भगवत शरण
संताप,क्षति ।
श्रद्धा सुमन
भगवत शरण
ऊँ शांति शांति ।
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव
करे अर्पण
हाइकु परिवार
श्रद्धा सुमन ।
कर्म महान
मरकर भी करें
अमृत्व दान ।
विश्व वाटिका
चुन लाये सुंदर
हाइकु पुष्प ।
हाइकु कोश
देकर उपहार
किया प्रयाण ।
मन की पीर
झर रही नैन से
हो के अधीर ।
✍सुरंगमा यादव
नम नयन
भगवत शरण
शत नमन ।
✍आलोक "अनल" डनसेना
स्वर्ग गमन
ईश्वर से मिलन
श्रद्धा सुमन ।
✍उषा शर्मा "साहिबा"
महाप्रयाण
हाइकु के पुरोधा
शत प्रणाम ।
स्वयं अर्पण
हाइकु समर्पण
प्रभु शरण ।
खुद जला के
हाइकु की मशाल
हाथों थमाई ।
बन आदर्श
राह करी प्रशस्त
मील पत्थर ।
✍ऋतुराज दवे
डॉ. अग्रवाल
हाइकु पुरोधा थे
माला में गूँथे ।
मोती निकाले
सागर मंथन से
दिव्य पूंज ये ।
श्रद्धांजलि दी
अश्रुपूरित नमन
आभारी मन ।
✍प्रकाश कांबले
मिट्टी से बना
मूर्ति गढ़ता रहा
मिट्टी में मिला ।
सरल भोले
लिखते रहे काव्य
अल्प शब्दों में ।
गूढ़ अर्थों में
सारगर्भित भाव
मन उजास ।
अश्रुपूरित
अर्पित श्रद्धा पुष्प
आदर संग ।
✍उषा शर्मा "साहिबा"
रहे अमर
भगवत शरण
हाइकुकार ।
✍तोषण कुमार चुरेन्द्र
पुष्प अर्पण
हाइकु के आचार्य
करूँ वंदन ।
✍सविता बरई
है अमानत
हाइकु ज्ञान माला
गुंथी आपने ।
गूंजा आपसे
हाइकु का संगीत
मधुर राग ।
संगीत ध्वनि
अनंत में विलीन
देव शरण ।
श्रद्धा सुमन
करती हूँ अर्पण
मेरा नमन ।
✍नीलम शुक्ला
हाइकु दीप
दमकता सितारा
ज्यों छिप गया ।
श्रद्धा पथ से
अटल बिदाई ले
सुदूर चले ।
आलोकित हैं
राहें भगवत की
निर्वाण पथ ।
जन्म निर्वाण
अविजित नियति
करें प्रणाम ।
✍हेमलता मिश्र
------------------000------------------
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बिना अनुमति से कोई अंश प्रकाशित न करें ।
- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
संपादक : हाइकु मञ्जूषा
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