हाइकु कवयित्री
शर्मिला चौहान
हाइकु
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बीज रोपण
हँसती सहे चोट
धरा की छाती ।
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ऊष्मा भरती
संगोपन भ्रूण का
धरा मातृत्व ।
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मेघ दे नीर
नवजात झाँकता
जग में आता ।
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संबल माँ का
मूल दृढ़ आधार
पौधा तैयार ।
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बाल पादप
नभ देख मुस्काता
युवान होता ।
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समृद्ध वृक्ष
तने पर्ण फलों से
धरा मुस्काई ।
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□ शर्मिला चौहान
ठाणे (महाराष्ट्र)
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