हाइकुकार
डॉ.अखिलेश शर्मा
हाइकु
बूँदों का हास
बादल की ठिठौली
पावस ऋतु ।
प्रकृति प्रेम
मानव का प्रयास
वृक्षारोपण ।
मेघाच्छादित
गहन प्रदर्शित
नभ अदृश्य ।
बूँद नर्तन
हरित दूब पर
छनन छन ।
प्रीति प्रवेश
पवन राग पर
नेह अशेष ।
सूखी नदिया
गतिशील हो चली
फिर से भैया ।
नयन आस
फलीभूत हुई है
कृषक खुश ।
ताल तलैया
फिर नाव चलेगी
हैया रे हैया ।
कमल खिले
सूखे पोखर बीच
भ्रमर डोले ।
तेज गर्जना
तड़कती दामिनी
डरी यामिनी ।
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