हाइकु कवयित्री
शीला तापड़िया
हाइकु
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जर्जर तन
नव कोमल पात
उपजी आस ।
प्राची मुदित
रविराज उदित
स्वर्ण जड़ित ।
लक्ष्य साध ले
मन तीर बना ले
अज्ञान नाश ।
अक्षर मोती
मनोहारी लगते
गहने जैसे ।
किताबी रस
बचपन से पाया
सरस लगा ।
कटेंगें वृक्ष
भूमि नही सहेगी
कहेगी बात ।
पर्यावरण
हरियाला वसन
धरा ओढ़ती ।
कीट पतंग
चिड़ियों की आहट
वसुधा गान ।
रात चांदनी
कलश भर तारे
लुढ़का गई ।
जीवन चक्र
चलता ही रहता
सूर्य चन्द्रमा ।
शब्दो की गूंज
दूर तक पहुंची
ध्वनि शंख की ।
नयन नीर
सुख दुख के साथी
दोस्त पुराने ।
कांटो के बीच
धीरज है बांटता
फूल गुलाब ।
वक्त कठिन
ये बीत ही जायेगा
अंधेरी रात ।
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~ शीला तापड़िया
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