हाइकु कवयित्री
मधु सिंघी
हाइकु
शब्द विराम
मौन क्षमतावान
हो जाते काम ।
काल है गति
चलना संयमित
सही हो मति ।
सुख के लम्हे
आते सबके साथ
बिना दस्तक ।
सुस्ताई हुई
पत्तों की आगोश में
ओस की बूँदें ।
आपदा झेल
काँटों के संग खेल
जैसे गुलाब ।
अनवरत
अहंकार जागृत
करे भ्रमित ।
कड़वा सच
उतरे नहीं गले
रिश्ता ना चले ।
रवि कमाल
घर-घर जाकर
पूछता हाल ।
ताल दे मेघ
बिजली करे नृत्य
सावनी-गीत ।
हों नेक कर्म
बचे मानव धर्म
जीवन मर्म ।
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