हाइकुकार
हेमन्त जकाते
हाइकु
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सूर्य की आग
ठंडक के लिए है
भागमभाग ।
न रोक पाया
मन पंछी को कभी
पिंजरा काया ।
रात हो गई
पहाड़ी राह पर
आँखें खो गई ।
रोये कोयल
बसंत के जाने से
मन घायल ।
नन्ही सी कली
कांटो के बीच पली
फिर भी खिली ।
अरी तितली
ये रंगों की दौलत
कहाँ से मिली ?
खिलती रही
बारिश में भी धूप
मिलती रही ।
चढ़ते रहे
काग़ज़ की नाव पे
डूबते रहे ।
बोलते नहीं
जानवर मूक हैं
छलते नहीं ।
जीवन जीना
अंत तक ये सांस
पड़ेगा खोना ।
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□ हेमन्त जकाते
नागपुर (महाराष्ट्र)
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