हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

~ हाइकु कवयित्री रानी कुमारी जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 


रानी कुमारी

हाइकु
--0--

सजते ख्वाब
घर करे आबाद
नारी है ख़ास ।

स्वार्थ के मारे
ये नेताजी हमारे
देश उजाड़े ।

जनता सारे
सीधे-सादे बेचारे
हैं बेसहारे ।

रिश्ते बेरंग
मानसिकता तंग
आपसी जंग ।

कत्ल-ए-आम
नेताओं में उमंग
छलके जाम ।

सहमे राम
सशंकित रहीम
वीभत्स दृश्य ।
---0---

□  रानी कुमारी

हाइकु कवयित्री डॉ. सुरंगमा यादव जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

डॉ. सुरंगमा यादव 


हाइकु 
--0--

फेंका तेजाब
मानवता किससे
माँगे हिसाब ।

कौआ हर्षाये
मानव ने सीख लीं
मेरी चेष्टाएं ।

विवश मन
खींचती बरबस
दुर्बल नस ।

आया वसंत
सहमे वन पात
विदाई पास ।

कस्तूरी पास
विधि की विडम्बना
है तरसना ।

भेजूँ संदेश
वसंती हवा संग
पिया विदेश ।

स्मृति झरोखा
दूर तक दिखते
दृश्य अनेक ।

विदा की घड़ी
नयनों की देहरी
आँसू ने छोड़ी ।
---0---

□  सुरंगमा यादव

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

हाइकुकार आनंद देव ताम्रकार जी के हाइकु

हाइकुकार

आनंद देव ताम्रकार 

हाइकु
--0--

1.
मन बेचैन
सखी का आगमन
फूटा यौवन ।

2.
आया वसन्त
महका उपवन
हर्षित मन ।

3.
मादक मन
महुआ की सुगंध
आया वसंत ।

4.
नीला गगन
भौंरो की भनभन
हर्षित मन ।

5.
खिला मौसम
महका उपवन
मन सुमन ।

6.
मन अगन
प्रेयसी से मिलन
फूटा यौवन ।

7.
लगी है झड़ी
बेमौसम बारिश
प्रकृति मौन ।
---00---

□ आनंद देव ताम्रकार

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

~ हाइकु कवयित्री रूबी दास जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 


रूबी दास

हाइकु
--0--

नील दिगन्त 
टेसू लगायें आग
दावानल सी ।

ताप दमका
रूक्षता चारों ओर
वैभवहीन ।

रक्तिम नभ
राई सेमर सुखी
उदास वन ।

फूल न खिले 
बागवान उदास
बाट जोहता ।

तप्त आंगन 
पथ भी शब्दहीन
सन्नाटा मय ।

चौपाये खोजें 
आस्थाएं सुकून  की
ठंडक जहाँ ।

आंगन सूना
कलरव बच्चों के
न दिखें कही ।
---0---

□  रूबी दास

हाइकुकार अवधेश कुमार सक्सेना जी के हाइकु

हाइकुकार 

अवधेश कुमार सक्सेना


हाइकु 
--0--

1.
पर्वत कभी 
झुकते नहीं पर
रहते दुःखी ।

2.
उड़ने लगा
मन ये  कबूतर
किसका सगा ।

3.
बिजली बनी
पानी को गिराकर
दीवाली मनी ।

4.
रहता शुद्ध
फिरता यहां-वहां
बनता बुद्ध ।

5.
कहाँ हैं वृद्ध
कहाँ गयीं गौरैयाँ 
कहाँ हैं गिद्ध ।

6.
मार्ग है सीधा
टेढ़ा चलने वाला
कांटों में बींधा ।

7.
कहते सब
कंकर में शंकर
मानते कब ।

8.
रात है काली
जलें कैसे दीपक
जेब है खाली ।

9.
काम निकला
मौसम की तरह
वो भी बदला ।

10.
भौंरे तितली 
खुश्बू, फूल, पराग
हैं हमजोली ।
---00---

□ अवधेश कुमार सक्सेना

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

~हाइकुकार अशोक कुमार ढोरिया जी के हाइकु~

हाइकुकार 

अशोक कुमार ढोरिया

हाइकु
--0--

अंगूठा टेक
अनपढ़ अनेक
रहे न एक ।

टलाओ युद्घ
कभी न होना क्रुद्ध
कहते बुद्ध ।

घायल पंछी
दर्द में कराहता
दवा चाहता ।

आई बसंत
मौसम की बहार
छा गई मस्ती ।

प्रवासी पक्षी
कुछ दिन का डेरा
रैन बसेरा ।

मन में खोट
भूखे बैठे माँ बाप
संस्कार कहाँ ।

देख तितली
महके उपवन
हर्षित भौंरे ।

दिल से जुड़े
ये अनजान रिश्ते
बने फ़रिश्ते ।

अच्छे लगते
ये अनजान रिश्ते
गले मिलते ।

मन्दिर पूजा
आडम्बरों की ओट
मिले न राम ।
---00---

□  अशोक कुमार ढोरिया

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

हाइकु कवयित्री अंशु विनोद गुप्ता जी रचित हाइगा

हाइकु कवयित्री 

अंशु विनोद गुप्ता 


हाइगा

01.

बेकरारियाँ
जलता ख़ाक होता
नादाँ पतंगा ।

02.

पाहन रोते
धारा तन बींधती
कूल किनारे ।

□ अंशु विनोद गुप्ता



शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

हाइकुकार परम जीत रामगढ़िया जी रचित हाइगा

हाइकुकार 


परम जीत रामगढ़िया


हाइगा
--0--

1.

ਹਾਇਕੂ/ਹਾਇਗਾ                 हाइकु/हाइगा 

ਚੁਫੇਰੇ ਪਾਣੀ                       चुफेरे पानी 
 ਡੱਡੂ ਮਾਰ ਟਪੂਸੀ                डडू  मार छलांग 
ਚੜ੍ਹਿਆ ਟ੍ਹਾਣੀ ।                  चढ़ा टहनी ।

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2.

ਹਾਇਕੂ/ਹਾਇਗਾ                    हाइकु/हाइगा 

ਸੁਪਨੇ ਲੀਰ                           सपने चीर 
  ਸੱਜਣ ਤੁਰ ਗਏ                    सज्जन चल दिए 
ਵਹਾ ਕੇ ਨੀਰ                          बहा के नीर 

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3.

ਹਾਇਕੂ/ਹਾਇਗਾ                    हाइकु/हाइगा 

ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ                             बसंत ऋतु 
ਮੰਡਰਾਵੇ ਤਿੱਤਲੀ                     मंडराती तितली 
ਪੀਲੇ ਫੁੱਲ 'ਤੇ ।                        पीले फूल पे ।

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ਪਰਮ ਜੀਤ ਰਾਮਗੜ੍ਹੀਆ        परम जीत रामगढ़िया

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

~ हाइकु कवयित्री भुपिंदर कौर जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

भुपिंदर कौर 


हाइकु 
--0--

वैजंती माला
हरे मोती मंडित 
मनमोहित ।

श्वेत सुमन
हरियाली लतिका
महकी फिजा ।

नीला अंबर
सुरमई बादल
बहके मन ।

काले बादल 
चमकती दामिनी 
डरते बाल ।

घनेरी घाम
अनवरत तलाश 
पानी गायब ।

पंछी अकेला
सुनहरा पिंजरा 
आसी प्रभात ।

गुम्फित पुष्प
सृजनित एकता 
शुभ संदेश । 

गुलगुम्फित
चतुरंगी सैनिक
मनोहारी ।

प्रेमप्रतीक
बहुरंगी सुमन
दिली सुकून । 

नीला अंबर 
टिमटिमाते  तारे 
हर्षित चंदा । 

तिमिर ताल
चंदा लगे सुहाना 
छाई चाँदनी । 

चंदा चाँदनी 
अनूठा संगसाथ 
खिले मुस्कान । 

प्यासी गौरैया 
जेठी दुपहरिया 
सूखी बावड़ी ।

तप्त जीवन
जेठी पुरवइया
गर्म थपेड़े ।

माया जंजीर 
कामनाएँ मथनी 
चकरघिन्नी । 

एक मुखौटा 
झुरमट गुनाह 
हैरां दुनिया । 

आवारा मेघ 
नकाब में चंद्रमा 
डरी चाँदनी ।

सारंग आए 
उमड़े व घुमड़े
बरस गये ।
--0--

□  भुपिंदर कौर
भोपाल (मध्यप्रदेश)

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

~ हाइकुकार विजय कांत वर्मा जी के हाइकु ~

हाइकुकार

विजय कांत वर्मा

हाइकु 
--0--

गौरैया आई
सपरिवार बच्चे
पंखा खामोश ।

रात अंधेरी
अकेली एक बाला
गिद्ध निगाहें ।

आमों में बौर
खुश हुआ किसान
बच्चे पढ़ेंगे ।

उड़ा जहाज़
कल रीयल होगा
आज कागज़ी ।

अपना मुल्क
सारे जहां से अच्छा
सबसे प्यारा ।

सत्य की जीत
बुराई का विनाश
दशमी पर्व ।

कन्याएं खुश
कन्या भोज पाकर
कल क्या होगा ।

थोड़ा सा प्यार
ज़िन्दगी का सहारा
सुखी जीवन ।
~ 0 ~

□ विजय कांत वर्मा

~ हाइकुकार लक्ष्मीकांत मुकुल जी के हाइकु ~


हाइकुकार 

लक्ष्मीकांत मुकुल 


हाइकु
--0--

उड़े हैं धूल
भेड़ें औे ' गड़ेरिए
चले हैं साथ ।

लहराया है
तीसी - फूलों - सा तेरा
नीला आंचल ।

बेर तोड़ते
फंसी साड़ी कांटों में 
खट्टा - सा मन ।

आती है याद
नदी - तट - पोखर 
तुम थी साथ ।

माघ - तुषार
भीगीं आंखें यादों की
प्रिया - बिछोह ।

आया वसंत
नहीं कूकी कोयल
अंतर्मन में ।

शहर आते
खोयी पगडंडी - सी
गांव की यादें ।

आतुर बालें
निकली हैं खेतों में
ढका सिवान ।

बीत चुका है
समय धुंधलका
उगी है लाली ।

कोयल कूकी
नहीं टूटा सन्नाटा
मन माटी का ।

उगा पहाड़
खेतों के आँगन में
पाथर-टीला ।

नदी बीच में
पूरा गाँव-गिराँव
रेत किनारे ।

किसे  ढूंढती
फुदकती चिड़़िया
बांस-वनों में ।

फुदकते हैं
खरहे की तरह
मेरे सपने ।

शिरीष-फल
बजा रहे खंजडी
बीते युग की ।

उड़ चले हैं
छोर से पंक्तिबद्ध
बकुल-झुंड ।

डाक पत्र में
नहीं अटा जीवन
मेरी व्यथा का ।

उड़े रूमाल
सहेजा जो सालों से
किनके नाम ?

बिदक गई
सब दुनिया सारी
पोत डूबते ।

--00--

□  लक्ष्मीकांत मुकुल 
ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड,
भाया – धनसोई , बक्सर,
(बिहार) – 802117

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

हाइकुकार डॉ. आनन्द प्रकाश शाक्य जी के हाइकु

हाइकुकार 

डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "आनन्द"

बसंत के हाइकु
---0---

वाह ! वसंत
ये धरती शोभित
मन मोहित ।

ठुमका गैंदा
गुलाब है महका
वाह ! वसंत।

ये पतझर
होता नवजीवन
अश्रु न भर ।

ये मंजरियाँ
महकें महकायें
दसों दिशायें ।

मन महके
ये समीर बहके
तन चहके ।

फूली सरसों
उड़े मधुमक्खियाँ
लेती पराग ।

करो मंगल
गरीब की कुटी में
हे ! ऋतुराज ।

लो मुस्कराया
पलाश बनकर
वसंत आया ।

सजा दो माँग
विधवा महिला की 
हे ! ऋतुराज ।

गाता प्रणय
बाबरा है वसंत
बहका सन्त ।

वो मन तौलें
दम्पति हौले-हौले
करें किलोलें ।

कोकिला बोली
उपवन चहका
मधु सा घोली ।
---0---

□  डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "आनन्द"

हाइकु कवयित्री डाॅ. सुरंगमा यादव जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

डाॅ. सुरंगमा यादव 


हाइकु

 --0--


1.
वसंत आया
याद आयीं बतियां 
भूली स्मृतियाँ ।

2.
लिए आह्लाद 
लो आया मधुमास
बरस बाद ।

3.
कोयल कूजी
झूमी अमवा डाली
हवा निराली ।

4.
हाथ में हाथ
हवा के संग बात
करते पुष्प ।

5.
मिला सत्संग
फूलों संग महका
हवा का अंग ।

6.
घूमें अनंग
करता ध्यान भंग
वसंत संग ।
--0--

□  सुरंगमा यादव

शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

~ हाइकु कवयित्री दीपाली ठाकुर जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

दीपाली ठाकुर 


हाइकु 
--0--

दिग दिगन्त
है बगरा बसंत
शोभा अनन्त ।
--0--

सरसों पीली
ओढ़े चुनर जैसे
भू नखरीली ।
--0--

मादक गंध
बिखराये महुआ
छाये वसन्त ।
--0--

बौराया आम
टेसू ने चुटकी ली
चटकी कली ।
--0--

धरा गगन
सुरभित पवन
मस्त मदन ।
--0--

□ दीपाली ठाकुर

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