हाइकु कवयित्री
धनेश्वरी देवांगन "धरा"
हाइकु
[1]
जीवन रेखा
अनबुझ पहेली
कर्म साधना ।
[ 2 ]
ममतामयी
जग में माँ का रूप
स्नेही आँचल ।
[ 3 ]
ओस के मोती
जीवन के सदृश
क्षण भंगुर ।
[ 4 ]
सत्य का दीप
रोशन चहूँ ओर
चित्त की जीत ।
[ 5 ]
श्रमिक व्यथा
भूख गरीबी साथ
कर्मठ हाथ ।
[ 6 ]
गौरैया बैठी
छत के मुंडेर पे
बरसों बीते ।
[ 7 ]
मार्गदर्शक
बना अनुरक्षक
सच्चा शिक्षक ।
[ 8 ]
देश की रक्षा
भारत का सपूत
कर्तव्यनिष्ठ ।
[ 9 ]
जल की बूँदें
संरक्षण कर्त्तव्य
न बहे व्यर्थ ।
[ 10 ]
मेह का नेह
बूँदों की रिमझिम
हर्षित धरा ।
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