हाइकु कवयित्री
पुष्पा सिंघी
हाइकु
शब्द तरसे
वनवासी मनवा
मेघ बरसे ।
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संदली रात
शहनाई बजातीं
शब्द बारात ।
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उषा उतरीं
सतरंगी डोली में
गीतिका झरी ।
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शब्द-कैक्टस
बिन उगाये उगे
गली-गली में ।
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□ पुष्पा सिंघी
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