हाइकुकार
निमाई प्रधान "क्षितिज"
हाइकु
[1]
मेरा एकांत
सहचर-सर्जक
उर्वर प्रांत ।
[2]
दूर दिनांत
तरु-तल-पसरा
मृदु एकांत ।
[3]
वो एकांतघ्न
वातायन-भ्रमर
न रहे शांत ।
[4]
दिव्य-उजास
शतदल कमल
एकांतवास ।
[5]
एकांत सखा
जागृत कुंडलिनी
प्रसृत विभा ।
[6]
हे रघुवीर !
मन के रावण का
करो संहार ।
[7]
सदियाँ बीतीं
वहीं की वहीं टिकीं
विद्रूपताएँ ।
[8]
वक़्त की मांग
हो कृषक-विमर्श
लीक को लांघ ।
[9]
दुःखी किसान
सूखे खेत हैं सारे
चिंता-वितान ।
[10]
जय किसान
न करो अनदेखा
काला विहान ।
[11]
कृषक रुष्ट
बचा आख़िरी रास्ता
क्रांति का रुख़ ।
[12]
प्रकृति-मित्र
सब भूले तुमको
बड़ा विचित्र ।
[13]
है अन्नदाता
वह है जगदीश
वही विधाता ।
[14]
बंजर भूमि
फसल कहाँ से हो ?
हारा है वह ।
[15]
आँखों में ख्व़ाब
फसल पक रहे
ब्याज तेज़ाब!!
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