हाइकुकार
आर्विली आशेन्द्र लूका
हाइकु
वक़्त की मार
आवाज़ न करती
निपटा देती ।
न बिखरना
ज़िंदगी को आज़मा
रख हौसला ।
मुस्कुराकर
जो गम पीना सीखा
सफल हुआ ।
भूखा न सोये
फुटपाथों में कोई
मुहिम छेड़ें ।
प्रभु ने दिया
आशीष बेशूमार
हम भी बाटें ।
आग उगला
सूरज का ये गोला
तपती धरा ।
कटते वन
कांक्रीट की सड़कें
वजह बना ।
जल संचय
कर न पाएं हम
ये सोचें जरा ।
कटते वन
न खेलें प्रकृति से
बचायें वृक्ष ।
पौधे लगायें
सीचें जीवन भर
चैन से रहें ।
माता का स्पर्श
पाते ही आया हर्ष
मिला उत्कर्ष ।
माँ का आँचल
सुरक्षित रखता
हरेक पल ।
माँ का चरण
सुन्दर अंजुमन
करूँ नमन ।
मिली सुरक्षा
माता के आँचल में
बच्चे निडर ।
पिता का हाथ
सिर पर जिसके
करता नाज़ ।
ममत्व प्रेम
चिरस्थायी रहता
सुरक्षा देता ।
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