हाइकुकार
सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"
हाइकु
सूरज डरे
काेहरे के भय से
कैसे उतरे।
दूध नहाई
तारों की चुनरी ले
चाँदनी आई।
चाँदनी छाई
रूप की रानी बन
वह लजाई।
चाँदनी छाई
पर्वतों की चाेटी पे
वो मुस्कुराई ।
गीता का सार
धर्म, कर्म, मर्म का
ज्ञान-भण्डार।
धूप व छाँव
जीवन के रूप हैं
मन के गाँव।
मन का सूप
फटके जीवन की
छाँव व धूप।
तन का पंछी
उड़ेगा एक दिन
वक्त काे गिन।
वन कटते
हरियाली मिटती
घन छँटते।
वृक्षारोपण
धरा का है श्रृंगार
सजा संसार।
जल-जंगल
धरा को सँवारते
करें मंगल ।
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