सेदोका रचना - 10 नवम्बर 2019
वर्ण क्रम - 05/07/07/-05/07/07
विषय - पेड़, नदी, निर्झर
उत्कृष्ट रचनाएँ
01.
सघन पेड़
आशियाना पंछी का
ये सुंदर घोंसले
चहचहातीं
नन्हीं-नन्हीं चिड़िया
आकर्षित दुनिया ।
--00--
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
02.
तेज है हवा
झूमी पेड़ की देह
हिलीं टहनियाँ भी
चुप है जड़
जमी रही धरा में
अपनी ही जगह ।
--00--
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
03.
घने जंगल
प्रदुषण मुक्त हो
करें हम सुरक्षा
खग बसेरा
पेड़ों को भी बचाएँ
पक्षियों की हो रक्षा ।
--00--
□ सुशीला साहू "शीला"
04.
खजूर पेड़
ऊंचे पहाड़ जैसा
ऊंचाई नहीं देना
मेरे मालिक
राम को भूल जाऊँ
रावण न हो जाऊँ ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
05.
भू,चांद,तारे,
नदी, पहाड़, पेड़
अनुपम प्रकृति
जिसने रचा
सृष्टि का श्रृंगार है
अनबूझी पहेली ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
06.
झरते पात
पतझर मौसम
प्रकृति का है क्रम
नवांकुरण
खिलते नए पर्ण
फिर जागे जीवन ।
--00--
□ डाॅ. संजीव नाईक
07.
चांद झाँकता
बादलों की ओट से
धूप-छाँव के बीच
देखता शिशु
प्रकृति की लीला को
वर्षा के संगसाथ ।
--00--
□ ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
08.
मीन उछली
नदी के विपरित
बहती हुई धारा
उत्साह दूना
रोक सके तो रोक
मेरा आगे बढ़ना ।
--00--
□ ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
09.
प्यासी नदियां
पी गयीं सारा जल
जीव जंतु विकल
जल संकट
प्रदूषण कारण
त्वरित निवारण ।
--00--
□ डॉ. पुष्पा सिंह'प्रेरणा'
10.
प्रकृति गोद
खेलती है नदियाँ
कल कल बहती
धरती सिंचे
बाग बगीचा खिले
जन जीवन पले ।
--00--
□ सुशीला साहू "शीला"
11.
बहती नदी
बांटती है जीवन
स्वयं मरणासन्न
पड़ा अकाल
धरती ठना ठन
व्याकुल जन मन ।
--00--
□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
12.
ढ़ेरों चिड़ियां
झूमता बरगद
ठंडी चली बयार
गूंजे बसेरा
धरोहर बचाओ
प्रदूषण भगाओ ।
--00--
□ शशि मित्तल "अमर"
13.
अनवरत
पहाडी़ सीना चीर
इठलाती आती मैं
जमीन पर
अपने प्रियतम
सागर की बाहों में ।
--00--
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
14.
लौट आ नदी !
तटबंधों को तोड़
बहोगी कब तक
विप्लव ढा के
आखिर क्या पाओगी ?
पीछे पछताओगी ।
--00--
□ डॉ. सुरंगमा यादव
15.
हवा के संग
आलिंगन में रत
पात-पात टहनी
मर्मर-ध्वनि
सुना रही अपनी
कुछ नयी-पुरानी ।
--00--
□ डाॅ. सुरंगमा यादव
16.
हवा के झौंके
झूमते पेड़ पौधे
मुदित उपवन
कर श्रृंगार
हरियाली चूनर
महके धरा तन ।
--00--
□ मंजू सरावगी मंजरी
17.
नदियां सारी
दूषित हुआ जल
हमारी मनमानी
सिसकी नदी
मानव है नादान
नतीजे से अंजान ।
--00--
शशि मित्तल "अमर"
18.
हो छाँव घनी
चलो पेड़ लगाएं
कुछ कर के जाएं
निरोग,सुखी
नयी पीढ़ी हमारी
जिम्मेदारी निभाएं ।
--00--
□ पुष्पा सिंह "प्रेरणा"
19.
जंगल मन
पेड़ निर्झर नदी
मदमस्त गति में
धूप व छाँव
प्रकृति की गोद में
सब को समेटती ।
--00--
□ जाविद अली
20.
पेड़ पृथ्वी के
अमर कविता हैं
हम सब समझें
जीने की कला
हमें सिखाते पेड़
सम भाव रहना ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
21.
झरे निर्झर
निर्मल झर-झर
निर्जन कल-कल
निर्बाध यात्रा
उत्पत्ति से प्रारंभ
गति ही है जीवन ।
--00--
□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
22.
बकों की टोली
झूले वटवृक्ष में
अस्ताचल में रवि
नीचे पथिक
बड़ा सुहाना दृश्य
स्वर्णिम आभा संग ।
--00--
□ रविबाला ठाकुर
23.
आपका प्रेम
आपका व्यवहार
मीठा नदी जल सा
तृप्त करती
तपती धरती को
मेघ अमृत बूंद ।
--00--
□ मंजू सरावगी मंजरी
24.
नील गगन
उमड़ते बादल
अविरल निर्झर
ठहरी नदी
झकझोर पवन
अचल नौकायन ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
25.
नदी बहती
पहाड़ से निकल
कलकल करती
राह बनाती
बीहड़ों पत्थरों में
जाती अनवरत ।
--00--
□ सुशीला जोशी
26.
पेड़ के नीचे
भीगते रहे दोनों
रिमझिम बारिश
बहुत देर
इतना हँसा पेड़
फूल झरने लगे ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
27.
नदी की व्यथा
नौका और जहाज
मुझे चिरते हुए
मंजिल पाते
मनु ने जीत लिया
बांध पुल मुझसे ।
--00--
□ स्वाति गुप्ता "नीरव"
28.
डाल से टूटे
विलग हुए पत्ते
सूखती हरीतिमा
ठूँठ सा पेड़
उजड़ा हुआ नीड़
अकुलाया परिंदा ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
29.
खुश विटप
चमकता आतप
नूतन किसलय
प्रत्येक शाख
पतझड़ पश्चात
आया नव विहान ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
30.
हवा के झोंकें
झूमती तरु डालें
भागते पशु झुंड
उड़ते पंक्षी
पेड़ों को छोड़कर
नीले आसमान में ।
--00--
□ मनीष श्रीवास्तव
31.
पहाड़ी नदी
उफान ले चलती
सागर से मिलने
लेके सपने
बाधाएँ सारी तोड़
दुनिया पीछे छोड़ ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
32.
आम का पेड़
खट्टे मीठे रसीले
रंग हरे व पीले
पेड़ सभी का
फल मिलेगा वैसा
मन के भाव जैसा
--00--
33.
चंदन पेड़
पूजा पाठ के काज
लिपटे नागराज
छोड़ते विष
चंदन का संस्कार
खूशबू है अपार ।
--00--
34.
झरे निर्झर
पर्वत तोड़ कर
गिरते रवानी में
अनवरत
बनते बुलबुला
पल में मर जाना
--00--
35.
मैं निर्झर हूँ
सह के कठिनाई
धरा पर मैं आई
सीख सीखाने
मिलती है मंजिल
धैर्यशील हो दिल ।
--00--
36.
बहती नदी
कहती है कहानी
करती मनमानी
मंजिल पाने
पत्थरों को तोड़ती
नयी राह जोड़ती ।
--00--
37.
बहता पानी
नाम मिला नदी को
गंगा और यमुना
पावन जल
पाक बनाए रखें
प्रदुषण बचाएं ।
--00--
□ मधु गुप्ता "महक"
38.
पेड़ बौराया
झरे पते ने कहा
सदकर्म जीवन
जन्म के द्वार
बार बार खुलते
हम फिर मिलेंगे ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
39.
नदी के तट
मछुआरों की फ़ौज
मारती मछलियां
गहरी नदी
परेशान हैं लोग
गायब मछलियां ।
--00--
□ मनीष श्रीवास्तव
40.
बहती जाती
निश्छल-निर्मल सी
प्यास बुझाती जाती
जीना सिखाती
सतत बढ़ने का
एहसास दिलाती ।
--00--
□ ए.ए.लूका
41.
चंदन पेड़
सर्पों की फुसकार
न बदले संस्कार
सुगंध देते
सबको सीख देते
विष न अपनाते ।
--00--
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
42.
पेड़ लगाएँ
पर्यावरण बचाएँ
संकल्प आज ये लें
निर्मल वायु
तब मिल सकती
हमें स्वस्थ्य रहने ।
--00--
□ ए ए.लूका
43.
अलक नंदा
चांदी सी जलधारा
हिमखंड का तन
प्रतिबिंबित
भोर सूर्य किरण
मन बना हिरण ।
--00--
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
44.
अश्रु-निर्झर
बहे दिवस-रैन
नीरव दिगन्तर
न जाना प्रिये !
क्षितिज है मलिन
कुछ भी नहीं शेष !
--00--
□ निमाई प्रधान'क्षितिज'
45.
नदी कहती
जीवन का झरना
बाधाओं से लड़ना
निर्झर सम
आगे बढ़ते जाना
मस्ती में गीत गाना ।
--00--
□ सुजाता मिश्रा
46.
गिरि को चीर
उतरा दुग्ध नीर
चला धरा को छूने
श्वेत धवल
मनोरम्य नवल
निर्झर कल-कल ।
--00--
□ सुधा राठौर
47.
नीम का पेड़
गंगा किनारे छाँव
छोटा अपना गाँव
पेड़ की शाख
छलाँग की फिराक
सारे बच्चे तैराक ।
--00--
48.
साँस जो रोकी
प्रतिस्पर्धा डुबकी
निर्णायक थी नदी
कश्ती में पाल
डोंगी पे पतवार
लहरों का श्रृंगार ।
--00--
49.
रेत पे दौड़े
गंगा किनारे छोरे
बचपन हिलोरे
चुल्लू में नदी
अलौकिक मिठास
तृप्त शाश्वत प्यास ।
--00--
50.
गंगा उदास
जूझ रही खुद से
कैसी बदहवास
न रंगोरूप
न जल में मिठास
मरीचिका आभास ।
--00--
51.
रेत के टीले
गड्ढों खेतों की धुन्ध
नदी शायद गुम
रोकते धार
अब खर-पतवार
गंगा हुई लाचार ।
--00--
52.
कूड़े के ढेर
अधबने से पुल
कटा नीम का पेड़
है लुप्तप्राय
स्वतःस्फूर्त उद्गाता
अक्षुण गंगा माता ।
--00--
□ राकेश गुप्ता
53.
पर्वत पीर
हिमखंड अधीर
अजस्त्र है निर्झर
निदाघ नीर
व्यग्र नदी का तीर
सिकता का प्राचीर ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
54.
घुटन छोड़
फूट पड़ा झरना
सतत गति लिए
मिला सरि से
नभ छूने की चाह
निरंतर प्रयास ।
--00--
□ सुशीला जोशी
55.
नदी के तट
बच्चों का जमघट
आनंद है उत्कट
काग़ज़ नाव
लहरें पतवार
ले चली दूजे गाँव ।
--00--
□ सुधा राठौर
56.
एक रंग है
एक दिखे साकार
पत्तों का परिवार
शाख से जुड़े
मजबूत होकर
भले भिन्न आकार ।
--00--
□ ललित कर्मा
57.
बूढ़ा दरख़्त
कटती टहनियाँ
छाँव की कहानियाँ
ठूँठ सी देह
चिरसंगिनी जड़ें
दोनों मिलके लड़ें ।
--00--
□ सुधा राठौर
58.
पथिक भाया
बरगद की छाया
नीचे बैठ सुस्ताया
मृत्यु अकाल
विशालकाय पेड़
प्रदूषण चपेट ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
59.
धूप सहता
छाया हमें है देता
फल देता रसीले
पेड़-सा बनो
परोपकारी पेड़
लगे संत समान ।
--00--
60.
नदी का तट
अति आनन्दमयी
सूर्यास्त का समय
आरती गूँजे
मस्ज़िद की अज़ान
नदी भेद न करे ।
--00--
61.
नदी की धार
मानव का जीवन
रुकना नहीं कभी
बढ़ते जाना
सुख में, दु:ख में भी
जीवन नदी जैसा ।
--00--
□ अयाज़ ख़ान
62.
पेड़ लगते
निर्झर नदी बहे
किनारे कुछ कहे
नदी बहती
लहलहाते पेड़
निर्झर पत्तों संग ।
--00--
63.
एक थी नदी
वो सदी दर सदी
तटों के बीच बही
सदी आएगी
जब बहती नदी
कहानी कहाएगी ।
--00--
64.
एक था पेड़
बसंत में हरित
पतझर में रीता
एक ही पेड़
जुदा जुदा अवस्था
मगर वह जीता ।
--00--
65.
बह निर्झर
चाहे दुःख या सुख
दोनों किनारे ही है
निर्झर बह
शब्द भाव के बीच
दोनों सहारे ही है ।
--00--
□ अविनाश बागड़े
66.
प्राण प्रदाता
हरित तरुवर
नष्ट हुए सत्वर
करो विचार
जीवन न हो भार
रहे वायु संचार ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
67.
निर्झर जल
गिरि से उतरता
बूँद बूँद झरता
अति निर्मल
प्राण दान करता
पाप ताप हरता ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
68.
वृक्ष की छाँह
जग जीवन दाता
प्राण वायु प्रदाता
धरा हरी हो
सदा पेड़ में नीड़
जीवन गुंजित हो ।
--00--
69.
जल पावन
बहता निरन्तर
सपनों सा निर्झर
धवल धार
अल्हड़ सा सुंदर
मन हर्ष से तर ।
--00--
70.
मातृ सदृश्य
नेह लुटाती जाती
नदी तो बहती है
पुण्य दायिनी
जीवों की पालक
पूजनीय सर्वत्र।।
--00--
□ पूर्णिमा सरोज
71.
चंचला नदी
मिटा कर बदी
सहेज रही सदी
अनवरत
बहती बन धार
जीवन दे सँवार ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
72.
मैं निर्झरिणी
संघर्षों से बढ़ती
कल-कल करती
मैं शैवालिनी
पादप को सींचती
धरा हरी करती।
--00--
73.
निर्झर धार
जिंदगी है सफर
आगे बढ़े कदम
संगीतमय
फव्वारों सा दिखता
फिजाओं में उड़ता ।
--00--
□ सविता बरई वीणा
74.
पेड़ झूमते
कल-कल नदिया
मस्त पवन बहे
है विलक्षण
निर्झर शोर करे
मन के क्लेश हरे ।
--00--
□ अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
75.
वृक्ष विलीन
मिले न प्राण-वायु
जीव-जंतु अल्पायु
कर्तव्य कर
आगामी पीढी हेतु
जल-जंगल सेतु ।
--00--
76.
प्रदूषण की-
वजह पहचान
मर रहा इंसान
जल दूषित
वायु भी प्रदूषित
वृक्ष नदी बचाएं ।
--00--
77.
जल समाप्त
प्रपात अपर्याप्त
नित त्रासदी व्याप्त
वृक्ष काटते
तालाब को पाटते
अट्टालिका निर्माण ।
--00--
78.
स्वयंभू स्त्रोत-
झरने उत्सर्जित
जमी को समर्पित
सुनिश्चित हो
दरिया का बहाव
दूरगामी प्रभाव ।
--00--
79.
सृष्टि निर्माता-
ब्रह्मा विष्णु महेश
अब हो श्री गणेश
ज़िन्दगी हेतु-
नदी-वन बचाएँ
जिम्मेदारी निभाएं ।
--00--
□ विनय कुमार अवस्थी
80.
जलप्रवाह
निरंतर अथाह
जीवन रूप हूँ मैं
उफनती हूँ
जब मैं तोडूँ सीमा
जलमग्न हो धरा ।
--00--
81.
परंपरा का
आध्यात्मिक दर्शन
नदी नामक भाव
हृदय पुष्प
खिलते कमल से
मनमोहिनी हूँ मैं ।
--00--
82.
मोती लड़ियां
बूंदें हैं झर झर
पर्वतों के निर्झर
संगीत जादू
उन्मुक्त चपल से
मन करे बेकाबू ।
--00--
83.
जीवन दाता
प्राण वायु सर्जक
आभारी हैं आपके
पेड़ सजीव
मिट्टी को बांधकर
व्योम को निहारते ।
--00--
□ शर्मिला चौहान
84.
पेड़ लगाएँ
फलों के संग-संग
मिलेगी हमें छाया
इसे न काटें
मिलता वरदान
मनुष्य की ये सांसें ।
--00--
□ सुजाता मिश्रा
85.
सघन छाँह
पथिक का पनाह
परिंदों का उत्साह
तरु निपत्र
विवर्तित नक्षत्र
धरणी बिन छत्र ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
86.
प्राण वायु ये
रक्षण करें सब
वृक्ष ही है जीवन
जीवन देता
पर्यावरण सुधरे
चैतन्य होता मन ।
--00--
□ निर्मला पांडेय
87.
झरा निर्झर
मानो उतर रही
आशीषो की धारा
श्वेत निर्मल
भीगी भीगी फुहारें
भीगा गई अंतर l
--00--
88.
ज़र्द पत्तियों
उड़ चली समीर
के साथ बेखौफ हो
क्यूंकि फिर से
नवपल्लव पेड़ों
पर बसंत लाए l
--00--
89.
सुर सरिता
प्रदूषण की मारी
अस्तित्व खोने लगी
चिंतन कक्ष
विस्तारित स्वच्छता
कृतज्ञ मानवता l
--00--
□ चंचला इंचुलकर सोनी
90.
वृक्ष महान
हर व्यक्ति का नाता
स्वच्छ वायु प्रदाता
धरा की शान
दे रहे हमें वन।
फल,फूल,ईंधन ।
--00--
□ किरण मिश्रा
91.
दरख्त उंचे
फलो फूलो झूमते
खुश रहो सिखाते
डोलते पेड़
देते शीतल हवा
त्याग हमें सिखाते ।
--00--
92.
निर्झर बहे
पाषाण संग मिले
न रुके न ही थमे
धवल धार
चंचल जलधारा
अनवरत बहे ।
--00--
93.
शीतल नद
कलकल करती
इठलाती चलती
शैलजा रानी
मिलने को आतुर
सागर बाट जोहे ।
--00--
94.
सरिता एक
किनारे जुदा-जुदा
मिलन असम्भव
फिर भी बहे
नीर तट से मिले
एक दुजे के लिये ।
--00--
□ रूबी दास
95.
निकल कर
गिरिवर उर से
गिरती है निडर
सुर सजाती
निर्मल निर्झरिणी
बहती है निर्झर ।
--00--
□ रविबाला ठाकुर
96.
हम निर्भर
हरित पेड़ों पर
खड़े हैं मेंड़ों पर
देते पोषण
बाँटते हैं जीवन
आदि से अब तक ।
--00--
97.
बड़े साहसी
तोड़कर पत्थर
बहते जीवन से
झरें निर्झर
मिटे अतृप्त प्यास
तन, मन संत्रास ।
--00--
98.
बहती नदी
कल-कल सस्वर
गहे पथ सत्वर
कहती नदी
बस बहता चल
सब सहता चल ।
--00--
□ डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "
99.
नदी-निर्झर
धूप-छाँव-बारिश
शैल-पवन-पेड़
रहे आश्रित
प्रकृति पर मनु
फिर उन्हीं से छेड़ ।
--00--
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
100.
हवा का राग
झूमते तरुवर
गूँजे पत्तों की ध्वनि
स्वर लहरी
सुने जनमानस
होता प्रकृतिमय ।
--00--
□ ललित कर्मा
••••••
47.
नीम का पेड़
गंगा किनारे छाँव
छोटा अपना गाँव
पेड़ की शाख
छलाँग की फिराक
सारे बच्चे तैराक ।
--00--
48.
साँस जो रोकी
प्रतिस्पर्धा डुबकी
निर्णायक थी नदी
कश्ती में पाल
डोंगी पे पतवार
लहरों का श्रृंगार ।
--00--
49.
रेत पे दौड़े
गंगा किनारे छोरे
बचपन हिलोरे
चुल्लू में नदी
अलौकिक मिठास
तृप्त शाश्वत प्यास ।
--00--
50.
गंगा उदास
जूझ रही खुद से
कैसी बदहवास
न रंगोरूप
न जल में मिठास
मरीचिका आभास ।
--00--
51.
रेत के टीले
गड्ढों खेतों की धुन्ध
नदी शायद गुम
रोकते धार
अब खर-पतवार
गंगा हुई लाचार ।
--00--
52.
कूड़े के ढेर
अधबने से पुल
कटा नीम का पेड़
है लुप्तप्राय
स्वतःस्फूर्त उद्गाता
अक्षुण गंगा माता ।
--00--
□ राकेश गुप्ता
53.
पर्वत पीर
हिमखंड अधीर
अजस्त्र है निर्झर
निदाघ नीर
व्यग्र नदी का तीर
सिकता का प्राचीर ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
54.
घुटन छोड़
फूट पड़ा झरना
सतत गति लिए
मिला सरि से
नभ छूने की चाह
निरंतर प्रयास ।
--00--
□ सुशीला जोशी
55.
नदी के तट
बच्चों का जमघट
आनंद है उत्कट
काग़ज़ नाव
लहरें पतवार
ले चली दूजे गाँव ।
--00--
□ सुधा राठौर
56.
एक रंग है
एक दिखे साकार
पत्तों का परिवार
शाख से जुड़े
मजबूत होकर
भले भिन्न आकार ।
--00--
□ ललित कर्मा
57.
बूढ़ा दरख़्त
कटती टहनियाँ
छाँव की कहानियाँ
ठूँठ सी देह
चिरसंगिनी जड़ें
दोनों मिलके लड़ें ।
--00--
□ सुधा राठौर
58.
पथिक भाया
बरगद की छाया
नीचे बैठ सुस्ताया
मृत्यु अकाल
विशालकाय पेड़
प्रदूषण चपेट ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
59.
धूप सहता
छाया हमें है देता
फल देता रसीले
पेड़-सा बनो
परोपकारी पेड़
लगे संत समान ।
--00--
60.
नदी का तट
अति आनन्दमयी
सूर्यास्त का समय
आरती गूँजे
मस्ज़िद की अज़ान
नदी भेद न करे ।
--00--
61.
नदी की धार
मानव का जीवन
रुकना नहीं कभी
बढ़ते जाना
सुख में, दु:ख में भी
जीवन नदी जैसा ।
--00--
□ अयाज़ ख़ान
62.
पेड़ लगते
निर्झर नदी बहे
किनारे कुछ कहे
नदी बहती
लहलहाते पेड़
निर्झर पत्तों संग ।
--00--
63.
एक थी नदी
वो सदी दर सदी
तटों के बीच बही
सदी आएगी
जब बहती नदी
कहानी कहाएगी ।
--00--
64.
एक था पेड़
बसंत में हरित
पतझर में रीता
एक ही पेड़
जुदा जुदा अवस्था
मगर वह जीता ।
--00--
65.
बह निर्झर
चाहे दुःख या सुख
दोनों किनारे ही है
निर्झर बह
शब्द भाव के बीच
दोनों सहारे ही है ।
--00--
□ अविनाश बागड़े
66.
प्राण प्रदाता
हरित तरुवर
नष्ट हुए सत्वर
करो विचार
जीवन न हो भार
रहे वायु संचार ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
67.
निर्झर जल
गिरि से उतरता
बूँद बूँद झरता
अति निर्मल
प्राण दान करता
पाप ताप हरता ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
68.
वृक्ष की छाँह
जग जीवन दाता
प्राण वायु प्रदाता
धरा हरी हो
सदा पेड़ में नीड़
जीवन गुंजित हो ।
--00--
69.
जल पावन
बहता निरन्तर
सपनों सा निर्झर
धवल धार
अल्हड़ सा सुंदर
मन हर्ष से तर ।
--00--
70.
मातृ सदृश्य
नेह लुटाती जाती
नदी तो बहती है
पुण्य दायिनी
जीवों की पालक
पूजनीय सर्वत्र।।
--00--
□ पूर्णिमा सरोज
71.
चंचला नदी
मिटा कर बदी
सहेज रही सदी
अनवरत
बहती बन धार
जीवन दे सँवार ।
--00--
□ डॉ. रंजना वर्मा
72.
मैं निर्झरिणी
संघर्षों से बढ़ती
कल-कल करती
मैं शैवालिनी
पादप को सींचती
धरा हरी करती।
--00--
73.
निर्झर धार
जिंदगी है सफर
आगे बढ़े कदम
संगीतमय
फव्वारों सा दिखता
फिजाओं में उड़ता ।
--00--
□ सविता बरई वीणा
74.
पेड़ झूमते
कल-कल नदिया
मस्त पवन बहे
है विलक्षण
निर्झर शोर करे
मन के क्लेश हरे ।
--00--
□ अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
75.
वृक्ष विलीन
मिले न प्राण-वायु
जीव-जंतु अल्पायु
कर्तव्य कर
आगामी पीढी हेतु
जल-जंगल सेतु ।
--00--
76.
प्रदूषण की-
वजह पहचान
मर रहा इंसान
जल दूषित
वायु भी प्रदूषित
वृक्ष नदी बचाएं ।
--00--
77.
जल समाप्त
प्रपात अपर्याप्त
नित त्रासदी व्याप्त
वृक्ष काटते
तालाब को पाटते
अट्टालिका निर्माण ।
--00--
78.
स्वयंभू स्त्रोत-
झरने उत्सर्जित
जमी को समर्पित
सुनिश्चित हो
दरिया का बहाव
दूरगामी प्रभाव ।
--00--
79.
सृष्टि निर्माता-
ब्रह्मा विष्णु महेश
अब हो श्री गणेश
ज़िन्दगी हेतु-
नदी-वन बचाएँ
जिम्मेदारी निभाएं ।
--00--
□ विनय कुमार अवस्थी
80.
जलप्रवाह
निरंतर अथाह
जीवन रूप हूँ मैं
उफनती हूँ
जब मैं तोडूँ सीमा
जलमग्न हो धरा ।
--00--
81.
परंपरा का
आध्यात्मिक दर्शन
नदी नामक भाव
हृदय पुष्प
खिलते कमल से
मनमोहिनी हूँ मैं ।
--00--
82.
मोती लड़ियां
बूंदें हैं झर झर
पर्वतों के निर्झर
संगीत जादू
उन्मुक्त चपल से
मन करे बेकाबू ।
--00--
83.
जीवन दाता
प्राण वायु सर्जक
आभारी हैं आपके
पेड़ सजीव
मिट्टी को बांधकर
व्योम को निहारते ।
--00--
□ शर्मिला चौहान
84.
पेड़ लगाएँ
फलों के संग-संग
मिलेगी हमें छाया
इसे न काटें
मिलता वरदान
मनुष्य की ये सांसें ।
--00--
□ सुजाता मिश्रा
85.
सघन छाँह
पथिक का पनाह
परिंदों का उत्साह
तरु निपत्र
विवर्तित नक्षत्र
धरणी बिन छत्र ।
--00--
□ नवल किशोर सिंह
86.
प्राण वायु ये
रक्षण करें सब
वृक्ष ही है जीवन
जीवन देता
पर्यावरण सुधरे
चैतन्य होता मन ।
--00--
□ निर्मला पांडेय
87.
झरा निर्झर
मानो उतर रही
आशीषो की धारा
श्वेत निर्मल
भीगी भीगी फुहारें
भीगा गई अंतर l
--00--
88.
ज़र्द पत्तियों
उड़ चली समीर
के साथ बेखौफ हो
क्यूंकि फिर से
नवपल्लव पेड़ों
पर बसंत लाए l
--00--
89.
सुर सरिता
प्रदूषण की मारी
अस्तित्व खोने लगी
चिंतन कक्ष
विस्तारित स्वच्छता
कृतज्ञ मानवता l
--00--
□ चंचला इंचुलकर सोनी
90.
वृक्ष महान
हर व्यक्ति का नाता
स्वच्छ वायु प्रदाता
धरा की शान
दे रहे हमें वन।
फल,फूल,ईंधन ।
--00--
□ किरण मिश्रा
91.
दरख्त उंचे
फलो फूलो झूमते
खुश रहो सिखाते
डोलते पेड़
देते शीतल हवा
त्याग हमें सिखाते ।
--00--
92.
निर्झर बहे
पाषाण संग मिले
न रुके न ही थमे
धवल धार
चंचल जलधारा
अनवरत बहे ।
--00--
93.
शीतल नद
कलकल करती
इठलाती चलती
शैलजा रानी
मिलने को आतुर
सागर बाट जोहे ।
--00--
94.
सरिता एक
किनारे जुदा-जुदा
मिलन असम्भव
फिर भी बहे
नीर तट से मिले
एक दुजे के लिये ।
--00--
□ रूबी दास
95.
निकल कर
गिरिवर उर से
गिरती है निडर
सुर सजाती
निर्मल निर्झरिणी
बहती है निर्झर ।
--00--
□ रविबाला ठाकुर
96.
हम निर्भर
हरित पेड़ों पर
खड़े हैं मेंड़ों पर
देते पोषण
बाँटते हैं जीवन
आदि से अब तक ।
--00--
97.
बड़े साहसी
तोड़कर पत्थर
बहते जीवन से
झरें निर्झर
मिटे अतृप्त प्यास
तन, मन संत्रास ।
--00--
98.
बहती नदी
कल-कल सस्वर
गहे पथ सत्वर
कहती नदी
बस बहता चल
सब सहता चल ।
--00--
□ डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "
99.
नदी-निर्झर
धूप-छाँव-बारिश
शैल-पवन-पेड़
रहे आश्रित
प्रकृति पर मनु
फिर उन्हीं से छेड़ ।
--00--
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
100.
हवा का राग
झूमते तरुवर
गूँजे पत्तों की ध्वनि
स्वर लहरी
सुने जनमानस
होता प्रकृतिमय ।
--00--
□ ललित कर्मा
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~ प्रस्तुति ~
प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
संचालक : सेदोका की सुगंध
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