हाइकु कवयित्री
सुधा राठौर
वसंत ऋतु
गर्म हुई है
वसंत के आते ही
हवा की साँस ।
फूली सरसों
हल्दिया हुई देह
नवोढ़ा रूप ।
सजने लगा
वसुधा की माँग में
सिंदूरी टेसू ।
झरने लगा
सुर्ख गुलमोहर
मधुमास है ।
आम्र बौराया
महकी अमराई
मदिर-गंध ।
कूकी कोयल
भ्रमर का गुँजन
प्रणयी मन ।
हवा बहकी
महुआ है महका
रवि दहका ।
बिछा दुकूल
अमलतास तले
सोना बिखरा ।
नव-स्पन्दन
वसुधा के आँगन
नव-जीवन ।
उल्लासमय
प्रकृति का आनन
वन-कानन ।
रितु वसंत
लाई है तरुणाई
हर्ष अनंत ।
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