हाइकुकार
गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
हाइकु
पतनोन्मुखी
धर्म की राजनीति
मूकदर्शक ।
मरणोन्मुख
राजनीति का धर्म
मूल्यहीनता ।
मौकापरस्त
धोखे में सिद्धहस्त
जनता पस्त ।
देश पहले
यही उत्कृष्ट धर्म
धरा का कर्ज ।
घाव गहरा
माता पिता उपेक्षा
सदमा लगा ।
तपता सूर्य
निढाल मजदूर
पैरों में छाले ।
सत्य अकेला
लड़ता असत्य से
देखो तमाशा ।
सेंकते रोटी
मजहब की भट्ठी
देश के नेता ।
लंपट योग
दूध के धुले लोग
करते भोग ।
संवाद हीन
अपराध संगीन
मानव मीन ।
कथनी भिन्न
कर्म छिन्न विछिन्न
भाषायी जिन्न ।
बिकता कवि
डूबता हुआ रवि
धूमिल छवि ।
पीड़िता मृत
संबन्धी आतंकित
न्याय लंबित ।
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