हाइकु कवयित्री
शशि मित्तल "अमर"
हाइकु
मौन है खड़ा
दरख़्त अकेला सा
है मर्माहत ।
मानव मौन
घटते संसाधन
सुबकी धरा ।
छवि धूमिल
विज्ञापन में नारी
मान मर्दन ।
टूटे सपने
आदर्शों पे आघात
पुन:संघर्ष ।
माँ पूर्ण शब्द
यह तो मंत्र बीज
अतुलनीय ।
सजे सपने
इंद्रधनुषी रंग
मन निर्मल ।
धागों से बुने
पारिवारिक रिश्ते
मुठ्ठी में कैद ।
मन में शांति
झुकने का हुनर
मिलता मान ।
धरा उर्वरा
चूनर सतरंगी
छटा सुहानी ।
तम भगाएं
आओ दीया जलाएं
मैं और तुम ।
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