हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शनिवार, 15 मई 2021

~ हाइकु कवयित्री पुष्पा सिंह "प्रेरणा" जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

पुष्पा सिंह "प्रेरणा"


हाइकु 

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कैदी सूरज

कोहरे की गिरफ्त

इंद्र भी रुष्ट ।


मेघ गर्जन

प्रसव वेदना से

रंभाती गाय।


मात-पिता को

भेजा वृद्धाश्रम में

कुलभूषण ।


लौटा सपूत

तिरंगे में लिपटा

पथराई माँ ।


चाँद की ओर

बढ़ता रवि अस्त

उदास निशा ।


स्याह बादल

बरसात में धुला

उजला हुआ ।


शोर मचाया

पाँवों की बेड़ियों ने

मर्यादा टूटी ।


होठों की हँसी

आँखों में गुम हुई

टूटे सपने ।


बन्द लिफ़ाफ़ा

अधरों का चुम्बन

शब्द मुस्काए ।


रुष्ट प्रकृति

मानव हतप्रभ

कर्म का फल ।


प्रेम शाश्वत

मवेशी पीते पानी

एक घाट में ।


मृग शावक

आखेट के पश्चात

समूह भोज ।


रंगपंचमी

बरसात की बूंदे

धुला सिंदूर ।


कटी टहनी

झाँकते हरे पत्ते

नवजीवन ।


नयन नीर

होठों पर मुस्कान

यही जिंदगी ।


सितारे टँके

अम्बर की चुनरी

ओढ़े रजनी ।


हिमस्खलन

पहाड़ों पे कफ़न

विक्षिप्त नदी !


कीमत बढ़ी

पेट में लगी आग

ठंडी रसोई !


धूप में खड़े

तपते तरुवर

देते हैं छाँव ।

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□  पुष्पा सिंह "प्रेरणा"

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