हाइकुकार
प्रवीण कुमार दाश
हाइकु
खिले कमल
विहँसे हंस दल
ताल सुंदर ।
उदार सिंधु
नदियों को करता
मनः स्वागत ।
धरा की कोख
बीज बोता किसान
फल संतान ।
वट के वृक्ष
पंछी चहचहाते
पत्ते नाचते ।
अनब्याही है
रोज फेरा लगाती
पृथ्वी सूर्य का ।
नदी बहती
धरा खुश हो रही
पीड़ा निकली ।
खग चातक
स्वाति बूंद की आस
निहारे नभ ।
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