हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

~ हाइकु मञ्जूषा फरवरी 2018 के चयनित हाइकु ~

हाइकु मञ्जूषा

फरवरी - 2018 के चयनित हाइकु
{ श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु संचयन }
संपादक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

( "हाइकु मञ्जूषा", "हाइकु - ताँका प्रवाह", एवं "हाइकु मंच छत्तीसगढ़" समूह से साभार । )


01.
सुरम्य शोभा
जगत सुरभित
भोर की आभा ।

✍पूर्णिमा सरोज

02.
बसन्त दूत
बौर देख करती
कुहू का शोर ।

✍सविता बरई

03.
लगा ग्रहण
उम्मीदों ने निखारा
चमका चाँद ।

✍रामेश्वर बंग

04.
देवदास सा
झूमता समीर है
पी मकरंद ।

✍के.के.वर्मा

05.
चहके पंछी
सागर लहराया
रवि उदित ।

✍रति चौबे

06.
रंगीला फाग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग ।

✍ऋतुराज दवे

07.
अमिया डाल
गाती कोयल काली,
विरह गीत ।

✍पूनम मिश्रा

08.
निखर उठा
काले उबटन से
शशि सलोना ।

✍रति चौबे

09.
रौशन देश
दीपक फिर बुझा
सरहद में ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

10.
शूल के पथ
कर्म करता चल
होगा सफल ।

✍रामेश्वर बंग

11.
बेटी बिदाई
बहे अश्रु की धारा
आँगन सूना ।

✍सविता बरई

12.
रवि आरोही
चल पड़ा है छूने
नभ-शिखर ।

✍सुधा राठौर

13.
राह भटकी
भू खनन से रोती
त्रस्त नदियाँ ।

✍वीणा शर्मा

14.
डंडे की चोट
बंदर का नाचना
है मजबूरी ।

✍क्रान्ति

15.
यादें सुहानी
जिंदगी की कहानी
करती बयां ।

✍क्रान्ति

16.
चंद्र साम्राज्य
तारे खिलखिलाते
मुस्काती निशा ।

✍रति चौबे

17.
चाँदी के बूटे
रजनी की चूनर
तारों ने टाँके ।

✍सुधा राठौर

18.
निभा कर्तव्य
चमके भाग्य रेखा
स्वर्णिम कल ।

✍रामेश्वर बंग

19.
मन उलझा
अनसुलझा रहा
कैसे सुलझे ?

✍वृन्दा पंचभाई

20.
बेटी पढ़ती
सदा आगे बढ़ती
राह गढ़ती ।

✍महेन्द्र देवांगन माटी

21.
चाँद मुस्काया
आकाश में बिखरी
चाँदनी छटा ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

22.
साथ चलते
नदी के दो किनारे
पर न मिले ।

✍वृंदा पंच भाई

23.
मीत बनाएँ
कटुता मिटा कर
प्रीत बढ़ाएं ।

✍परमेश्वर अंचल

24.
रख उर में
मधु मधुर रस
महके रिश्ते ।

✍रामेश्वर बंग

25.
चिंतन पथ
व्यथित भावनाएं
कथित सत्य ।

✍अविनाश बागड़े

26.
चुग रहे हैं
हवाओं के पखेरू
धूप की उष्मा ।

✍सुधा राठौर

27.
बाल की खाल
बनी ढोल न ढाल
कैसा कमाल ।

✍गंगा पाण्डेय भावुक

28.
सूरज हँसा
किरणे मुस्कुराई
भोर मुखर ।

✍अविनाश बागड़े

29.
अबला नारी
ना कह सकी पीर
दुःख की मारी ।

✍उषा शर्मा "साहिबा"

30.
धरा की छाती
फाड़ता है किसान
उगाता अन्न ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

31.
चने के खेत
चुग रही है धूप
ओस के हीरे ।

✍मंजु शर्मा

32.
उम्र की शाख़
झरने लगे पात
वक़्त के साथ ।
     
✍सुधा राठौर

33.
चाँद न तारे
अभिलाषा के पुष्प
सबसे प्यारे ।

✍बलजीत  सिंह

34.
शहरी फ्लैट
बिखरे परिवार
टूटते रिश्ते ।

✍रामेश्वर बंग

35.
सूरज उगा
धरती के तम को
पल मे चुगा ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

36.
बसंत आया
अंग अंग समाया
मन बौराया ।

✍मधु सिंघी

37.
खेत विरान
कट गयी फसलें
बाकी लगान ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

दर्द सी रहा
कब तक सहता
अब जी रहा ।

✍मनीलाल पटेल

39.
जीवन रंग
सूखे पत्तो में ओस
जख्म का सीना ।

✍भीष्मदेव होता

40.
हर घर में
है सुगबुगाहट
फाग आहट ।
                
✍सुधा राठौर

41.
रिश्ते अचूक
स्वार्थ की पगडण्डी
रही विमुख ।

✍भीष्मदेव होता

42.
सर्वस्व दान
गौ माता वरदान
पशु महान

✍ऋतुराज दवे

43.
माँ की सूरत
आईना बेटियों की
नेक नियत ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

44.
बासंती सोच
महकाती जीवन
लाती बहार ।

✍रामेश्वर बंग

45.
चमक रहा
तृण तृण में ओस
ओस में सूर्य ।

✍आरती परीख

46.
माटी की काया
माटी में मिल जाए
फिर भी दर्प ।

✍अयाज़ ख़ान

47.
टेसू दहका
वसंत के आंगन
मन महका ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

48.
सूरज जागा
पंछी चहचहाएं
प्राची के गाँव ।

✍सुधा राठौर

49.
प्रीत तुम्हारी
महक रहा मन
गुलाब क्यारी !

✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"

50.
तेरी नेमत
चलती हुई साँस
मेरी किस्मत ।

✍अविनाश बागड़े

51.
दोहरी नीति
श्वेतपोश खेलते
गरीब ठगे ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

52.
महल दुःखी
काँटो में रहकर
गुलाब सुखी ।

✍ऋतुराज दवे

53.
पुराना धन
"स्मृतियों" के सन्दूक
झाँकता मन ।

✍ऋतुराज दवे

54.
अक्षत आशा
मन का जख्म भरे
ज्ञान पिपासा ।

✍भीष्मदेव होता

55.
बहे सरिता
करने उपकार
धरा पुनिता ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

56.
सूखते पात
तन्हा हैं टहनियाँ
वक़्त के साथ ।

✍सुधा राठौर

57.
सहेजा प्यार
दिल की किताब में
यादें गुलाब ।

✍ऋतुराज दवे

58.
दोस्ती के क्षण
खट्टी -मीठी सी यादें
पराग कण ।

✍वीणा शर्मा

59.
बिखरी आभा
भोर है सुशोभित
जग हर्षित ।

✍पूर्णिमा सरोज

60.
नयन नीर
आँखों से बह चले
सुनाते पीर ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

61.
सरसों फूली
ओढ़ चादर पीली
धरा सज ली ।

✍वृन्दा पंचभाई

62.
धुंधली संध्या
जलते नेह दीप
चिंतित तम ।

✍पूनम मिश्रा

63.
धरा के रंग
खिले सरसों संग
पीले हैं अंग ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

64.
खिली है धूप
बसंती बयार ने
दी है दस्तक ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

65.
मौन ये वन
पराग भरा पथ
भोर पावन ।

✍पूनम मिश्रा

66.
धरती पीली
सरसों ज्यों महकी
बेटी चहकी ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

67.
रंग है पीला
खेतों में है बिखरा
तन निखरा ।

✍मधु गुप्ता "महक"

68.
होली के रंग
तनमन भिगोये
बसंत संग ।

✍तेज राम नायक

69.
सरसों फूल
अठखेलियाँ करे
पवन संग ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

70.
रंग बिरंगे
प्रसूनों से सजके
प्रकृति झूमे ।

✍सविता बरई

71.
गुलाब जैसा
कांटों के संग जीना
हमने सीखा।।

✍देवेन्द्रनारायण दास

72.
चली  बयारें
लिये  फाल्गुन  राग
जग  रंगीली ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

73.
मछली रोती
कैसे दिखाए आँसू
पानी में होती ।

✍मुकेश शर्मा

74.
मिट्टी  न  धूल
विश्वास  से  महके
रिश्तों  के  फूल ।

✍बलजीत  सिंह

75.
मन चमन
महकता पराग
शब्द सुमन ।

✍रामेश्वर बंग

76.
घाव गंभीर
समय मरहम
घटाये पीर ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

77.
उठी न डोली
भर सका न बाप
दूल्हे की झोली ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

78.
गुलाब रोया
शहीद से लिपट
सुपुत्र खोया ।

✍स्नेहलता वर्मा

79.
परसा फूले
फागुन रंग खिले
वन प्रांत में ।

✍नरेश कुमार जगत

80.
कहाँ है रब?
सुनता क्या अजान?
मैं अनजान ।

✍मनीभाई

81.
शान्ति की खोज
घण्टा में छिपकली
बैठती रोज ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

82.
सरसों फूल
वसुधा का श्रृंगार
पीत बहार ।

✍भीष्मदेव होता

83.
सखि बसंत
पिय के संग झूमे
मन बावरा ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

84.
वन की आग
टेसू गुनगुनाए
वासंती राग ।

✍भीष्मदेव होता

85.
हुआ अजान
अल्ला हू अकबर
रब को जान ।

✍मधु गुप्ता "महक"

86.
सीमित चाह
किसान स्वप्न जोहे
बादल राह ।

✍ऋतुराज दवे

87.
प्रेम प्रतीक
विरह में दहका
खिला पलाश ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

88.
सब है एक
मंदिर या मस्जिद
माथा तो टेक ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

89.
बहा ले जाती
दुःख दर्द समेटे
माँ है नदिया ।

✍ए. ए. लूका

90.
छिपी किरणें
किसका अनुराग,
उडे पराग ।

✍पूनम मिश्रा

91.
राह रोक ली
बदलियों ने मिल
सूरज फ़ंसा ।

✍अविनाश बागड़े

92.
भटके नभ
सूरज खोता मार्ग
बरसे नैन ।

✍पूनम मिश्रा

93.
भोली सूरत
हृदय में बसती
माँ की मूरत ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

94.
निष्फल चोट
माँ सुरक्षा कवच
आंचल ओट ।

✍ऋतुराज दवे

95.
बेटी बेचारी
अभावों की दुलारी
मां की लाचारी ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

96.
जीवन धूप
पिता का समर्पण
छाते का रूप ।

✍ऋतुराज दवे

97.
माँ का चमन
फूल और खुशबू
भाई - बहन ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

98.
पिता का मन
मधुर नारियल
बाहर सख्त ।

✍सुरंगमा यादव

99.
एक दूजे के
पूरक नर नारी
न प्रतिद्वंद्वी  ।

✍सुरंगमा यादव

100.
आधुनिक  स्त्री
श्रद्धा इड़ा का रूप
प्रगतिशील ।

✍सुरंगमा यादव

101.
फूल बेबस
तितली को कसक
भौंरे पे शक ।

✍राकेश गुप्ता

102.
गालों पे गड्ढे
पड़ते हैं उनके
गिर जाता मैं ।

✍राकेश गुप्ता

103.
निशा ने बांधे
चांदनी के नुपूर
नाचें अनंग ।

✍हेमलता मिश्र

104.
चंद्र बिंदिया
सुहाग भरी निशा
घूंघट किया ।

✍हेमलता मिश्र

105.
जगत माता
ऐ नारी तुम बिन
सब अधूरा ।

✍क्रान्ति

106.
बहक मत
संभलकर सदा
ढलता चल ।

✍परमेश्वर अंचल

107.
साँकल बजी
आत्म-मुग्धा कामिनी
द्वार पे खड़ी ।

✍पुष्पा सिंघी

108.
देते हैं दिशा
जीवन पथ पर
हमारे पिता ।

✍रामेश्वर बंग

109.
वरदहस्त
पिता सघन छाया
ज्यों वट वृक्ष ।

✍डाॅ. आनन्द शाक्य

110.
विश्वास पूंजी
पति पत्नी के बीच
रिश्तों की डोरी।

✍मनीभाई"नवरत्न"

111.
मोती झरते
नयनों के निर्झर
भीगे कपोल ।

✍डाॅ. संजीव नाईक

112.
आंखों का पानी
जीवन की कहानी
पीर पुरानी ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

113.
बेटी की विदा
आँसुओं की बारात
आँखों के द्वार ।

✍ऋतुराज दवे

114.
एक से लगे
झूठे आँसू लूटेरे
मासूम ठगे ।

✍ऋतुराज दवे

115.
मन निचोड़ा
यादों भरी कोठरी
आँसू से धोया ।

✍ऋतुराज दवे

116.
टूटते स्वप्न
उदास मन झरे
नयन नीर ।

✍रामेश्वर बंग

117.
गोरखधंधा
नाम नयनसुख
आँख का अंधा ।

✍डॉ. राजीव कुमार पाण्डेय

118.
चांद सी रोटी
दिखते स्वप्न कई
ना होते पूरे ।

✍उषा शर्मा "साहिबा"

119.
राजमहल
नींद से जाग उठा
सपना टूटा ।

✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

120.
लौटेगा पुत्र
जलाये नेत्र ज्योति
वह बूढ़ी माँ ।

✍डाॅ. आनन्द शाक्य

121.
प्रणय गीत
लिखती रहीं आँखें
अश्रु लेखनी ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

122.
स्वप्न से भरा
आंखों में तैर कर
अश्रु क्यों गिरा ।

✍सुशील शर्मा

123.
आँसू व व्यथा
रोके नहीं रुकते
कहते कथा ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

124.
नयन नीर
आँखों से बह गये
सुनाते पीर ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

125.
अश्रु में डूबे
जख्म सारे धो गये
नयन मेरे ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

126.
उषा ठिठुरी
काँपती दुपहरी
निशा सिहरी ।

✍सुधा राठौर

127.
नारी की हठ
जैसे लक्ष्मण रेखा
दृढ़ अकाट्य ।

✍मनीलाल पटेल

128.
छवि तुम्हारी
माँ है बहुत प्यारी
लगती न्यारी ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

129.
जगत माता
ऐ नारी तुम बिन
सब अधूरा ।

✍क्रान्ति

130.
मोह में अंधी
सिंहासन लालसा
माता कैकयी ।

✍कमल शर्मा 'बेधड़क'

131.
लाल सिंदूरी
सुबह का सूरज
आभा अनोखी ।

✍सरला सिंह शैल कृति

132.
चूड़ी सुहाग
जीवन भरे साज
मधुर राग ।

✍वीणा शर्मा

133.
खनका रहा
अनबुने सपने
मन गुल्लक ।

✍आरती परीख

134.
कोयल राग,
खिलते झूमे बौर,
घुलती मिश्री ।

✍पूनम मिश्रा

135.
दुबका बैठा
बादल ये बेचारा
रवि से हारा ।

✍सुधा राठौर

136.
"गुरु" कुम्हार
भीतर हाथ ओट
बाहर चोट ।

✍ऋतुराज दवे

137.
गुरु का ज्ञान
जीवन पथ पर
देता प्रकाश ।

✍रामेश्वर बंग

138.
स्वार्थ के गुरू
दक्षिणा में अंगूठा
माँगते मिले ।

✍डॉ. राजीव पाण्डेय

139.
आँखें खोलती
मन की पाठशाला
रस घोलती ।

✍डाॅ. संजीव नाईक

140.
स्व शिष्य मोह
एकलव्य से छल
कैसा गुरुत्व ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

141.
यह जिन्दगी
एक खुली पुस्तक
पढ़े तो कोई ।

✍देवेन्द्र नारायण दास

142.
ज्ञान की वूटी
जीवन उपहार
मिटे विकार ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

143.
जीवन पोथी
श्वेत पृष्ठ है कोई
कोई धूमिल ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

144.
बने सुलेख
गुरु-चरण बैठ
लिखूँ जो लेख ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

145.
बिकती शिक्षा
अभिशप्त व्यवस्था
शिष्यत्व शून्य ।

✍डॉ. राजीव पाण्डेय

146.
मन पुस्तक
कठिन है पढ़ना
रहस्य गूढ़ ।

✍संजीव नाईक

147.
गुरु शरण
विनयी पुष्प मन
सदा बसन्त ।

✍पुष्पा सिंघी

148.
बसन्त गीत
प्रेम की पाठशाला
पढ़ते मीत ।

✍किरण मिश्रा

149.
गुरु तराशे
अनगढ़ पत्थर
पूजे जगत ।

✍पुष्पा सिंघी

150.
बोते हैं ज्ञान
पाठशाला में गुरू
उगे भविष्य ।

✍किरण मिश्रा

151.
झरते पत्ते
दे जाते नव आशा
सृष्टि का सार ।

✍रामेश्वर बंग

152.
धीर-अधीर
लाल-गुलाब-भाषा
आशा-प्रत्याशा ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

153.
दर्प दर्पण
अतिकृत उत्कंठा
नष्ट प्रतिष्ठा ।

✍नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

154.
मुट्ठी में आशा
कठिन डगर है
घना कुहासा ।

✍सुशील शर्मा

155.
हवा न आग
उम्मीदों के सहारे
जले चिराग ।
     
✍बलजीत  सिंह

156.
भ्रमित मन
लालसा मरीचिका
भटके तन ।

✍ऋतुराज दवे

157.
श्रृंगार नहीं
पुष्प की अभिलाषा
शहीदी पथ ।
    
✍मुकेश शर्मा

158.
खिला कमल
प्रेम की अभिलाषा
पुष्प हृदय ।

✍किरण मिश्रा

159.
आशा निराशा
सिक्के के दो पहलू
अंध उजास ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

160.
न हो निराश
अंधकार में प्रात
छिपाये गात ।

✍सुरंगमा यादव

161.
मन धरती
नव आशा अंकुर
लहक उठी ।

✍सुरंगमा यादव

162.
बड़ी लालसा
व्याकुल मन प्राण
क्षितिज दूर ।

✍डॉ. राजीव पाण्डेय

163.
अभिलाषा है
बने देश हमारा
जगत गुरू ।

✍संजय डागा

164.
उर के भाव
सुन्दर रुप मिले
हर पन्नों पे ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

165.
आशा के दीप
चहुं ओर प्रदीप्त
रेत के सीप ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

166.
आशा सींचती
जीवन की बगिया
सदा खिलती ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

167.
आशा-सुमन
महके-मुरझाये
यही जीवन ।

✍पुष्पा सिंघी

168.
सबल आशा
जीवन परिभाषा
भावी प्रत्याशा ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

169.
सितारों जड़ी
फलक की चुनरी
चाँद ने ओढ़ी ।

✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"

170.
रजनी सजी
ओढनी सितारों की
दुल्हन लगी ।

✍वीणा शर्मा

171.
लटका चाँद
क्षितिज छोर पर
हँसिया जैसा ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

172.
तारों का रेला
टहनी पर अटका
चाँद अकेला ।

✍मीनाक्षी भटनागर

173.
चाँदनी छाई
धरती पे चांदी की
पर्त  बिछाई ।
                                 
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

174.
श्रेष्ठ  विधान
सूरज  से  मिलता
दिशा  का  ज्ञान ।

✍बलजीत  सिंह

175.
टूटे जो तारे
करें मनोकामना
दुखी बेचारे ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

176.
हँसी रजनी
उजास बाँट रही
चन्दा चिमनी ।

✍पुष्पा सिंघी

177.
भोर का रवि
बाँटे ऊर्जा के बीज
मन की जमीं ।

✍ऋतुराज दवे

178.
किरण हार
सूरज के घोड़े पे
रश्मि सवार ।

✍ऋतुराज दवे

179.
धूप टोकरी
सूरज माथे पर
दौड़ती भूख ।

✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

180.
तेरा चेहरा
आसमान में चांद
आंखे हैं तारे ।

✍सुशील शर्मा

181.
रात का तम
चांद का मलहम
भरते ज़ख़्म ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

182.
किसे ब्याहने
सितारों की बारात
लाया है चाँद ।

✍सुरंगमा यादव

183.
रवि किरणें
बिखरी धरा पर
आई मिलने ।

✍आर्विली आशेन्द्र लूका

184.
करते श्रम
उगते रवि संग
फैले उमंग ।

✍वृन्दा पंचभाई

185.
चांदनी रात
नदी खिलखिलाके
दिखाये दांत ।

✍मनीलाल पटेल "मनीभाई"

186.
सूरज उगा
घना तिमिर भगा
जगत जगा ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

187.
सूरज ढला
चाँद का आगमन
सन्ध्या मुस्काई ।

✍डॉ. राजीव कुमार पाण्डेय

188.
दिखे सितारे
विटप में लटके
जूगनू प्यारे ।

✍भीष्मदेव होता

189.
कर्म तप है
मधुमय साधना,
भू कर्म क्षेत्र ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

190.
तन जर्जर
बढ़ी तृष्णा भँवर
मन कातर ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

191.
कर्म की पूजा
उन्नति का है मन्त्र
राह न दूजा ।

✍किरण मिश्रा

192.
भ्रमित दशा
जगत मरीचिका
माया की तृषा ।

✍ऋतुराज दवे

193.
जीवन सार
कर्म के हाथों खुले
मोक्ष के द्वार।

✍वीणा शर्मा

194.
राह भटके
तृषा की मरीचिका
कष्ट दिलाए ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

195.
चढ़ अटारी
माया खूब नचाती
रचे नौटंकी ।

✍मीनाक्षी भटनागर

196.
भवसागर
नौका परोपकार
किनारा मोक्ष ।

✍संजीव नाईक

197.
जीवन धर्म
हस्त रेखीय कर्म
भाग्य का मर्म ।

✍डॉ राजीव पाण्डेय

198.
कर्म ही धर्म
फल मिले न मिले
स्वयं दीपक ।

✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

199.
सबकी चाह
प्रत्यक्ष या परोक्ष
केवल मोक्ष ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

200.
तन जर्जर
बढ़ी तृष्णा भँवर
मन कातर ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

201.
तृषा की अग्नि
ईर्ष्या की लकड़ियां
माया पवन ।

✍सुशील शर्मा

202.
मोक्ष की तृषा
माया-काया जाल में
शिकारी हँसा ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

203.
माया नगरी
ढोता फिरे मानव
लोभ गठरी ।

✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"

204.
धन का लोभ
मरीचिका औ तृषा
अमिट चाह ।

✍स्नेहलता "स्नेह"
  
205.
मृग की तृषा
अदृश्य मरू जल
घोर प्रत्याशा ।

✍मधु गुप्ता "महक"

206.
नेक ईरादा
दया व कर्म खोले
मोक्ष का द्वार ।

✍क्रान्ति

207.
मोक्ष के द्वार
मुक्त हुए कैद से
पंच विकार ।
                
✍भीष्मदेव होता

208.
कर्म किए जा
फल की न हो  इच्छा
फूल खिलेगा ।

✍अनिता मंदिलवार सपना

209.
मेरे समीप
दूर तक फैले हैं
पीड़ा के द्वीप  ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

210.
युद्ध सदैव
है अकल्याणकारी
विनाशकारी ।

✍डॉ. रंजना वर्मा

211.
बनें प्रबुद्ध
हे! सम्यक् सम्बुद्ध
करें न युद्ध ।

✍डाॅ. आनन्द शाक्य

212.
जग उत्थान
मन  प्रेम कस्तूरी
शांति आह्वान

✍मीनाक्षी भटनागर

213.
शांति कपोत
हुआ लहूलुहान
बुझती ज्योति ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

214.
युद्ध का दंश
सदियां अपभ्रंश
झेलता वंश

✍डॉ राजीव पाण्डेय

215.
युद्ध विनाश
संस्कृतियों का नाश
मनुज ह्रास !

✍किरण मिश्रा

216.
पीड़ा ने लिखी
आंसू की कलम से
भाग्य को चिठ्ठी ।
      
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

217.
सूखा सावन
पीड़ा का महाकाव्य
रचते आंसू ।

✍पुष्पा सिंघी

218.
रोटी महिमा
वही गाये जो जाने
भूख की पीड़ा ।

✍मनीभाई "नवरत्न"

219.
सुखद पीड़ा
प्रस्फुटित अंकुर
धरा की कोख ।

✍सुरंगमा यादव

220.
रक्त जो सींचे
खिले स्वेद के पुष्प
कर्म बगीचे ।

✍ऋतुराज दवे

221.
विरोधाभास
शांति के नाम पर
युद्ध हुँकार ।

✍ऋतुराज दवे

222.
रक्त से लाल
समर की मेदिनी
बिछती लाशें ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

223.
समर-कथा
कौन शमन करे
मनुज-व्यथा ।

✍पुष्पा सिंघी

224.
कलह ज्वार
बैर का ज्वालामुखी
करे विनाश ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

225.
मीडिया रचे
पीड़ाओं के प्रपंच
बिकते पंच ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

226.
मन की पीड़ा
सुनकर गुनोगे
उठाओ बीड़ा ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

227.
पावन काम
नव प्राण संचार
शोणित दान ।

✍भीष्मदेव होता
        
228.
युद्ध है जारी
ममता को कोसती
भ्रूण बेचारी ।
       
✍भीष्मदेव होता

229.
गुलाब रोया
शहीद से लिपट
सुपुत्र खोया ।

✍स्नेहलता वर्मा

230.
परसा फूले
फागुन रंग खिले
वन झाड़ में ।

✍नरेश कुमार जगत

231.
चली बयार
लिये फागुन राग
जग रंगोली ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

232.
खिली है धूप
वासंती बयार ने
दी है दस्तक ।

✍मधु गुप्ता

233.
रंग-बिरंगे
प्रसूनों से सज के
प्रकृति झूमे ।

✍सविता बरई

234.
हुआ अजान
अल्ला हू अकबर
रब को जान ।

✍मधु गुप्ता "महक"

235.
सब है एक
मंदिर या मस्जिद
माथा तो टेक ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

236.
कहाँ है रब ?
सुनता क्या अजान ?
मैं अनजान ।

✍मनीलाल पटेल

237.
चहके कुंज,
गूंजे चिडिया स्वर,
बुनते नीड ।

✍पूनम मिश्रा

238.
प्रात: समीर
छूती कोमल भोर
हंसता कुंज ।

✍पूनम मिश्रा

239.
फूल ये कहें
काटाें के संग हम
प्रेम से रहें ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

240.
प्रेम है त्याग
वासना का संसार
जलाता आग ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

241.
प्रेम कपास
है बुने चदरिया
प्रीत उजास ।

✍मीनाक्षी भटनागर

242.
नवल सृष्टि
संदली पहचान
प्रेमिल दृष्टि ।

✍मीनाक्षी भटनागर

243.
प्यार की धारा
जीवन की नैया को
देती सहारा ।

✍बलजीत  सिंह

244.
प्रेम का भ्रूण
गर्भपात दग़ा से
लक्ष्य वफ़ा से ।

✍शेख शहज़ाद उस्मानी

245.
मौसम लिखे
प्रकृति पत्र पर
प्रेम के छंद ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

246.
सुमन शय्या
समर्पण की रात
हँसे प्रभात ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

247.
मन भिगोए
स्मृतियों के बादल
दिल पे छाए ।

✍ऋतुराज दवे

248.
चुप हैं शब्द
प्रेम का मौन स्पर्श
छू लेता मन ।

✍ऋतुराज दवे

249.
पहला प्यार
अप्राप्य उपलब्धि
स्मृतियां शेष ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

250.
एक स्वरूप
प्रेम ही परमात्मा
दूजा न रूप ।

✍किरण मिश्रा

251.
महकी रूह
खिला मन आँगन
प्रेम सुमन ।

✍किरण मिश्रा

252.
प्रेम से बुना
बिखरा हुआ स्वप्न
स्मृति के धागे ।

✍सुशील शर्मा

253.
तुम्हारी स्मृति
पीत अमलतास
झरते फूल ।

✍सुशील शर्मा

254.
स्मृति दिलाये
हर राह गुजरी
आँखों में नमी ।

✍तुकाराम पुंडलिकराव खिल्लारे

255.
प्रेम जो खिला
जीवन रेगिस्तान
मन भी हरा ।

✍वीणा शर्मा

256.
स्मृति - बयार
छुकर गुजरी तो
चुभी शूल-सी ।
    
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

257.
चमक उठी
नैनों में बन मोती
प्रेम की ज्योति ।

✍मनीभाई "नवरत्न"

258.
शलभ जले
रौशनी भ्रमजाल
प्रेमांध कीट ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

259.
बीते लमहा
यादों का पुलिंदा है
रखो सहेज ।

✍रविबाला "सुधा" ठाकुर

260.
प्रिय बिछोह
करे व्यथित मन
अश्रु धार दे ।

✍रविबाला "सुधा" ठाकुर

261.
नभ से धरा
सूरज की किरणें
आती मिलने ।

✍केवरा यदु "मीरा "

262.
ये बाल स्मृति
भुलाए न भूलती
साथ रहती ।

✍सविता बरई

263.
पिता की स्मृति
वट वृक्ष की छाया
है सुखदायी ।
     
✍मधु गुप्ता "महक"

264.
प्रेम का बीज
उग रही स्मृतियां
हृदय चीर !

✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"

265.
प्रेम दिवस
दिखावा भरपूर
प्रेम काफूर ।

✍पुष्पा सिंघी

266.
तस्वीर देख
पुरानी छत रोती
स्मृति बपौती ।

✍पुष्पा सिंघी

267.
वियोग-जेल
स्मृतियों की बेड़ियाँ
नियति-खेल ।

✍पुष्पा सिंघी

268.
क्षितिज गाँव
धरा-नभ मिलन
नेहिल छाँव ।

✍पुष्पा सिंघी

269.
जगायें भक्ति
सम्भव प्रभु मिलन
मिटे आसक्ति ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

270.
प्रेम सुमन
उदास जीवन में
लाए बसंत ।

✍रामेश्वर बंग

271.
प्रेम प्रसंग
उर स्पंद मृदंग
मन मलंग ।

✍दाताराम पुनिया

272.
बेटी वसंत
टेसू भरा आँगन
श्वास पर्यन्त ।

✍वीणा शर्मा

273.
बसन्त आया
कुहू कुहू कोयल
प्रसन्न चर्या ।

✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे       

274.
बसंत आया
सुगन्धि नाच उठी 
जग बौराया ।
                                   
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"             
           
275.
मन बसंत
खिला स्नेह की कली
महके रिश्ते ।

✍रामेश्वर बंग

276.
लुटा बसंत
कामुक था महंत
जीवन अंत ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

277.
फूल रंगोली
है धरा कैनवस
रचे प्रकृति ।

✍मीनाक्षी भटनागर

278.
मासूम कली
घर आँगन खिली
लगती भली ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

279.
भ्रमर गूँजें
मकरंद लालसा
पुष्प मित्रता ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

280.
कुच कलश
थरथराने लगे
काम के पुष्प ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

281.
प्रकृति नटी
मधुमय उमंग
हँसे सुमन ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

282.
बिटिया कली
मन आँगन खिली
चाहत मिली ।

✍डाॅ. संजीव नाईक

283.
खिली कोंपल
मासूम सी किल्कारी
गूंजा आँगन ।

✍उषा साहिबा

284.
पीली सरसों
केशरी है पलाश
पुष्प सुवास ।

✍सुशील शर्मा

285.
रंग अनंत
चित्रकार बसंत
सजा दिगंत  ।

✍सुशील शर्मा

286.
बासन्ती भोर
पलाश दिनकर
क्षितिज कोर ।

✍किरण मिश्रा

287.
नैन भ्रमर
मुकुलित कँवल
मनस सर !

✍किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"

288.
डाली का फूल
नाजुक सी जिन्दगी
करे कबूल ।

✍बलजीत सिंह
     
289.
तितली  रानी
रंगीन  फूलों  पर
हुई  दीवानी ।
     
✍बलजीत  सिंह

290.
फूलों की बातें
हवा हौले-से सुने
कहानी बुने ।

✍पुष्पा सिंघी

291.
भौंरा गुंजारे
जैसे कोई तपस्वी
मन्त्र उच्चारे ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

292.
पत्तियां देखें
पुष्प, भौंरे, बसंत
बनके संत ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

293.
नवोढा कली
बिखरी अधखिली
भाग्य का खेल ।

✍सुरंगमा यादव

294.
रजनी भागी
किरणों की थपकी
कलियाँ जागी ।

✍ऋतुराज दवे

295.
भंवरा गाये
कलियों को रिझाये
पराग पाये ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

296.
अल्हड़ कली
सहमी सी संभली
उर में अलि ।

✍दाता राम पुनिया

297.
आया बसंत
धरती आच्छादित
फूले रसाल ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

298.
न तोड़ कली
जग में आने तो दो
खुशियाँ देगी ।

✍रविबाला "सुधा" ठाकुर

299.
खिले सुमन
इठलाए चमन
पुलके मन ।
    
✍रविबाला "सुधा" ठाकुर

300.
बसंत राग
कोयल गाती कैसे ?
बनके कैदी ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

301.
बसंत ऋतु
सभी के मन भाए
जी भरमाए ।

✍मधु गुप्ता "महक"

302.
छाये बसन्त
हर मन तरंग
फूले पलास।

✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"

303.
फूल को देख
अलि गुनगुनाये
बाग में झूमे ।

✍सविता बरई

304.
ऋतु बसंत
कुहुकिनी कुहूके
डाल में झूले ।

✍सविता बरई

305.
आया बसंत
आम्र  कुंज महके
फूले पलाश ।

✍केवरा यदु

306.
ऋतु बसंत
कामदेव ने भेजा
खुशी अनंत ।

✍भीष्मदेव होता
       
307.
सरसों फूले
बसंत आगमन
चेहरे खिले ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

308.
वसुधा ओस
बटोरती किरणें
जागती भोर ।

✍पूनम मिश्रा

309.
रू-ब-रू लिखा
दो शब्द के मध्य में
हू-ब-हू लिखा ।

✍अल्पा जीतेश तन्ना

310.
जिंदगी दक्ष
नया कल देकर
छीनती उम्र ।

✍क्रान्ति

311.
आया सूरज
ले किरनों का रंग
भागा तिमिर ।

✍केवरा यदु 'मीरा

312.
आँगन मध्य
पिंजरे में तरसा
मिट्ठू चहका ।

✍शशि त्यागी

313.
मन के द्वार
खिलखिलाता प्यार
हो मनुहार ।

✍डाॅ. आनन्द शाक्य

314.
जीवन-ज्योति
मिट्टी के दीये में ज्यों
रौशनी होती ।

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

315.
कालिख खोह
पत्थर अनमोल
मिलते हीरे ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

316.
पत्थर पर
शिल्पी की नजरें ही
देखती मूर्ति ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

317.
मिट्टी के लोग
पत्थर बन कर
धूल में मिले ।

✍सुशील शर्मा

318.
ईश रचता
मानव होते भिन्न
माटी अभिन्न ।

✍मीनाक्षी भटनागर

319.
कड़वी बात
पत्थर पे खरोंच
टिकती याद ।

✍ऋतुराज दवे

320.
छानता धूल
कर्म ही होता मूल
बनता फूल ।

✍डाॅ. आनन्द शाक्य

321.
नदी का स्नेह
पत्थर बन रेत
रहता साथ ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

322.
खड़े पर्वत
अडिग अविचल
तपस्यारत ।

✍अभिषेक जैन

323.
पत्थर थामे
मिट्टी जमीन पर
नर्मी की शक्ति ।

✍शेख़ शहज़ाद उस्मानी

324.
मिट्टी की काया
कर जीवन कर्म
छोड़ अहम ।

✍रामेश्वर बंग

325.
विस्तृत नभ
क्षमताओं के पंख
उड़ते सब ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

326.
माथे पे लिखा
कैसे पढ़ती आँखें
भाग्य विधान ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

327.
नवप्रभात
ललछौही किरणें
धूप व छाँव ।

✍पूनम मिश्रा

328.
कुहू का डेरा
मंजरियों का गाँव
कूकों ने घेरा ।

✍इंदिरा किसलय

329.
मुग्ध आकाश
मखमली सेमल
रचाए रास ।

✍इंदिरा किसलय

330.
टूटे पिंजरे
सुख दुख से परे
परिन्दे उड़े ।

✍राकेश गुप्ता

331.
बड़ी सुरीली
भौंरों की शहनाई
पड़ी सुनाई ।

✍इंदिरा किसलय

332.
मस्ती के धागे
इश्क चादर बुन
आया फागुन ।

✍राकेश गुप्ता

333.
फाग के ढंग
खेल रहा अनंग
फूलों के संग ।

✍सुधा राठौर

334.
खिले सुमन
बही हवा सुगंध
हर्षित मन ।

✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"

335.
बादल फटा
बिखरे हैं जमीं पे
टूटे आईना ।

✍भीष्मदेव होता

336.
झरना कहे
जिंदगी परिभाषा
जर ठहर ।

✍डाॅ. मीता अग्रवाल

337.
नाचते गाते
उछल-उछल के
झरना झरे ।

✍केवरा यदु "मीरा"

338.
सूरज चला
एक नये सफर
नव प्रभात ।

✍पुरूषोत्तम होता

339.
पूजे जाते हैं
पत्थर के देवता
इंसान भूखे ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

340.
अस्ताचल में
सूरज खेले होली
मले गुलाल ।

✍डाॅ.आनन्द शाक्य

341.
महुआ खिला
जीवन का अंदाज़
फागुन आया ।

✍अविनाश

342.
इश्क खुमार
तैरा सो डूब गया
डूबा  सो पार ।

✍राकेश गुप्ता

343.
फागुनी गीत
पलाशी हुई प्रीत
होली की रीत ।

✍सुधा राठौर

344.
पलास फूल
जंगल लगे आग
केसर रंग ।

✍सरला सिंह "शैलकृति"

345.
जल भंडार
सागर तट पर
मेघों की टोली ।

✍कमल शर्मा "बेधड़क"

346.
भोर की बेला
अंबर में घुमेगा
सूरज छैला ।

✍आरती परीख

347.
अंधेरा भागा
इरादों का सूरज
मन में जागा ।

✍आरती परीख

348.
गीत विहग
चेतन अचेतन
पार्थिव राग ।

✍शैलमित्र अश्विनी कुमार

349.
शर्म का बोध
पश्चाताप सागर
डूबता क्रोध ।

✍ऋतुराज दवे

350.
किरणें हँसी
खिले जड़-चेतन
मिली ताजगी ।

✍कमलेश कुमार वर्मा

351.
आवारा मेघ
नकाब में चंद्रमा
डरी चाँदनी ।

✍भुपिंदर कौर

352.
आया अरूण
भू ने खोला घूंघट
खिला कमल ।

✍कमल शर्मा "बेधड़क"

353.
सुबह संझा
धूप-छांव की रेकी
धरा ने देखी ।

✍रंजना सिन्हा "सैराहा"

354.
वसुधा ओस
बटोरती किरणें
जागती भोर ।

✍पूनम मिश्रा

355.
दुर्गम पथ
आकाश हिमालय
फिर भी चढ़ ।

✍कमल नयन

356.
विधि-विधान
जीवन सुरक्षित
बीज में बंद ।

✍कमलेश कुमार वर्मा

357.
वक्त की आंधी
टूटे शाख से पत्ते
ढूंढते ठौर ।

✍रामेश्वर बंग

358.
संध्या समय
कतारबद्ध पंछी
घर की ओर ।

✍कमल शर्मा "बेधड़क"

359.
एक जीवन
बनाये उपवन
कर जतन ।

✍अविनाश बागड़े

360.
जीवन सार
कर्म के हाथों खुले
मोक्ष के द्वार ।

✍वीणा शर्मा

361.
आँखें मिलती
झुक कर उठती
मौन स्वीकृति ।

✍कमलेश कुमार वर्मा

362.
बेचते मोक्ष
आधुनिक ईश्वर
ठगें परोक्ष ।

✍गंगा पांडेय "भावुक"

363.
कटी पतंग
बाट जोहते प्राण
ढलती साँझ ।

✍अंशु विनोद गुप्ता

364.
नीम चमेली
गिलहरी फुदके
बिखरे गंध ।

✍पूनम मिश्रा

365.
तितली आगे
जिंदगी की दौड़ है
भंवरा पीछे ।

✍कश्मीरी लाल चावला

366.
हैरान धरा
उगाई थी फसलें
उगे मकान ।

✍अंजु गुप्ता

367.
राजमहल
नींद से जाग उठा
सपना टूटा ।

✍तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे

368.
धरा ने खेला
अम्बर संग रंग
मचा धमाल ।

✍सीमा सिंघल

369.
तेज लपटें
उड़ते हैं स्फुलिंग
जैसे जुगनू ।

✍इंदिरा किसलय

370.
अधीर धरा
किरण कलश से
है रंग झरा ।

✍इंदिरा किसलय
---00---

1 टिप्पणी:

  1. मेरे हाइकु को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दाश जी । सभी का हाइकु शानदार सभी को हार्दिक बधाई

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