हाइकुकार
डॉ. आनन्द प्रकाश शाक्य "आनन्द"
हाइकु
सूर्य मायूस
गलन भरी सर्दी
धूप बेबस ।
तन जर्जर
कल्पना है स्वर्णिम
मन रंगीन ।
फैला आतंक
सघन कोहरे का
ठिठुरी सृष्टि ।
ऋतु हेमंत
शीत दिग-दिगन्त
आदि न अंत ।
उड़ते पक्षी
नील गगन में ज्यों
पुष्प मालायें ।
बरसे मेघ
वे ठूँठ हरियाये
जीवन पाये ।
वयाँ चिड़िया
कुशल अभियंता
वाह! घोंसले ।
अस्ताचल में
सूरज खेले होली
मले गुलाल ।
समय नदी
बहती कल-कल
आया न कल ।
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