हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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सोमवार, 30 अगस्त 2021

लक्ष्मीकांत मुकुल के हाइकु (समीक्षा)

कोरोना काल में लक्ष्मीकांत मुकुल के हाइकु 

समीक्षक - जितेंद्र कुमार


  हाइकु जेन संतों की कविता है । बौद्ध धर्म ने भारत से चीन की यात्रा की और वहां से जापान की। बौद्ध धर्म की परंपरा में अध्यात्मिक ध्यान का बहुत महत्व है। चीनी भाषा में ध्यान को चान कहते हैं । चान जब चीन से जापान गया तो झेन हो गया । जापानी शब्द झेन जब अंग्रेजी साहित्य के संपर्क में आया तो जेन  (अंग्रेजी : Zen) हो गया । अंग्रेजी साम्राज्य से प्रभावित भारतीय मानस के लिए भी झेन जेन के रूप में स्वीकृत है। शब्द जब देश और काल की यात्रा करते हैं, तब अपना रूप बदल लेते हैं।

 हाइकु ध्यान और साधना की कविता है  जापान में । किसी क्षण विशेष की सघन अनुभूति की कलात्मक प्रस्तुति है हाइकु ।  सत्रहवीं सदी में हाइकु को काव्य विधा के रूप में जापानी संत मात्सुओ बासो  (1644 से 1694 ईस्वी) ने स्थापित किया था या, कहिए प्रतिष्ठित किया । ध्यान और साधना के चरम छणों में विचार, चिंतन और उसके निष्कर्ष की सौंदर्यानुभूति और  भावानुभूति को संत कवि ने प्राकृतिक बिंबों में व्यंजित किया । उन्होंने प्रकृति को माध्यम बनाकर मनुष्य की भावनाओं को तीन सार्थक पंक्तियों में शब्द दिया । पहली पंक्ति 5 अक्षरों की, दूसरी 7 अक्षरों की और तीसरी 5 अक्षरों की। मात्र सत्रह शब्दों में एक सार्थक काव्यात्मक भावबोध।

 भारतीय भाषाओं में सर्वप्रथम नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि रविंद्र नाथ ठाकुर ने जापान यात्रा से लौटने के पश्चात सन 1919 में "जापानी यात्री" में हाइकु छंद की चर्चा की और बंगला में दो जापानी हाइकु का अनुवाद  किया । हिंदी साहित्य में हाइकु छंद की कविताओं का भरपूर स्वागत हुआ है।

युवा कवि लक्ष्मीकांत मुकुल की 30 हाइकु कविताएं मेरे सामने हैं। उनकी पहली कविता जैन दर्शन का अतिक्रमण करती है, वह किसी ध्यान या साधना की अनुभूति को व्यंजित नहीं करती। बल्कि मनुष्य के सामने वैश्विक चुनौती के रूप में फैले कोरोना संक्रमण को कविता के विषय के रूप में पेश करती है-

पांव पसारा 

कोरोना का पिचास

 बंद जिंदगी !

        प्रकृति का प्रकोप मनुष्य को जरा भी संभलने का अवसर नहीं देता। चाहे वह अंडमान निकोबार में आई सुनामी तूफान की ऊंची ऊंची लहरे हों या लातूर का भूकंप। कोविड-19 के संक्रमण से दुनिया के लाखों मनुष्य और असमय काल कवलित हो गए । वे चौथी कविता में कोरोना को "पिषाच जैविक अस्त्र " के रूप में  व्यंजित करते हैं। कवि मेंं    तटस्थ    राजनीतिक चेतना है। उनकी ज्ञानात्मक संवेदना कोरोना संकट को जैविक  के  अस्त्र  के रूप में  परखती है। उनका अनुभव संसार ग्रामीण संवेदना सेे संपृक्त है। अपनी कविता के लिए हुए खेती किसानी और गांव देहात से  सटीक जीवंत ताजा बिंबों के माध्यम से व्यंजित करते हैं । कोरोना काल में कृषि कर्म बाधित है। जिन खेतों में कंकड़ पत्थर होते हैं, उसमें खेती करने में परेशानी होती है। एक हाइकु है -

उगा पहाड़

 खेतों के आंगन में 

पाथल टीला

 सांस्कृतिक परंपराओं को निभाना मुश्किल है। वसंत आया है, लेकिन मन उदास है । युवा कवि लक्ष्मीकांत मुकुल

 कोरोना संकट को प्रेम के शिल्प में व्यंजित  करते हैं -

लगा है जाब

सूंघने चूमने पे

उदास भौरें


रूठी हो तुम

कोरोना के भय से

छू न सका हूं


लहराया है

तीसी - फूलों - सा तेरा

नीला आंचल

 

         कभी पहली कविता में 'पिचास ' (संस्कृत : पिशाच ) और एक अन्य कविता में 'जाब' शब्द का अनूठा प्रयोग करते हैं । भोजपुर की ग्रामांचलों में आम लोग भूत-प्रेत के लिए "पिचास" शब्द का प्रयोग करते हैं । इसी तरह दुधारू गाय भैंसों के नवजात बच्चों के मुंह में "जाब" लगाकर रखते हैं, जिससे कि वह मिट्टी नहीं चाट सके। पहले दौनी के समय बैलों के मुंह में जाब लगाया लगा दिया जाता था , जिससे कि वह अनावश्यक दाना खाने में संलग्न नहीं हो जाए । कवि उस ग्रामीण परिवेश से अपनी कविता का बिंब चुनते हैं। यह नकली नहीं है । बल्कि उनकी काव्य भाषा को संप्रेषणीय और जीवंत बनाते हैं।

 युवा कवि लक्ष्मीकांत मुकुल आशा और जिजीविषा के कवि हैं। कोरोना संकटकाल में भी कवि की दृष्टि खेतों धान /मकई की आतुर बालों से सिवान को ढका पाती है। शिरीष के पके फल बीते युग ( कोरोना - काल) की खंजड़ी बजा रहे हैं , यहां तक कि बकुल झुंड पंक्ति बद्ध होकर नभ उड़ चले हैं , कवि के सपने खरहे की तरह फुदकते हैं ; एक नया अरुणोदय हुआ है; समय का धुंधलका बीत चुका है पूर्व क्षितिज पर लाली एक नये विहान का संकेत करती है-

आतुर बालें

निकली हैं खेतों में

ढका सिवान ।


शिरीष-फल

बजा रहे खंजडी

बीते युग की ।


बीत चुका है

समय धुंधलका

उगी है लाली

युवा कवि हाइकुकार लक्ष्मीकांत मुकुल ने अपने लिए अपने अनुभव संसार से संतुलित काव्य भाषा सृजित कर ली है। वे अपने कहन के लिए ग्राम्य - जीवन से ताजा काव्य बिंबों को चुनने और इस्तेमाल करने में समर्थ हैं।


 संपर्क सूत्र :

 मदन जी का हाता,

 आरा -  80 23 01 ,बिहार ।

मोबाइल नंबर - 99 311 71 611

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