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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

SEDOKA 旋頭歌 सेदोका (भोर, पंछी, सूरज)

SEDOKA  旋頭歌   सेदोका 

सेदोका रचना : 12-नवम्बर 2019

वर्ण क्रम  - 05/07/07/-05/07/07

विषय - भोर, पंछी, सूरज
उत्कृष्ट रचनाएँ


01.

हुई सुभोर

पंछी के कलरव

सुनता अग-जग 

मधु चषक

पी कर मदमस्त 

प्रसन्न मधुकर ।

     --00--


□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


02.

बीती रजनी

सुंदर भोर हुई

सूर्य रश्मियां फैली

सुमन खिले

नवजीवन हुआ

धरा आँचल खिला ।

--00--


□ मनीष श्रीवास्तव


03.

खग उड़ते

देख रवि रश्मि को 

करते कलरव

हर्ष विभोर 

सरिता का जलज

देख अपना साया।

--00--


□ मनोरमा जैन पाखी


04.

हुआ अँजोर

रक्तवर्णी गगन

सृष्टि हुई मगन

अनोखी भोर 

खिल उठे सुमन

पूर्ण हुआ शयन ।

--00--


05.

पंछी चहके

सुबह की किरणें

जब लगीं जगाने

हवा बहके

फूलों को महकाये

धीरे से सहलाये ।

--00--


06.

प्राची का लाल

कर रहा कमाल

बाँट रहा प्रकाश

नहीं थकान

खिला रहा मुस्कान

धरा को देता प्राण ।

--00--


□ डॉ. रंजना वर्मा


07.

भोर के पंछी

सुबह का सूरज

आते है साथ साथ

गीत सुनाते

उजाला है फैलाते

हमको हाथों हाथ ।

--00--


□ अविनाश बागड़े


08.

भोर का शोर

मधुर कलरव 

सुनो मधुर स्वर

बनो उत्साही 

योग अनुसरण

उद्यान विचरण ।

--00--


□ मधु सिंघी


09.

पंख पसार 

सूर्य रश्मि सवार 

उतर आई भोर

नव उत्कर्ष 

अचला  शगुनियाँ 

चहकी  बस्तियाँ ।

--00--


□ चंचला इंचुलकर सोनी 


10.

भोर का तारा 

शोभे उषा के भाल

बिछाये करजाल

ग्राम-सर में 

खिलते नीलोत्पल 

मनोहर कोमल  !

--00--


11.

छोटी चिड़िया 

चिंचियाये बहुत 

सूने घर के प्राण 

निशब्द गान

दाने-तिनके धरे 

मौन में स्वर भरे !

--00--


□ निमाई प्रधान 'क्षितिज'


12.

भोर की लाली

पक्षी चहके डाली

पवन मतवाली

ब्रह्म मुहूर्त

योगी करता योग

भोग में मस्त भोगी ।

--00--


□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"


13.

सूरज आया

पीताभ परिधान

सुर्ख़ लाल पगड़ी

स्वर्णिम आभा

जगमग वितान

दिवस गतिमान ।

--00--


14.

विहान पथ

किरणों के पखेरू

भर रहे उड़ान

तम निरस्त

बाँट रहे उजास

गर्म-गर्म लिबास ।

--00--


15.

ओस में भीगी

भोर है सकुचाई

प्राची के पथ आई

गर्म दुशाला

बाँट रही है धूप 

दिवस अनुरूप ।

--00--


□ सुधा राठौर


16.

उगता सूर्य

नभ हुआ गेरूआ

आ गया पहरुआ

कौव्वे की कांव

मंदिर में आरती

जागा समूचा गांव ।

--00--


□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"


17.

ठंडी सुबह

शीतल मंद हवा

टहलते मानव

व्यायाम करें

करते मंत्रोच्चार

दिव्यता का आभास ।

--00--


□ ललित कर्मा


18.

प्राची क्षितिज

प्रस्फुटित किरणें

रक्तिम भोर रवि

मुदित मन

प्रफुल्लित जीवन

गुंजित पंक्षी नाद ।

--00--


□  मनीष श्रीवास्तव 


19.

प्रातः की ओस

भीग गई गुलाब

शरमाई सी खड़ी

सूर्य किरण 

चूमकर ले गई 

ओस की बूंदें साथ ।

--00--


□ रूबी दास


20.

सूरज दादा

तेरे रूप अनेक

कभी लाल या पीला

आने से तेरे

हो ऊर्जा का संचार

माने सारा संसार ।

--00--


21.

भोर की बेला

अरुण की लालिमा

सुनहरी किरणें

देती संदेशा

जीवन पथ पर

अग्रसर होने का ।

--00-- 


22.

संध्या हो आई

पंछी उड़े घर को

किया रैन-बसेरा

सुबह हुई

उड़े दाना चुगने

पेट का है सवाल ।

--00--


□ सुषमा अग्रवाल 


23.

सूर्य आहट

जागे सारे परिंदे

चहके देखो पंछी

मधुर गान

 जगाते सुनाकर

आनंदित है सूर्य ।

--00--


□ डॉ कृष्णा श्रीवास्तव 


24.

गतिमान है

लालिमा रंग लिए

अद्भुत भोर रुप

मन रिझाये

ईश्वरीय चेतना 

संदेश नश्वरता ।

--00--


25.

विहंग छेड़े

उन्मुक्त मीठी तान

चकित सा विहान

स्व पर रीझे

कैसी रचना है ये

किससे सीखे गुर ।

--00--


26.

सूरज देव

जागृति के वाहक

तेजस आस्थामय 

अनोखा रूप

कुदृष्टि जो डालता

वहीं भस्म हो जाता ।

--00--


□ निर्मला सुरेन्द्रन


27.

ऊर्जा ले कर

आया हमें जगाने

प्रकृति का देवता

हम भी कुछ

रचनात्मक कार्य

कर के दिखलाएँ ।

--00--


□ ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"


28.

केशर फैला

प्रकृति की रंगोली

मनमोहक दृश्य

सिंदूरी बिंदी

भाल पर शोभित

सुहागन धरती ।

--00--


□ ललित कर्मा


29.

सूर्य का रूप

अरुणिम अनूप

खिलने लगी धूप

रवि पथिक

नित्य कर्म में लीन

समय के अधीन ।

--00--


30.

सूर्य वंदन

ईश्वर का स्मरण

आस्थाओं का चिंतन

उगा है दिन

शुभ कर्म मनन

मन-तम हरण ।

--00--


31.

सूर्य अबोला

लेके धूप का झोला

चल पड़ा अकेला

रवि की चेरी

किरणों ने बिखेरी

उजास सुनहरी ।

--00--


32.

विहग गान

है स्वच्छंद उड़ान

पिंजरा व्यवधान

खुला वितान

परवाज़ की शान

छूना है आसमान ।

--00--


□ सुधा राठौर


33.

मेरी प्रगति 

ताने बाने बुनती

रवि तेरे कारण

कसम मेरी

तुम बिन मै नही

जीवन देती तुम ।

--00--


34.

मै होती पंछी

वन वन घुमती

लय मे गीत गाती

खुला आकाश

संग साथ घुमती 

आसमां मेरा होता ।

--00--


35.

भोर ने झाँका 

लालिमा भी संग थी

सुहागन सी लगी

भोर का स्पर्श

श्रृंगार कर गई

बगिया झूम गई ।

--00--


□ रूबी दास


36.

तम भगाता

जीवन को जगाता

चेतना है फैलाता

कुछ ना होता

जो सूरज ना होता

तभी देव कहाता ।

--00--


37.

हुआ सवेरा

पंछी चहचहाए

गीत गूँजे मधुर

जग हर्षाया

देखो ईश की माया

सब में है समाया ।

--00--


□ सुषमा अग्रवाल 


38.


भोर होते ही

पंछी चहचहाते

सूरज निकलता

सबक देता

उठो आगे निकलो

मंजिल को तराशो ।

--00--


□ जाविद अली


39. 

भोर सुहानी

लोहित है गगन

उडे़ पंछी मगन

उमड़ा हर्ष

सूरज का वंदन

भोर अभिनंदन ।

--00--


□ राधेश्याम शर्मा 


40.

धवल रवि 

नभ बिखरे स्वर्ण 

हो कर  पीताम्बरी 

मगन पक्षी 

कलरव की ध्वनि 

परिवेश स्नेहिल ।

--00--


□ सुशीला जोशी


41.

पिंजरबद्ध

पखेरू अकुलाये

बंधन न सुहाये

एकाकी मन

गुमसुम औ खिन्न

भूला चहचहाना ।

--00--


42.

भोर सुहानी

जीवन की रवानी

लिखे नई कहानी

नया अध्याय

नियमित स्वाध्याय

स्वास्थ्य संग न्याय ।

--00--


□ सुधा राठौर


43.

नील दिगंत

फूल अग्नि अनंत

पवन बहे मंद

उषा बालिका

लिये रश्मि मालिका

आयी धरा अंगना ।

--00--


□ देवयानी 


44.

सुबह हुई

जागा नीड़ का पंछी

आलस्य को दे त्याग

उड़ा उन्मुक्त

ऊंचे नील गगन 

लौटा फिर से शाम ।

--00--


□ संजय डागा


45.

भोर की कली

कुछ अलसायी सी

ओस में नहाई सी

दुल्हन बनी

सूरज की उजास

भोर किरण पास ।

--00--


46.

मासूम चूजे

करते इंतज़ार

घोसलों में बैठे हैं

गोधूलि साँझ

चोंच में दाबे अन्न

पंछी चले नीड़ में ।

--00--


47.

सूरज मामा

सुबह सुबह क्यों

हमको जगाते हो

शाम ढले ही

पहाड़ियों के पीछे

तुम छुप जाते हो ।

--00--


□ डॉ. सुशील शर्मा


48.

छोड़ते शाख

उम्रदराज पात

कुटुंब को आघात

दिया संदेशा

जीवन न हमेशा

रहिये साथ-साथ ।

--00--


□ ललित कर्मा


49.

उदित रवि

दीप्तमान दिशाएं

चहुं ओर लालिमा

हृदय भरें

परहित संकल्प

सूरज बनकर ।

--00--


50.

पंख पसारें

गगन को निहारें

ऊंची उड़ान भरें

करते गान

नीड़ से व्योम तक

पंछी श्वास भरते ।

--00--


51.

भोर सुभोर

मंद मुस्काती धरा

आंचल समेटती

रवि किरणें

यत्र तत्र सर्वत्र

पुलके कण कण ।

--00--


□ शर्मिला चौहान


52.

लहरा कर

सिंदुरिया दामन

वसुंघरा प्रांगण

भोर महकी

खिला स्नेह सुमन

जन के मधुबन ।

--00--


53.

गुनगुनाते

मदमस्त है पंछी

वसुधा की आगोश

नीलगगन

स्वछंद सी उड़ान

हौसला ही महान ।

--00--


54.

अमृत तुल्य

सूरज की रश्मियाँ

ऊर्जा की झपकियां

संग में लाती

चल कर्तव्य पथ

ये संदेश बाँटती ।

--00--


55.

नित नवीन

संस्कृति की जमीन

भोर बाला सजाती

नई जागृति

जैसे जीवन ज्योति

कर्म मोती सौगात ।

--00--


56.

गोधूलि बेला

सिमटाया रवि ने

बेशकीमती न्यारा

ऊर्जा का थैला

दूर क्षितिज पार

ध्यान साधना द्वार ।

--00--


57.

चुन तिनका

आशियाना सजाते

संघर्ष ही मंजिल

सीख सुहानी

खुशियों की कहानी

कहती पंछी रानी ।

--00--


□ नीलम शुक्ला


58.

कजली कोर

सरक रही भोर

सूरज का अँजोर

तंद्रा को छोड़

चहकते अथोर

पंछी भाव विभोर ।

--00--


59.

सोने का जाल

चतुर आखेटक

बिन धनुष बाण

घायल पंछी

असफल उड़ान

पिंजरबद्ध प्राण  ।

--00--


60.

मन का पंछी

चिंतन का पिंजरा

सूरज का आभास

नवल आस

ज्योतिर्मयी सी भोर

उड़े नभ की ओर ।

--00--


□ नवल किशोर सिंह


61.

उजली भोर

अंधकार को कहीं 

मिल न रहा ठौर

रजनी भर

करके मनमानी 

लो भागा अभिमानी ।

--00--


62.

पक्षी मिल के

करते कलरव 

कहते राम-राम

आरम्भ करो

अब अपने काम

छोड़ कर विश्राम  ।

--00--


63.

सूर्य समर्थ

धरा को पहनाया

स्वर्णिम परिधान 

सुमन जड़ा

सुरभित आँचल 

जग में कौतूहल ।

--00--


64.

अलसायी-सी

उठी आँखें मलते

अंगड़ाई लेकर

भोर में कली

ओस से मुख धो के

खिलखिलाने लगी ।

--00--


□ सुरंगमा यादव


65.

रक्तिम आभा

सूरज का प्रवेश

विभावरी भी शेष

निद्रा को तोड़

हो मंगलाचरण

जीवन जागरण ।

--00--


66.

भोर की लाली

धरा पे बिखराई

भागी रजनी काली

धूप जो खिली

नयन अलसाई

तंद्रा ली अंगड़ाई ।

--00--


□ पूर्णिमा साह


67.

भोर की बेला

शहर अलबेला

पंछियों का है मेला।

एक समान

आरती व अज़ान

मानव क्यों नादान ।

--00--


68.

भोर तो होगी

अँधेरा घनघोर

असत्य चहुँओर

होगा प्रकाश

अप्रतिम सेदोका

समय बना साक्षी ।

--00--


69.

पंछी की बोली

सरगम-सी लगे

फिर से उड़ चले

पिंजरा तोड़

मंदिर पे बैठते

मस्ज़िद पे बैठते ।

--00--


70.

मन पंछी-सा

चाहता है उड़ना

दूर नभ में कहीं

बंधन तोड़

दोहरी संस्कृति के

अमानवीयता के ।

--00--


71.

सूरज आता

नव-संदेश लाता

पीड़ा को हर लेता

सूरज भाता

जीना हमें सिखाता

है ब्रह्माण्ड का केन्द्र ।

--00--


72.

सूर्य का तेज

जीवन संचारित

उर-अंग उमंग

खिले सुमन

सूर्य आराध्य देव

सृष्टि के वरदान ।

--00--


□ अयाज़ ख़ान


73.

तिमिर चीर

आई स्वरा सुभोर

ज्यों ज्योतिर्मय हास

पंछी उड़ान

चहचहाहट साथ

दिग्-दिगंत उजास ! 

 --00--


74.

स्वर्ण भंडार 

भास्कर लाए भोर

गूंँजे जीवन शोर

सुरीला साज़

कल-कल निनाद

चहकता आल्हाद !

--00--


□ हेमलता मिश्र "मानवी"


75.

व्योम में सूर्य

रक्ताभ गगन है

उड़ान है भरता

खग अनूप

जीवन का संदेश

चलना जीवन है ।

--00--


□ डॉ. रेखा जैन


76.

भोर का काल 

अँधेरा  गया भाग 

खिलखिलाया बाग 

चहकी धरा 

पंछी गा रहे गान  

शिक्षा कर्म प्रधान ।

--00--


77.

उतरी रश्मि 

रवि का हाथ थामे 

भोर के प्रांगण में 

महकी धरा 

प्राणों में भरा ओज 

खिल उठा सरोज ।

--00--


□ ऋतुराज दवे


78.

भोर सुहानी

बीती रैना कहानी

महकी रात रानी

खिली चमेली

सुगंध अलबेली

ना कर अटखेली ।

--00--


□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"


79.

सुहानी भोर

जा रहे हैं किसान

धान खेत की ओर

कर्तव्य पथ

दाने की तलाश में

घूम रही पक्षियां ।

--00--


□ क्रान्ति


80.

अरुणोदय 

शरद का प्रभात 

सुनहरी है आभा

सुधा बरसे 

हौले से हवा बहे 

चिड़ियां भी चहके ।

--00--


□ अरूणा साहू


81.

मन का द्वार

सूरज की किरणें

टटोलती ही रही

सुख लेकर

दुख की घटा आई

सीधे घर में घुसी ।

--00--


82.

धूप गठरी

आंगन में बिखरी,

सूरज लेके आया

शीत ऋतु में

रानी बन जाती है

गर्मी में झुलसाती ।

--00--


83.

दिवस भर

बांटी न सूरज ने

धुली-धुली किरणें

दिन जो डूबा

बिखरी नभ पर

सुनहरी किरणें ।

--00--


84.

सृष्टि सौन्दर्य

चिर प्रकृति हास

अनुपम अनूठी

भोर किरणें

गिरि आंचल शांत

हर्षित वसुंधरा ।

--00--


□ देवेन्द्र नारायण दास


85.

उगता रवि

किरण की लालिमा

गुनगुनाती धूप

प्रकाश डाले

तन मन सुहाती 

पक्षी खिलखिलाती ।

--00--


86.

बिखरी छटा

नयी सी तंरगिणी

कलकल बहती 

भोर का सूर्य

चिड़ियाँ चहकतीं

आसमान को छूतीं ।

--00--


□ सुशीला साहू "शीला"


87.

आज की भोर

धन्य प्रकाश पर्व

नानक वाणी सर्व

अमृत बेला

वाहे गुरू की जय

कीजिए दान पुण्य 

--00--


88.

उड़ते पंछी

ढूँढते हैं घरौंदा

तिनके को जोड़ते

हैं पुलकित

नभ छूने की आस

छोड़ते न प्रयास ।

--00--


89.

कार्तिक पूनी

कर स्नान व ध्यान

सूरज को प्रणाम

मन की शांति

आध्यात्मिक संज्ञान

भानु देव का भान ।

--00--


□ मधु गुप्ता "महक"


90.

लो भोर हुई 

हर्ष और उल्लास

ले कर रवि आया

भरी उमंगें 

लिए एक उम्मीद 

दिल में नई आशा ।

--00--

□ सुजाता मिश्रा


91.

सूरज आया

सबके मन भाया

धूप सुहानी लाया

बिस्तर छोड़ो

ले लो जी अंगड़ाई

ऋतु मन को भाई ।

--00--


92.

भोर का स्पर्श

बांग मुर्गा दे रहा

पक्षियों की चहक

संग लालिमा

फूलों का महकना

दिल का मचलना ।

--00--


93.

मूक है जुबां

पिंजरा घर नहीं

खुला आसमां दे दो

ना कैद करो

मत छीनो आजादी

उन्मुक्त उड़ने दो ।

--00--


□ शशि मित्तल "अमर"


94.

प्रकाश पर्व

सूरज की किरणें

हो त्वरित उदय 

फैला उजाला

अंधकार मिटता 

घटती शीतलता ।

--00--


95.

पंछी चहके

वो पंख फैलाकर 

उड़ान को भरने

आसमान छू

कोलाहल से दूर

देखते सीखें जरुर।

--00--


□ सुशीला साहू "शीला"


96.

निकल पड़ा

पंछियों का समूह

करते कलरव

स्वछंद नभ

हौसलों की उड़ान

दाने पानी की आस ।

--00--


□ कु. गीतांजली सुपकार


97.

रैन बसेरा

छोड़ उगा सूरज 

जगमगाई धरा

भोर के तारे

होने लगे ओझल

खग वृन्द मुस्काया ।

--00--


□ रंजन कुमार सोनी


98.

खग हर्षित

रवि आहट आई

हुई भोर सुहानी

खिली वसुधा

पवन देव संग

रक्तिम अरुणाई ।

--00--


□ रंजन कुमार सोनी


99.

पंछी सिखाते

हौसले से उड़ना

ऊंचाइयों को छूना

प्रेम की भाषा

आशा और विश्वास

निरन्तर प्रयास ।

--00--


100.

सूर्य नमन

प्रातः करते हम

योग प्राणायाम से

निरोगी काया

सुखमय जीवन

स्वस्थ हो तन-मन ।

--00--


□ पुष्पा सिंह "प्रेरणा"


101.

पंछी चहके

उन्मुक्त गगन में 

कलरव गुंजाते 

पंख पसारे 

हौसला रख उड़े 

आसमान नापते ।

--00--


102.

सूरज दादा

रवि किरणों संग 

संपूर्ण धरा पर

लाली फैलाता 

जगति जीवन में 

इक आस जगाता ।

--00--


103.

सुहानी भोर 

अंगड़ाई लेकर

मंद पवन संग

जागे जीवन 

शीतल बयार ले

नाचे मन मयूर ।

--00--


□ वृंदा पंचभाई


104.

भोर का तारा

आकाश में चमके

नित सांझ  सबेरे

ठंडी बयार

तृण पोर चमके

रवि रश्मियों से ।

--00--


□ वृंदा पंचभाई


105.

उगता सूर्य

सागर की लहरे

पंछियों की उड़ान

सुंदर दृश्य

काव्य चित्रण करूँ 

मन के भाव भरूँ ।

--00


106.

स्वर्णिम रथ

सप्तरंग भास्कर

फैलाये उजियारा

सूर्य उदित

भोर की है आहट

जागो नया सबेरा ।

--00--


□ स्वाति गुप्ता "नीरव"


107.

भोर सुहानी

जागती गृहणियाँ

नई स्फूर्ति के साथ

आलस्य त्याग

काम में जुट जातीं

घर स्वर्ग बनातीं ।

--00--


□ पुष्पा सिंह "प्रेरणा"


108.

पक्षी व सूर्य

निःस्वार्थ कर्म वीर

सेवा भाव जगाते

दरियादिल

सम भाव संदेश

अलसुबह लाते ।

--00--


□ रंजन कुमार सोनी


109.

घने जंगल

हरे भरे पेड़ों का

पंछी का संसार है

चहक उठी

सूरज की किरणों

वसुधा के आंचल ।

--00--


□ देवेन्द्र नारायण दास


110.

प्रातः की सैर

भोर किरण संग

स्वस्थ तन मन

नव संचार

दिखता सब ओर

भागमभाग दौर ।

--00--


□ मंजू सरावगी "मंजरी"


111.

भौंरे गाते हैं

पंछी तान सुनाते

फूलों को संग लिए

वासंती मन

फिर से झूम उठा

प्रकृति नाच उठी ।


□ देवेन्द्र नारायण दास


112.

पंछी कुल का

कलरव गुंजन

वसुधा के आंचल

बिछी हुई है

दूबों की हरियाली

जाल रश्मि से मही ।

--00--


□ देवेन्द्र नारायण दास


113.

गीत प्रभाती

पंछी कुल गा रहे

दिवस देवता के

सुस्वागत में

वसुधा के आंगन

पवन छंद लिखे ।

--00--


□ देवेन्द्र नारायण दास


114.

भोर सुहानी

शुभ्र आंचल फैला

स्वर्णसुधा भूतल

दिग्-दिगन्त

प्रकृति सुन्दरी भी

झूम उठा ब्रहाण्ड ।

--00--


□ देवेन्द्र नारायण दास


115.

पंछी जीवन

तिनका चुनकर

आशियाना बनाते

हौसला देते

नन्हे परिंदों को ये

उड़ना सिखलाते ।

--00--


116.

रवि भास्कर

जीने की सीख देता

आकाश हो निर्मल 

देख मंडली

महके चितवन

निखरे बालपन ।

--00--


□ सुशीला साहू "शीला"


117.

भोर का तारा

आकाश में चमके

नित सांझ  सबेरे

ठंडी बयार

तृण पोर चमके

रवि रश्मियों से ।


□ वृंदा पंचभाई


118.

उगता सूर्य

सागर की लहरे

पंछियों की उड़ान

सुंदर दृश्य

काव्य चित्रण करूँ 

मन के भाव भरूँ ।

--00


□ स्वाति गुप्ता "नीरव"


119.

घर आंगन

पंछी जैसा बसेरा

बेटियों का मायका

रह जाते है

भूली बिसरी याद

डबडबाते नैन ।

--00--


□ मंजू सरावगी मंजरी


120.

साँझ प्रहर

पंछी नीड़ की ओर

मद्धिम कलरव 

निशा की गोद

नींद के आगोश में

पंछियों का विश्राम ।

--00--


121.

रोज सबेरे

सूरज निकलता

दिन की आभा लाता

पुष्प खिलते

खुशियां बिखेरते

मुस्काती वसुंधरा ।

--00--


□ मनीष श्रीवास्तव


122.

मन का पंछी

उड़ा नील गगन

होके मस्त मलंग

तोड़ बंधन

तूफान का न डर

खुशी मिली अनंत ।

--00--


123.

चाहत पंछी

तोड़कर बंधन

राह उन्मुक्त नभ

काटो न पंख

निंबोली ही भली

पिंजरा डरावनी ।

--00--


124.

धूप ना खिली

धरती मुरझाई

मेघों का आवरण

ढका गगन

पराक्रमी सूरज

बादल हुआ पस्त ।

--00--


125.

सूरज ज्ञान

समय का पाबंद

सीख अनुसासन

जग समक्ष

श्रेष्ठ अनुपालक

कर्म ही है महान ।

--00--


□ पूर्णिमा साह

126.

हुआ बिहान

कर लें स्तुतिगान

ईश्वर है महान

धन्यवाद दें

नए दिन के लिए

आज दिखाया हमें ।

--00--

127.

उड़ता पंछी

सीख हमें है देता

ऊंचाइयों को छूना

वापस आता

घरौंदे में अपने

धरती है अपनी ।

--00--

128.

प्रेरणा स्रोत

सूरज से मिलता

नई स्फूर्ति दिलाता

सीख ये देता

प्रकाशित रहना

जीवन में अपने ।

--00--

□ ए.ए.लूका

129.

भोर सुहानी

पंछी करें गुँजन

धरती अलंकृत

अद्भुत बेला

मीठी स्वर्णिम धूप

रवि रथ निकला ।

--00--

□ धनेश्वरी देवांगन "धरा"

130.

सूरज उगा

फैली स्वर्णिम धूप

खिला धरा का रूप

पंछी चहके

दिन हुआ उजास

लाया जीने की आस ।

--00--

□ मंजूषा मन

131.

उगा सूरज 

अंधेरे से संघर्ष 

करता दिन रात

करे उजाला 

बिना भेदभाव के 

सदा समभाव से ।

--00--

□ सुनील गुप्ता

132.

विधि-विधान

ब्रह्माण्ड में रखता

सूर्य प्रमुख स्थान

सूर्य उदय

सूर्यनमस्कार से

रोगमुक्त इंसान ।

--00--

133.

सूर्य-प्रकाश

जीव कर अर्जित

ऊष्मित व ऊर्जित

सूर्यास्त साथ

असक्त होते हाथ

इंतजार प्रभात ।

--00--

134.

पुष्प पुष्पित

परिंदे प्रफुल्लित

हवाएं तरंगित

सूर्य प्रभाव

विलुप्त अन्धकार

सुखमय संसार ।

--00--

135.

सूखी दरिया

सूरज से प्रार्थना

ज़िन्दगी की याचना

सूर्य प्रताप

वाष्प-उत्सर्जन से

मिटा जीव संताप ।

--00--

136.

सूर्य निस्वार्थ

ऊर्जा करे प्रदान

ध्येय जीवन दान

सीख इंसान

सूर्य का समर्पण

निज शक्ति अर्पण ।

--00--

137.

सूर्य निस्वार्थ

जग को प्रकाश दे

सुरक्षा आकाश दे

होने दीर्घायु

वृक्ष दे प्राणवायु

क्या हम इन्हें देते ?

--00--

138.

भोर सौगात

प्रत्येक दिन-रात

बनकर पूरक

जीवन हेतु

समय अनुरूप

बनते उत्प्रेरक ।

--00--

139.

ज्यों होती भोर

खग करते शोर

जागे सुन इंसान

कर्मरत जहान

गीता पढो कुरान

कर्म होता प्रधान ।

--00--

140.

प्यासे परिंदे

पानी लिए तरसे

देख, मेघ बरसे

सूखी धरती

करे मेघ विनती

प्रकृति दुःख सुनती ।

--00--

141.

क्या है अंदाज

विलुप्त गिद्ध बाज ?

ज़िम्मेदारी निभाएं

वृक्ष को लगा

पक्षी आसरा पाएं 

जल-वायु बचाएं ।

--00--

142.

पक्षी प्रवृत्ति

मिलजुल रहना

दुःख नहीं कहना

भिन्न इंसान

संचय ही करना

निज पेट भरना ।

--00--

143.

कौन सिखाता ?  

पक्षी उच्च उड़ान

जो छूता आसमान 

आत्मविश्वास

जिसमें होता भरा

वो मौत से न डरा ।

--00--

144.

ज्यों ही जगते

पक्षी दाना चुगते

इंसान को सिखाते

थोड़ा-भोजन- 

अनेक बार खाते

निरोग रह पाते ।

--00--

145.

पक्षी हमेशा    

फल कुतरकर 

बचा-खुचा छोड़ते 

सत्य जानते 

एक दूसरे पर 

सारे रहते निर्भर ।

--00--

146.

ऐ रे इंसान

जीने का अधिकार

तू ही न हकदार

ईश से प्राप्त

पक्षी, वृक्ष, नदी को

न करो तू समाप्त ।

--00--

147.

भोर या शाम

जप लो राम नाम

अंत समय पर

सगे तुम्हारे 

कहेंगे वो बेचारे

राम नाम सत्य है !

--00--

□ विनय कुमार अवस्थी

148.

स्वर्णिम भोर

बिखर गया सोना

मुखर हर कोना

पूर्व रंगीन

ऊषा मले गुलाल

क्या प्रभु का कमाल ?

--00--

149.

नीलगगन

पंछी करें किलोले

अपने पंख तौलें

लक्ष्य बेधते

करें अठखेलियां

वाह! रंग-रैलियां ।

--00--

150.

सूर्य देवता

करते संलयन

करते विकरण

हैं ऊर्जा स्रोत

होता जग पोषण

शक्ति का सम्पोषण ।

---00--

□ डाॅ.आनन्द प्रकाश शाक्य 'आनन्द'

151.

भोर श्रृंगार

पंछियों की श्रृंखला

बने समीकरण

सुकून देती

दरख्तों से झांकती

सूरज की किरण ।

--00--

152.

भोर के स्वर

ओंकार सम गूंज

क्षितिज में रंगोली

दिशा दिखाये

सूरज की मुस्कान

पंछी करें ठिठोली ।

--00--

□ श्रवण चोरनेले 'श्रवण'

153.

भोर समय 

उगता वो सूरज 

सिंदूरी प्राची भाल 

मंद समीर 

उड़ता मन पंछी 

सानंद ये संसार ।

--00--

154.

आशा की भोर 

ले के आता सूरज

अंधकार भगाने 

उड़ते पंछी 

ये संभावनाओं के 

प्यारे पंख पसारे ।

--00--

□ सुनील गुप्ता

155.

मोहक  भोर

हँसती  हर ओर 

नई  चेतना  जागी 

कालिमा  भागी

उमंग  का संचार 

हुआ  वक्त  उदार |

--00--

156.

पंछी  बोलते 

मधुरस  घोलते 

चतुर्दिक  डोलते 

नया संदेश 

देवे  उल्लासमय 

उत्साहित  निर्भय |

--00--

157.

सूरज आया

धरती  को  जगाने 

नीरसता  हटाने 

सबकी  चाल 

बढने  लगी  फिर  

हुए  सब   निहाल |

--00--

□ डाॅ. विष्णु शास्त्री 'सरल'

158.

देते आलोक

भगवान भास्कर

वे भव्य रश्मियों से

देते पोषण

बन के द्युतिमान

रह के गतिमान ।

--00--

□ डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य 'आनन्द'

159.

भोर बावरी

इंद्रधनुषी रंग

प्रकृति में बिखेरी

उत्साह भरी

खिलखिलाती धूप

मिटा तिमिर कूप ।

--00--

160.

डाल की शोभा

पंछी का कलरव

कर्म कर लें नव

मनभावन

सन्तुलित जीवन

तत्परता की सीख ।

--00--

161.

पूरब लाता

नित नव सन्देश

सूरज दरवेश

देता दस्तक

खोले मन के द्वार

जग नत मस्तक ।

--00--

□ पूर्णिमा सरोज

162.

सूरज उगा

पंछी चहचहाये

भँवरे मंडराये ।

रश्मि ने छुआ

विहँसे पद्म दल

ढलका ओस जल ।

--00--

□ डॉ. रंजना वर्मा
•••••0•••••


~ प्रस्तुति ~

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
संचालक : सेदोका की सुगंध

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