हाइकु कवयित्री
रूबी दास
हाइकु
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चाँद को लगी
अमावस की दृष्टि
चांदनी रुठी ।
गिद्ध ने कहा
बस करो ईश्वर
खाया न जाय ।
नेता की भूख
लकड़ी बनी प्रजा
सिंकती रोटी ।
नन्हा बालक
माँ की मुखाग्नि कर
अकेला लौटा ।
जैविक युद्ध
नहीं बजी दुंदुभि
लाशों का ढेर ।
ईश से भक्ति
मिली अपार शान्ति
हो जाये मुक्ति ।
वायु विषाक्त
प्रकृति है अस्वस्थ
सृष्टि विनाश ।
कली ने देखी
अचला की चमक
खिलने लगी ।
नक्षत्र भरा
बिछौना सुशोभित
शशि मुस्काये ।
चांदी सा चाँद
चैत्री चंद्र किरण
चमके चीना ।
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□ रूबी दास
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