हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 8 जून 2021

~•~ हाइकु कवयित्री शीला तापड़िया जी के हाइकु ~•~

हाइकु कवयित्री

शीला तापड़िया


हाइकु 

--0--


जर्जर तन 

नव कोमल पात

उपजी आस ।


प्राची मुदित

रविराज उदित

स्वर्ण जड़ित ।


लक्ष्य साध ले

मन तीर बना ले

अज्ञान नाश ।


अक्षर मोती

मनोहारी लगते

गहने जैसे ।


किताबी रस 

बचपन से पाया

सरस लगा ।


कटेंगें वृक्ष

भूमि नही सहेगी

कहेगी बात ।


पर्यावरण

हरियाला वसन

धरा ओढ़ती ।


कीट पतंग

चिड़ियों की आहट

वसुधा गान ।


रात चांदनी

कलश भर तारे

लुढ़का गई ।


जीवन चक्र

चलता ही रहता

सूर्य चन्द्रमा ।


शब्दो की गूंज 

दूर तक पहुंची 

ध्वनि शंख की ।


नयन नीर

सुख दुख के साथी

दोस्त  पुराने ।


कांटो के बीच

धीरज है बांटता

फूल गुलाब ।


वक्त कठिन

ये बीत ही जायेगा

अंधेरी रात ।

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~ शीला तापड़िया

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