हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 20 मई 2021

~•~ हाइकु कवयित्री आरती परीख जी के हाइकु ~•~

हाइकु कवयित्री 

आरती परीख


हाइकु 

--0--


शिशिर ऋतु

धूँध दुपट्टा ओढ़े

शर्मिली संध्या ।


शीत लहर

सूरज सुलगाए

धूप अंगीठी ।


नम्र हो चले-

सूरज के तेवर

शीत लहर ।


नदियाँ नाली

धूप चूनर ओढे

अँगडाई ले ।


कातिल हवा

काँपे गाँव-शहर

धूप ही दवा ।


शीत ॠतु में

सब की पहली चाह

धूप चादर ।


शिशिर धूप

शीत लहरों संग

रेत में खेले ।


कभी तपना

कभी है ठिठुरना

कैसी है धूप ?


तन को प्यारी

आँगन में खेलती

जाड़े की धूप ।


धूप सवारी

खेत पर्वत गाँव

कोहरा भागा ।


पेड़पौधों पे

शीत मारता चाँटे

धूप ममता ।


बसंत आया

महके जर्रा जर्रा

हर्षित धरा ।


निशा की शाला

पढ़ें चांद सितारे

दृश्य निराला ।


सुबह प्यारी

कोहरे की सवारी

धूप पे भारी ।


रवि का ठेला

समंदर में गिरा

सांझ की बेला ।


तृण तृण से

ओस मोती चुराये

लुटेरी धूप ।


स्वर्णिम संध्या

अलौकिक नजारा

पर्वत कंघा ।


​सूरज कांध

युग युग से घूमे

आशा गठरी ।


चुरा ले गया

काले घने से बाल

वक्त लुटेरा ।


भास्कर राज

लहरों पर नाचे

स्वर्णिम जल ।


चुरा ले गई

सूरजकी किरणें

धूंध निगोड़ी ।

---00---


□ आरती परीख

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH