हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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सोमवार, 5 अगस्त 2019

हाइकु कवयित्री शशि मित्तल "अमर" जी के हाइकु


हाइकु कवयित्री 

शशि मित्तल "अमर"

हाइकु


मौन है खड़ा
दरख़्त अकेला सा
है मर्माहत ।

मानव मौन
घटते संसाधन
सुबकी धरा ।

छवि धूमिल
विज्ञापन में नारी
मान मर्दन ।

टूटे सपने
आदर्शों पे आघात
पुन:संघर्ष ।

माँ पूर्ण शब्द 
यह तो मंत्र बीज
अतुलनीय ।

सजे सपने
इंद्रधनुषी रंग
मन निर्मल ।

धागों से बुने
पारिवारिक रिश्ते
मुठ्ठी में कैद ।

मन में शांति
झुकने का हुनर
मिलता मान ।

धरा उर्वरा
चूनर सतरंगी
छटा सुहानी ।

तम भगाएं
आओ दीया जलाएं
मैं और तुम ।

□ शशि मित्तल "अमर"

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