हाइकुकार डॉ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा जी के हाइकु
डॉ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा
हाइकु
हम मानव
दानव बन चुके
रोती प्रकृति ।
***
गुंडा बनूंगा
यही दुनिया है जी
संस्कृति शून्य ।
***
रोती प्रकृति
कराहता संसार
कहां हो लल्ला ?
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भारत माता
अंतर्ध्यान हो चुकी
बिखरा देश ।
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नंगा है कौन
फैशनेबल लोग !
फटी ग़रीबी ?
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आधुनिकता!
भौतिकता, फ़ैशन!
नई संस्कृति ?
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पापी बनूं या
बनूं आदर्शवादी
असमंजस ।
***
विडम्बना है
राष्ट्रपिता भी बापू
कैदी भी बापू ।
***
भागते लोग
दिशाहीन लक्ष्य को
भटके लोग ।
***
नारी पुरुष
एक दूजे के लिए
दूर हो गये ?
*****
~ डाॅ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा
बरगढ़ (ओड़िशा)
चलभाष - 9337311721
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