हाइकुकार
वीरेन्द्र जैन
हाइकु
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अंतिम श्वास
गंगाजल से भरी
दवा की शीशी ।
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ब्रेल लिपि में
लिखा घाटी पे बोर्ड
अंधा घुमाव ।
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सूखे पत्ते पे
लिखा अधूरा ख़त
बंद संदूक ।
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हिना का रंग
रच गया हाथों में
ख़त पिया का ।
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खिड़की पर
तोते की आंख लगी
मिर्ची का पौधा ।
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इंडिया मुक्त
भारत हो अपना
सोन चिरैया ।
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गूंजती ध्वनि
मंदिर के प्रांगण
बाजे मृदंग ।
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गिरा दरख़्त
सूना पड़ा आंगन
अंतिम यात्रा ।
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