हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

नूतन वर्ष के हाइकु : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


नूतन वर्ष के हाइकु 


01.
वर्ष नवल
पूरण हों सभी के
शुभ संकल्प ।

02.
नवीन वर्ष
पग पग में मिले
सदा उत्कर्ष ।

03.
ओस नवल
नव वर्ष का करे
भोर स्वागत ।

04.
नया है वर्ष
उग आया सूरज
भोर नवल ।

05.
व्याप्त हो हर्ष
उत्थान का उत्कर्ष
नूतन वर्ष ।

06.
नूतन वर्ष 
आओ छू लें क्षितिज 
नव संकल्प ।
---0---

□  प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

रविवार, 29 दिसंबर 2019

हाइकु कवयित्री डॉ. सुरंगमा यादव जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

डॉ. सुरंगमा यादव 

हाइकु

--0--


1.
पूस औ माघ
अलाव से माँगते
सभी पनाह ।
---0---

2.
भीषण ठंड
पुआल की रजाई
लड़ती जंग ।
---0---

3.
ठिठुरा दिन
पाला ग्रसित रात
झुलसे पात ।
---0---

4.
हाड़  के पार
सर्द हवा की धार
ज्यों तलवार ।
---0---

5.
धूप पाकर
बर्फीली हवाओं की
छूटी ठंडक ।
---0---

6.
सर्द हवाएँ 
पगली-सी फिरतीं 
दस्तक देतीं ।
---0---

7.
तुम्हारी यादें 
गुनगुनाता रहा
सर्दी में मन ।
---0---

8.
प्यार का साया
धूप-ताप से परे
सदा सुहाया ।
---0---

□ डॉ. सुरंगमा यादव

~हाइकुकार अंकुर सहाय "अंकुर" जी के हाइकु~

हाइकुकार

अंकुर सहाय "अंकुर"

हाइकु 
--0--

पायल बजी
बावरा मन चला
गांव की ओर ।

शिकायत है
बात नहीं सुनता 
मेरा विधाता ।

तिरते रहे
आशाओं के दीपक
नदी धार में ।
---0---

गहन शीत
ठिठुरती रही है
तुम्हारी प्रीत ।
---0---

प्यार के पंख
लगा कर उड़ते
स्वप्न कंवारे ।
---0---

□  अंकुर सहाय "अंकुर"
खजुरी (अहरौला ) आजमगढ़
(उत्तर प्रदेश) पिन - 223221

~ हाइकुकार कश्मीरी लाल चावला जी के हाइकु ~

हाइकुकार

कश्मीरी लाल चावला


हाइकु 
--0--

हुई हैरानी
मन का शीशा देख
बदले रूप ।

सिमट गई
शीत लहर बीच
आधी जिंदगी ।

कटी जिंदगी
जो धूप छाँव बीच
यही जिंदगी ।

मन की आशा
जग की  अभिलाषा
एक जो भाषा ।

रंगों की छाया
जो बनी परछाई
ढलती काया ।

काली रात में
तारे गिन के सोया
आया न चाँद ।

तितली आगे
जिंदगी की दौड़ है
भंवरा पीछे ।

जले चिराग
एक मजार पर
बाँटता यादें ।

एक बूंद हूँ
बस फैल जाऊँ तो
समुंदर हूं ।

महंगी दोस्ती
काँटे रखे गुलाब
हाथों में चुभे ।

मस्त पवन
तन छूता सावन
अधूरी प्यास ।

मन का घेरा
जीवन तेरा मेरा
चार चुफेरा ।

मन की पीड़ा
अथाह समुंदर
तैरे सो डूबे ।

जला के रखा
जो मन का चिराग
दूर अंधेरे ।

छोह के चाँद
कहे मंजिल पाई
अंत है दूर ।

नया जो साल
खुशियों के अंबार
भर लो थाल ।

□  कश्मीरी लाल चावला

~ हाइकु कवयित्री सुधा राठौर जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

सुधा राठौर 

हाइकु 
--0--

पैनी है धार
हड्डियों में उतरी
शीत कटार ।
---0---

कम्पित गात
अधरों पे थिरका
शास्त्रीय गीत ।
---0---

जमने लगी
लहू की रवानियाँ
देह ठिठुरी ।
---0---

आज़ाद हुए
स्वेटर रजाइयाँ
संदूक खुले ।
---0---

सुखद समां
मौसम का कारवां
हो रहा जवां ।
---0---

□  सुधा राठौर

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

~ शीत के हाइकु : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~

शीत के हाइकु 

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

हाइकु 
--0--

शीत आतंक
सरगुजिहा ठंड
बिच्छू का डंक ।
---0---

पड़े हैं पाले
अकड़ गये पत्ते
पौधे काँपते ।
---0---

शीत लहर
बिछ गयी सुबह
बर्फ चादर ।
---0---

□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

~ शशि मित्तल "अमर" जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

शशि मित्तल "अमर"


हाइकु
--0--

पड़ता पाला
कंपकंपाते हाड़
ठिठुरी धरा ।
---0---

शीत लहर
कोहरे में लिपटे
गांव शहर ।
---0---

धूप सुहानी
गुनगुनाए गीत
ठंडे तराने ।
---0---

□ शशि मित्तल "अमर"

~ हाइकु कवयित्री आभा दवे जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री

आभा दवे 


हाइकु

1) 
शिशिर ऋतु 
मन मोहती सदा
फूलों से लदी ।
---0---

2) 
पत्ते झड़ते
कोहरा मुस्कुराए 
ऋतु शिशिर ।
---0---

3) 
ठंड की मार 
शिशिर में अधिक
ठिठुरे सभी ।
---0---

4)
ओस की बूंदें
धरती में चमके
शिशिर हँसे ।
---0---

5) 
शुभ्र दिशाएँ
मकर संक्रांति भी 
शिशिराधीन ।
---0---

□ आभा दवे

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

~ • ~ परछाइयाँ (हाइकु संग्रह की समीक्षा) ~ • ~

"परछाइयाँ " (हाइकु संग्रह)
हाइकुकार : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
प्रकाशक : हर्फ प्रकाशन, नई दिल्ली
ISBN - 978-93-87757-24-0 
प्रथम संस्करण - 2018, 
पुस्तक मूल्य - 200/-, पृष्ठ -186 
------------------------------------------------------

हाइकु संग्रह की समीक्षा

तपस्या का फल है प्रदीप जी का हाइकु संग्रह -"परछाइयाँ"
समीक्षक : अविनाश बागड़े
-----------------------------------------------------------------

         बारह वर्ष की तपस्या का फल है "परछाइयाँ" ।  यकीनन तपस्वी कोई दीपक सा ही व्यक्तित्व हो सकता है । अपने श्रेष्ठ सत्ताईस हिन्दी हाइकु की परछाई को सत्रह भारतीय भाषाओं एवं सात बोलियों में पाठकों तक पहुंचाना निश्चित तौर पर एक दुरुह ही कार्य है जिसे आदरणीय प्रदीप कुमार दाश दीपक जी ने छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जैसे छोटे से शहर के सांकरा में बैठ कर साकार किया । दुरुह इसलिये कि हिंदी या अंग्रेजी टंकण तो आसानी से हो जाये मगर देवनागरी से हटकर दूसरी लिपि से जूझना यानी हिमालय रुदन जैसा ही ।
       बारह वर्षों में 27 हाइकु उनके समर्थन में खड़े सार्थक रेखाचित्र और साथ में विभिन्न भाषा बोलियों के देशभर के साहित्य हस्ताक्षरों को जोड़कर काम करना यानी... शब्द नहीं इस श्रम के लिये ।
    किस हाइकु पर उंगली रखूं समझ से परे है ।

                     संसार मौन
                     गूंगे का व्याकरण
                     पढ़ेगा कौन ?

         बस नि:शब्द करता 5-7-5 अक्षरों का लाजवाब संयोजन और साथ में देवनागरी में ही अन्य भाषाओं का भावानुवाद......   बेहतरीन ।
         सत्य से साक्षात्कार करता ये हाइकु देखिए -

                      रखो आईना

                      आत्मकथा अपनी 

                      फिर लिखना ।

         सीधा-सीधा आत्मकथ्य को बाजार में परोसने वालों को ललकारता 5-7-5 का अस्त्र ।
         मन को हाइकु से जोड़कर लिखे इस हाइकु की बानगी भी देखिये ।

                       आदमी पंक्ति
                       मन एक हाइकु
                       छंद-प्रकृति ।

         छोटे से इस काव्य विधान से कितनी बड़ी बात प्रदीप जी ने कर दी । जी बिल्कुल सच है...

                       शास्वत सच
                       सिक्के के दो पहलू
                       जन्म औ मृत्यु ।

         ज्ञान की कितनी बड़ी बात देखिये -

                       ज्ञान का सूर
                       अज्ञान का अंधेरा
                       करता दूर ।

         बिम्बों के माध्यम से हाइकु को सशक्त बनाकर बखूबी प्रस्तुत किया है इस काव्य में । 

                       धूप की थाली
                       बादल मेहमान
                       सूरज रोटी ।

         वैसे ही हाइकु को तीनों दशाओं में उतारने का ये प्रयास -

                        हँसा अतीत
                        रुलाए वर्तमान
                        भविष्यत को  ।

         अश्कों के बदलते स्वरूप को उकेरता ये एक हाइकु -

                        मुस्कान रोये
                        ठिठोली कर रहे
                        आंसू मुझसे ।

           अपने हाइकु भंडार से 27 को ही चित्रों के साथ पेश कर उनका देवनागरी लिप्यांतर तत्पश्चात मूल लिपि में भी उनका प्रकाशन यानी 12 वर्षों का एक समग्र प्रयास सफलता की मंजिल यानी परछाइयां तक ।
           निश्चित रूप से यह हाइकु ग्रंथ एक मील का पत्थर साबित होगा "न भूतो ना भविष्यति" ऐसा प्रयास है ये ।
           सफलता के साथ अनुवादक चिंतकों ने जो समां बांधा वो अतुलनीय होते हुए अनुकरणीय भी है ।
           प्रदीप जी ऐसे ही हाइकु और इस परिवार के बाकी काव्य स्वरूपों को भी कीर्तिमानों के पथ पर डालकर सृजनकर्ताओं के मनोबल को आसमान की ऊंचाइयां छुआने में हमेशा की तरह कटिबद्ध रहेंगे, यही आशा और विश्वास ।
           कलेवर ही नहीं तेवर भी लाजवाब है , मोहक मुद्रण, भाषा में प्रवाह, उत्तम प्रकाशन यही है "परछाइयां" ।
-------------------------------------------------------------------------

                 - समीक्षक : अविनाश बागड़े                               84, अविशा, जैतवन, शास्त्री ले-आउट,                          खामला, नागपुर-440025, (महाराष्ट्र)

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

~ हाइकुकार अयाज़ ख़ान जी के हाइकु ~

हाइकुकार 

अयाज़ ख़ान 


हाइकु --0--


बूढ़ी चिड़िया
उड़ा ले गयी पृथ्वी
नन्हें पैरों में ।
-0-

पूर्ण चन्द्रमा
ठूँठ पे था अटका
पतंग जैसा ।
-0-

कुटिया पास-
नागफ़नी के फूल
थकान भूल ।
-0-

काला बाज़ार
फागुन खेले गिद्ध
आत्मा सम्हालो ।
-0-

यूँ न पहनो
मुखौटों पे मुखौटा
हैराँ है शीशा ।
-0-

आखर चुन
हवा जैसी आत्माएँ
शून्य में गुम ।
-0-

बड़ी सुहाती
डाकिये की प्रतीक्षा
देहरी तले ।
-0-

कँटीली झाड़ी
उलझे रह गए
निश्छल नैन ।
--00--

□ अयाज़ ख़ान

हाइकु कवयित्री कंचन अपराजिता जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 
कंचन अपराजिता 

हाइकु

सुर्ख गुलाब
हाथों देख उसके
झुके नयन ।

गुलाबी खत
प्रेम किया स्वीकार
पहली बार ।

ताल तल पे
बूँद करती नर्तन
प्रीत अर्पण ।

प्रेम दिवस
फूल सजे दिल में
दोनों का नाम ।

हो रही वृष्टि
तुम जो चले गये
आर्त है सृष्टि ।

□ कंचन अपराजिता

हाइकुकार स्व. शम्भु शरण द्विवेदी "बन्धु" जी के तीन हाइकु मुक्तक

हाइकुकार

स्व. शम्भु शरण द्विवेदी "बन्धु"

हाइकु मुक्तक

[१]
रह सकना/ जीवन में एकाकी/सरल नहीं |
बह सकना/ धारा के विपरीत/सरल नहीं |
होती रहेगी/'नरो वा कुंजरो वा'/पुनरावृत्ति--
कह सकना/सच को सच सदा/सरल नहीं ||

[२]
युवा हैं तीर /तो गांडीव समान/हैं वृद्ध जन |
युवा हैं पार्थ/तो गीता ज्ञानदाता/हैं वृद्ध जन|
अरे युवाओं/वृद्धों को कालातीत/मत समझो --
देते हैं तोष/अनुभव के कोष/हैं वृद्ध जन ||

[३]
इष्ट मित्रों का/आह्लादकारी संग/छूटेगा कभी|
यौवन-धन / समय का तस्कर /लूटेगा कभी|
हो ले मुदित/ खाके मनमोदक/अमरत्व के --
जीवन घट/कच्ची मिट्टी से बना/फूटेगा कभी||

□ शम्भु शरण द्विवेदी "बन्धु"

हाइकु कवयित्री रजनी गुप्ता "पूनम" जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

रजनी गुप्ता "पूनम"


हाइकु
--0--

उड़े विहग
गगन में स्वच्छंद
चुग्गा खोजते ।
-0-

कातर पंछी
भेद गया शिकारी
आहत पंख ।
-0-

चाँदनी रात
चकवा खग द्वय
प्रेम मगन ।
-0-

आम बौराये
कोयल द्विज कूके
प्रफुल्ल मन ।
-0-

सीमा से पार
नादान परिंदे ये
भेद न भाव ।
-0-

सर्द मौसम
करता मजबूर
जगाता आस ।
-0-

मौसम प्रिये
सरदी आगमन
रहतीं दूर ।
-0-

खिला गुलाब
जीवन मकरंद
लगे गजब ।
-0-

लाल कपोल
घुँघराली अलकें
चंचल बोल ।
-0-

रक्त अधर
सरस रस मधु
नैनन वार ।
--0--

□ रजनी गुप्ता "पूनम"

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

~ हाइकु कवयित्री पुष्पा सिन्हा जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 
पुष्पा सिन्हा 

हाइकु 
--0--


01.
जीवन जंग
मोहब्बत में सजा
मृत्यु सच्चाई ।
--0--

02.
कँपाती ठंड 
धूप को तरसती
दिन में रात ।
--0--

03.
कांँपते हाथ
गर्म चाय की प्याली
उठता धूआँ ।
--0--

04.
पेट में भूख
गरीबी एक श्राप
ठंड  कहर ।
--0--

05.
दिल में यादें
आँखो में बरसात
मिलों की दूरी ।
--0--

06.
दिल बैचेन
आँखो में नींद नहीं
लम्बी है रात ।
--00--

□ पुष्पा सिन्हा

~ हाइकु कवयित्री नीलू मेहरा जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

नीलू मेहरा


हाइकु 
--0--

नहीं अबला
करूं अपनी रक्षा
बनूं सबला ।
--0--

कातिल हाथ
राक्षसों का है जहाँ
जाएं तो कहाँ ?
--0--

मृगी सहमी
शिकारी ने दबोचा
जी भर नोचा ।
--0--

नारी बेचारी
अस्मिता है हमारी
क्यों दुखियारी ?
--0--

शैतान पापी
दरिंदा बलात्कारी,
वो व्याभिचारी ।
--0--

लुटी प्रियंका
उसने नहीं छोड़ा
चाहे निर्भया ।
--0--

बढ़े जो हाथ
मारो,काटो या पीटो
जिंदा जलाओ ।
--00--

□  नीलू मेहरा

~ हाइकु कवयित्री सुधा शर्मा जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

सुधा शर्मा

हाइकु  

गाते  तराना 
धरा पर आते ही
नवल शिशु ।

सुनाती धरा
जीवन का संगीत 
वन विटप ।

चाँद सितारे
अपने अपने ढंग 
गुनगुनाते ।

सरि झरने
पर्वत छाती चीर
गाये तराना ।

वासंती गीत 
छेड़ती पुरवाई 
मधुर राग ।

जिंदगी वेणु
सुनाती प्रतिपल
सप्तम राग ।

सुख दुःख हैं 
तराने जीवन के
धूप छँइया ।

गाते चलना 
जीवन पथ पर 
नव तराने ।

कौन छेड़ता 
मधुरिम संगीत
फूटे तराना ।

वीणा वादिनी 
कंठ कंठ विराजे
सुर प्रवाह ।
--0--

□ सुधा शर्मा

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

हाइकु कवयित्री पुष्पा त्रिपाठी "पुष्प" जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 


पुष्पा त्रिपाठी "पुष्प"

हाइकु 
--0--

लिख किताब
कर मन विचार 
बनी कविता  ! 
--0--

चटकी कली 
महके फुलवारी 
शब्द सुमन !
--0--

डफ मृदंग 
धमार फाग गाये 
बृज में होली  !
--0--

□  पुष्पा त्रिपाठी "पुष्प"

~ हाइकुकार आ. ओम हरित जी के हाइकु ~

हाइकुकार 

ओम हरित


हाइकु

1.
शब्द सहेजो
सहज सरल से
कविता लिखो ।
--0--

2.
नम नयन 
कितने छिपे ग़म 
यही जीवन ।
--0--

3.
आखिर कब 
समझेगा मानव 
हैं चार दिन ।
--0--

4.
सागर खारा 
नदियां उतावली 
चाहें मिलन ।
--0--

5.
बिना विचारे 
गँवा मत समय 
कर ले काम ।
--0--

6.
आदमीयत 
मर रही अब तो 
कौन समझे ?
--0--

7.
सन्ध्या की बेला 
सिलसिला यादों का 
उदास जिया ।
--00--

□ ओम हरित

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

~ हाइकुकार आ. जयराम जय जी के हाइकु ~

हाइकुकार 

जयराम जय

हाइकु
--0--

जलो मगर
 दीपक बनकर
करो उजाला ।
सपने होते
सच कब अपने 
धैर्य न खोना ।
पास हमारे
सब कुछ लेकिन
खुशी नहीं है ।
गीत वही है
अविरल बहता
दिल कहता ।
कौन बोलता
अन्तर्मन की बातें
नैन बोलते ।
कर्म करो तो
मिले सुखद फल
गीता कहती ।
मेहनतकश
थकन ओढ़कर
सुख पाता है ।
आँखें करतीं
संवाद आँखों-आँखों 
मन की बात  ।
क्यों चिन्तित हो
कौन यहाँ अपना
फिर आना है ।
~ ० ~

□ जयराम जय

MOST POPULAR POST IN MONTH