हाइकुकार
प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
हाइकु
--0--
रिश्ते व नाते
बोनसाई हो गए
मौन जज़्बात ।
मातृ दिवस
बूढ़ी माँ थक गई
देख नाटक ।
हाय दौलत
नोंचे जिंदा इंसान
कैसे ये गिद्ध ?
आरियाँ चलीं
क्रुद्ध हुई प्रकृति
मौत लौटाई ।
अकेला सूर्य
आलोकित करता
संपूर्ण जग ।
चुप है मिट्टी
हवा के अनुकूल
धूल लिपटी ।
ढाया सितम
कोरोना का मौसम
बदलें हम ।
कोरोना रोग
यह कैसा मौसम
छाया है शोक ।
दरख्त सूखे
सूखी पत्ती मानिंद
झड़ते लोग ।
आया संकट
धैर्य की है लड़ाई
रखें हिम्मत ।
---00---
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें