हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शनिवार, 7 अगस्त 2021

हाइकुकार अभिषेक जैन जी के उत्कृष्ट हाइकु

हाइकुकार

अभिषेक जैन


हाइकु 

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भटका बेटा

पिता की झुर्रियों से

पूछता रास्ता


मिला था गुस्सा

चोके में धरकर

भूल गई माँ


फुसला रही

परिपक्व गरीबी

नन्ही जिद को


ट्रैफिक जाम

लबों के सिग्नल पे

ठहरे शब्द


ले गई उड़ा

संस्कारों की चुनरी

शहरी हवा


दौड़ने लगी

पी मध्यमा से पानी

सुस्त गड्डियाँ


दादा का पेट

बन गया है अड्डा

शरारतों का


दूल्हे की गाड़ी

सिसकियों ने किया

लम्बा सफर


ढहे सम्बन्ध

मलबे से निकली

मूर्छित आशा


हौलें से आई

गुदगुदा के भागी

शैतान हवा


हवा से बातें

करती नही थकी

सर्दी में रातें


हौसला उड़ा

उछलते ही रहे

भय के पैर


जाड़े की रुत

दाँतों ने मिलकर

बनाई धुन


जाड़े से भिड़ी

बार बार खदेड़े

वृद्ध की बीड़ी


धैर्य के घर

उतावली लालसा

हुई बेचैन


समेट लायी

गप्प की गठरियाँ

बातूनी बाई


पिता दरख़्त

बाँध रही बिटियाँ

ख्वाबों के झूले


साँझ की बैंक

सौंप आया दिवस

स्वर्णाभूषण


डकार गई

वैटर की बख्शीश

कुक की चूक


मौन हो गया

अहसानों के आगे

सच का मुख


कोमा में पिता

सालों से खूंटी पर

बंद छतरी


हरा भरा था

माँ की निगरानी में

रिश्तों का बाग


हो गई शाम

सूर्य के निबंध में

पूर्णविराम


होठों की हँसी

चल बसी जो मैया

दूर जा बसी


पार्टी में भर्ती

चापलूसी में दक्ष

हो गई जुबां


वर्षा से सीख

बिस्किट का हो गया

नर्म स्वभाव


सूरज का स्पा

निखर गई खूब

रात की त्वचा


बाल उद्यान

स्लाइड से फिसला

मुन्ने का डर


चमक रहा

रिश्तों की झालर से

मिट्टी का घर


मनाने चली

मुआवजें की राशि

भोले गमों को


झेल रही हैं

चीटिंग की पर्चियाँ

मोजे की गंध


चमका रही

ससुराल के भांडे

ख्वाबों की राख


दिलाने चली

बेटे को टेबलेट

माँ की कैप्सूल


ऊँघता घन

पोछ रही रश्मियाँ

भीगा आँगन


वृद्ध आश्रम

जहाँ तहाँ चिपके

यादों के जालें


गृह कलह

गॉसिप की रेसिपी

बाई को मिली

---00---


~ अभिषेक जैन

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