हाइकुकार
आर्विली आशेन्द्र लूका
हाइकु
टूटे सपने
रूठे सब अपने
मनाऊं कैसे ।
प्यार के बोल
कंठ से जो निकले
दूर शिकवे ।
तिरंगा प्यारा
जब से लहराया
दुश्मन हारा ।
कटते वन
न खेलें प्रकृति से
बचायें वृक्ष ।
पिता का हाथ
सिर पर जिसके
करता नाज़ ।
आग उगला
सूरज का ये गोला
तपती धरा ।
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