हाइकुकार
निगम राज़
हाइकु
पुरानी बस्ती
आज तक जो मेरी
बताती हस्ती ।
-^-
कल जो बिखरे
थे पोटली के रिश्ते
मिले छितरे ।
-^-
जगाने वाली
कहानियाँ सुनातीं
दादी निराली ।
-^-
महकाती हैं
ख़ुशियाँ ही आँगन
चहकाती हैं ।
-^-
ये शैतानियाँ
बच्चों की भर लाईं
किलकारियाँ ।
-^-
अंगड़ाइयाँ
छेड़ कर बजाती
शहनाइयाँ ।
-^-
मुस्कुराते हैं
उम्र की ढलान पे
हम गाते हैं ।
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महकाती हैं
ख़ुशियाँ ही आँगन
चहकाती हैं ।
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ये शैतानियाँ
बच्चों की भर लाईं
किलकारियाँ ।
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अंगड़ाइयाँ
छेड़ कर बजाती
शहनाइयाँ ।
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मुस्कुराते हैं
उम्र की ढलान पे
हम गाते हैं ।
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□ निगम राज़
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