हाइकुकार
डॉ. विष्णु शास्त्री "सरल"
हाइकु
निर्मलतम
धरा और आकाश
कार्तिक मास ।
संक्रांति काल
ऋतु-मौसम नया
बदली चाल ।
अति पावन
हँसमुख सुबह
मनभावन ।
सुखद स्पर्श
पुलकित करता
ताप हरता ।
दिव्य दर्शन
देता हिमनिधान
चिर महान ।
मंगल गीत
गाते हैं दिग दिगंत
बढ़ती प्रीत ।
शीतल वायु
फेरी देने लगी है
धूप अल्पायु ।
टिमटिमाते
सांध्यवेला में तारे
दिखते न्यारे ।
त्यौहार आया
झिलमिलाते दीप
खुशियाँ लाया ।
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