हाइकु कवयित्री
निवेदिता श्रीवास्तव
हाइकु
1)
बुझी है आग
कोयला बन गाए
खाना पकाए ।
2)
गर्दन रेती
कलमा याद न था
हैवानियत !
3)
सिमटा मन
दरकता आसमाँ
घर जाना है ।
4)
क्या लिखूं उसे
जिसने लिखा मुझे
अथ से इति ।
5.
मैं और मेरा
पानी का बुलबुला
क्षणिक डेरा ।
6.
कहती है माँ
आज जो अमावस
कल पूर्णिमा ।
7.
मधुमालती
दवाई की दुकान
घर में खुली ।
8.
सुखी संसार
बने अच्छे संस्कार
दृढ़ आधार ।
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□ निवेदिता श्रीवास्तव
विपुल खण्ड, गोमती नगर
लखनऊ (उ.प्र.)
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