हाइकुकार
प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
हाइकु
नवल ऊषा
खिल उठी कलियाँ
मोद नियंता ।
ठूँठ निराश
बारिश ने जगाई
कोंपल आस ।
जलती बत्ती
मोम पिघल देता
सहानुभूति ।
छाँव में ग़ुमा
धूप के सफ़र में
खुद को पाया ।
वृक्ष है चुप
हवा,पानी व धूप
सँवारें रूप ।
छांव व धूप
जीवन के दो रूप
सुख व दुःख ।
पीली पत्तियां
पकड़ हुई ढीली
छूटी डालियां ।
ठिठके पाँव
ठहर गई धूप
छाँव के गाँव ।
रब पालक
हम सब इसके
नन्हे-बालक ।
मन में भेद
कैसे करोगे रफू
दिल के छेद ?
पत्ते झरते
डाली छोड़ दी साथ
किसे कोसते ।
सुख सहज
दुःख के सफर का
चुकाता कर्ज ।
भीड़ दिखावा
साथ यहाँ छलावा
चल अकेला ।
मिट्टी के घर
बेहद मजबूत
रिश्ते पकड़ ।
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