हाइकुकार
अनिल मालोकर
हाइकु
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ज़माना नया
खुदगर्ज़ों का मेला
गुम है दया ।
गरीब गति
भूख से बुरा हाल
रात यूं बीती ।
करम करें
साधु-संतों ने कहा
रहम करें ।
जुल्म सहती
गीली आंखें बहू की
गंगा बहती ।
चमन सूखा
सेठ बुदबुदाया
माली है भूखा ।
आकांक्षा छोटी
ग़रीब को चाहिए
केवल रोटी ।
हुई नादानी
लो आ गई है याद
बातें पुरानी
लोक कला थी
परिवर्तन भारी
अब है डिस्को ।
कौन तारेगा
आत्मा अविनाशी है
कौन मारेगा ।
कोयला काला
अफसोस न कर
हाथ क्यों डाला ?
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□ अनिल मालोकर
रघुजी नगर, नागपुर (महाराष्ट्र)
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