पूनम आनंद
हाइकु
रक्षाबंधन
आशीर्वाद दोनों पा
जी गया रिश्ता ।
बंधे मन से
भेदभाव से दूर
हो कर एक ।
रिश्तो के तार
खून से उठकर
अपने होते ।
प्रेम बगिया
बिना धूप पानी के
खिल उठती।
सावन झूमा
सजनी रूठी बैठी
पाती न आई ।
बौराए मन
कजरी नही गाए
मन उदास ।
नाचे मयुरी
सावन है संगिनी
भीग के झूमो ।
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