हाइकु कवयित्री
क्रांति
हाइकु
सागर तट
लहरों में तैरता
मृत शरीर ।
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अश्कों की धार
रोके नहीं रुकते
समय चक्र।
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झील किनारे
बेसुध पड़ी बाला
कोमल काया ।
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रात की बेला
उड़ रहा है पंछी
दाना तलाश ।
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डोलती नाव
ठंडी हवा भरती
दिल के घाव ।
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□ क्रान्ति
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