हाइकु के समर्पित व निष्ठावान कवि की रचनाएँ
- कमलेश भट्ट कमल

विश्व की सबसे संक्षिप्त कलेवर तथा जापानी मूल की कविता हाइकु एक बेहद अनुशासनप्रिय और सहज काव्य विधा है। अकेले हिंदी भाषा में इस विधा में सृजन करने वाले रचनाकारों की संख्या एक हज़ार या उससे भी अधिक हो सकती है। इनमें से अधिकांश रचनाकार निजी स्तर पर हाइकु की साधना कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो निजी साधना के साथ-साथ हाइकु के लिए भी साधनारत हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' का भी है, जिनका सातवाँ हाइकु संग्रह 'दीप और पतंग' नाम से प्रकाशित हो रहा है। वर्ष 1989 से प्रारंभ हिंदी के प्रतिनिधि हाइकु संकलनों की श्रृंखला की तृतीय कड़ी 'हाइकु-2009' के रचनाकार दीपक जी अपनी हाइकु रचना-यात्रा में दो दशकों से अधिक की दूरी तय कर चुके हैं। इस बीच उनके द्वारा संपादित सात अन्य हाइकु कृतियाँ भी प्रकाश में आ चुकी हैं। उनके द्वारा वर्ष 2006-07 में न केवल 'हाइकु मञ्जूषा' नामक त्रैमासिक का संपादन किया गया, वरन इसके कुल 7 अंकों का एक समवेत संकलन भी प्रकाशित किया गया। आगे चलकर इस पत्रिका को साप्ताहिक रूप दे दिया गया और इसके 25-7-2016 से 08-7-2017 की अवधि के 50 अंकों की 3565 हाइकु कविताओं को 'हाइकु मञ्जूषा' नाम से 456 पृष्ठों के एक वृहद ग्रंथ के रूप में वर्ष 2018 में संकलित/संपादित किया जा चुका है। ये सब कार्य हाइकु के प्रति प्रदीप जी के गहरे समर्पण को प्रमाणित करते हैं। इसी तरह उनके सातवें हाइकु संग्रह का प्रकाशन यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उनके अंदर हाइकु-सृजन की कितनी गहरी ललक है ! लेकिन हाइकु का विपुल लेखन ऐसे हर रचनाकार के समक्ष एक चुनौती भी प्रस्तुत करता आया है। क्योंकि बड़ी संख्या में उत्कृष्ट हाइकु लिख ले जाना बहुत-बहुत कठिन कार्य है। लेकिन कठिनाई भरी इस कड़ी चुनौती से छनकर प्रदीप जी के जो हाइकु परिदृश्य पर उभरते हैं,वे इस विशिष्ट काव्य विधा के विषय में उनकी गहरी समझ और उनके व्यापक सरोकारों को बहुत अच्छी तरह प्रकट भी करते हैं और प्रमाणित भी करते हैं।
छत्तीसगढ़ की एक छोटी सी जगह सांकरा से निकलकर एक दूसरी छोटी जगह रजपुरी में अध्यापन कार्य करते हुए भी दीपक जी हाइकु सृजन और उसके संकलन तथा प्रचार-प्रसार में जिस तरह लगे हुए हैं वह अवश्य ही रेखांकित किए जाने योग्य है। अभी-अभी उन्होंने अपने जीवन का 42वाँ बसंत देखा है और इस कम आयु में ही उनके खाते में हाइकु की यदि इतनी किताबें जुड़ चुकी हैं तो आने वाले समय में उनके स्तर से कुछ अन्य बहुत महत्वपूर्ण हाइकु कृतियों, विशेष रूप से अनुवाद और संकलनों की अपेक्षा करना सर्वथा उचित होगा।
प्रदीप कुमार दाश ' दीपक ' का प्रथम हाइकु संग्रह 'मइनसे के पीरा'(वर्ष 2000) छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संग्रह भी है। इसी वर्ष उनकी दूसरी हाइकु कृति ' हाइकु चतुष्क' में हिंदी, उड़िया, छत्तीसगढ़ी एवं संबलपुरी भाषा में उनके हाइकु संग्रहीत हैं और उनका 'काशतण्डीर हस' शीर्षक से एक उड़िया हाइकु संग्रह भी है जो वर्ष 2019 में आया है। कहने का आशय यह है कि दीपक जी की गति केवल हिंदी भाषा में ही नहीं, उड़िया समेत छत्तीसगढ़ी और संबलपुरी भाषाओं में भी समान रूप से हैं। इतनी भाषाओं में उनकी गति और रचनाशीलता का विस्तार प्रदीप जी के हाइकुकार व्यक्तित्व को अलग ही आयाम प्रदान करता है।
प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' उन हाइकुकारों में से नहीं है जो केवल प्रकृति-चित्रण को ही हाइकु की साधना समझते हैं।उनकी हाइकु कविताओं में पर्यावरण है तो जीवन के विविध पक्ष भी हैं। समय और समाज का शायद ही कोई ऐसा पक्ष होगा जिस पर उनके हाइकु न मिलें। नदियों-पर्वतों, ग्रहों-नक्षत्रों, पर्वों-त्योहारों, रिश्ते-नातों, राजनीतिक हलचलों और छल-छद्मों, पर्यावरण ,अध्यात्म,दर्शन, इतिहास,मिथक,कोरोना, महानायकों आदि कितने ही विषयों पर उनके हाइकु इस संग्रह में जुड़े हैं। किंतु विषय केंद्रित हाइकु कविताओं के साथ जब-तब एक मुश्किल यह पेश आती है कि वे अनुभूति के चरम क्षण की अभिव्यक्ति न होकर सामान्य क्षणों की अभिव्यक्ति होते हैं और जब ऐसी स्थिति होती है तो उनमें हाइकु की आत्मा को सुरक्षित रख पाना कठिन हो जाता है।
714 हाइकु कविताओं वाले इस नए संग्रह 'दीप और पतंग' में सबसे अच्छे हाइकु वे बन पड़े हैं जिनमें उन्होंने तुकांतों का भी ध्यान रखा है। यद्यपि संस्कृत साहित्य की तरह हाइकु में भी तुकांतों की कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन जब हाइकु कविताओं में तुकांतों का सटीक निर्वाह होता है तो उनमें जैसे चार चाँद लग जाते हैं-
घर थे कच्चे
तब की बात और
मन थे सच्चे ।
अंधेरी रात
एक दीप बता दे
उसे औकात ।
थोड़ी सी राख
अंतिम सत्य यही
फिर भी साख ।
मन में भेद
कैसे करोगे रफू
दिल के छेद ?
ईंट सोचती
मेरे बिना दीवार
कैसे टिकती ।
सूरज रोज
भोर की कविता में
भरता ओज ।
मौन की भाषा
संवादों पर भारी
कलम हारी।
समकालीन यथार्थ को अपनी हाइकु कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए दीपक जी ने कुछ बहुत अच्छे हाइकु दिए हैं। यथार्थ को देखने की उनकी यह दृष्टि ऐसे रचनाकारों के लिए भी एक उदाहरण है, जिनकी दृष्टि बहुत सीमित विषयों में ही बँध कर रह जाती है। मैं समझता हूँ हाइकु अंततः एक कविता है और कविता की आत्मा उसकी संवेदना में बसती है। यदि कविता पाठक को संवेदित नहीं कर पाती है तो वह हाइकु या किसी और विधा में ही क्यों न हो, शब्दों का जोड़-तोड़ ही अधिक लगती है। दीपक जी ने अपनी इन हाइकु कविताओं से पाठकों को संवेदित करने का भरपूर प्रयास किया है-
रिश्ते व नाते
बोनसाई हो गए
मौन जज़्बात ।
मातृ दिवस
बूढ़ी माँ थक गई
देख नाटक ।
समय मौन
आखिर बता देता
किसका कौन।
दरख्त कटा
थका लकड़हारा
छाया ढूँढता।
जलता देश
बारी की अपेक्षा में
लाशों के ढेर।
माटी की आन
गलवान की घाटी
लहूलुहान।
पर्यावरण संकट अखिल विश्व का संकट है। यह आज के साथ-साथ आने वाली सदियों के लिए भी बड़ी चुनौतीपूर्ण समस्या है। बावजूद इसके, आश्चर्य इस बात का है कि साहित्य की दुनिया में इस विषय को लेकर अपेक्षित हलचल कम दिखाई देती है। लेकिन यह संतोष का विषय है कि हिंदी की हाइकु कविता ने इस विषय का संज्ञान पर्याप्त गंभीरता से लिया है। प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' ने अपने संग्रह में इस परिप्रेक्ष्य में कई महत्वपूर्ण हाइकु दिए हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं-
बड़ा सवाल
क्यों सूख गये कुएँ
खोया क्यों ताल ?
पेड़ हैं सुन्न
दादुर की आवाज़
हुई क्यों गुम ?
आहत मन
काटे लकड़हारा
पेड़ का तन ।
आरियाँ चलीं
पेड़ से कट कर
डालियाँ रोईं ।
गायब नीर
किसे सुनाए नदी
अपनी पीर ।
कुछ हाइकु कविताओं में कवि दीपक का प्रेक्षण (ऑब्जर्वेशन) गजब का है। किसी भी रचनाकार की प्रेक्षण की गहरी दृष्टि उसकी रचनाओं में प्राण फूँकने का काम करती है। हर रचनाकार में यह अपने मौलिक ढंग से ही साँस लेती है। इसे हम निम्न हाइकु रचनाओं से समझ सकते हैं-
कित्ते भी गोरे
पर परछाइयाँ
सदैव काली ।
हिसाब नेक
श्मसान में सबका
बिस्तर एक
चाँद तनहा
झील की पगडण्डी
चला अकेला ।
फटी पुस्तक
दीमक के पेट में
ज्ञान के शब्द ।
जली लकड़ी
अकड़ टूट गई
राख जो हुई ।
नदी जो सूखी
घोर अवसाद में
हुई लकीर ।
दीपक जी ने इस संग्रह में एक ही विषय पर कई हाइकु लिखे हैं- एक साथ भी और अलग-अलग भी। ऐसी हाइकु कविताओं में प्रायः रचनाकार की संवेदना की बहुस्तरीय अभिव्यक्तियाॅं मुखरित होती देखी जा सकती हैं। इसे हम रावण पर केन्द्रित निम्न रचनाओं के उदाहरण से समझ सकेंगे-
काश जलता
बुराई का रावण
पुतले संग ।
पुतला जला
भीतर का रावण
मुस्करा रहा ।
रावण जला
अब अगले साल
फिर जलेगा ।
इस सन्दर्भ के सबसे अधिक हाइकु दीपक पर हैं। कुछ उदाहरण अवश्य ही देखने योग्य हैं-
दीपक जला
पर वह तो स्वयं
तम में पला ।
दीप निर्मम
प्रेम करने वाले
जले पतंग ।
दीया व बाती
अंधेरे से लड़ने
बनते साथी ।
प्रीत पुरानी
दीया और बाती की
कथा कहानी ।
निशा घनेरी
पर दीपक की लौ
चीर डालती ।
दीप सम्मुख
थकी, हारी व झुकी
निविड़ निशा।
दीपक जी ने कुछ शाश्वत सत्यों को भी हाइकु कविताओं के माध्यम व्यक्त करने का प्रयास किया है जो अच्छा बन पड़ा है। कविता का काम ही है कि वह खुरदुरे,अनगढ़ विचारों और भावों और सत्यों को किसी विधा का जामा पहनाकर उन्हें सहज और बोधगम्य बनाए। ताकि वे श्रोताओं-पाठकों के हृदय तक अपनी पैठ बना सकें। सोशल मीडिया के समय में जीवन से जुड़े हुए तमाम सारे सत्य और विचार हमारी आँखों के सामने से नित्य ही आवाजाही करते रहते हैं, पढ़ने तक वे बड़े अच्छे भी लगते हैं।परन्तु उसके बाद वे विस्मृति के गर्त में चले जाते हैं। लेकिन वही सत्य,वही विचार जब किसी साहित्यिक विधा का स्वरूप ग्रहण करते हैं तो उनकी उम्र बढ़ जाती है, उनकी ग्राह्यता में वृद्धि हो जाती है। दीपक जी की हाइकु कविताओं के निम्न उदाहरण कदाचित यही कहते प्रतीत होते हैं -
राम की जीत
हर युग में पक्की
बात ये सच्ची।
साँसें गिनना
नहीं होता केवल
जीवन जीना ।
सूरज उगा
अंधेरे का साम्राज्य
काँपने लगा ।
दीये तो नहीं
सदियों से जलते
घी और रुई ।
रवि का रथ
हुआ फिर वापस
साँझ के पथ ।
छोटा दीपक
तिमिर हरण का
बने द्योतक ।
बूँदें टपकीं
निखर गयी मानो
सहसा पृथ्वी ।
कहना न होगा कि हाइकु कविता की मशाल जिन कुछ महत्वपूर्ण हाथों में प्रकाशित हो रही है, उनमें प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' का नाम बेहद अहम है। हाइकु के प्रति उनका समर्पण इस विधा के तमाम रचनाकारों के लिए एक संबल भी है और एक उदाहरण भी। उन्होंने हाइकु-सृजन तथा उसके प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। उनके लिए यह कार्य कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न रहा हो, लेकिन उसे उन्होंने पूर्ण निष्ठा के साथ संपन्न किया है। हाइकु कविता के प्रति उनकी निष्ठा और उनका उत्साह निरंतर बढ़ता रहे तथा उनके माध्यम से हाइकु कविता नये आयाम और नई ऊँचाइयाँ प्राप्त करे, यही कामना है !
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05 सितंबर 2021
‘गोविन्दम' 1512, कारनेशन-2,
गौड़ सौन्दर्यम् अपार्टमेंट, ग्रेटर नोएडा वेस्ट,
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