SEDOKA 旋頭歌 सेदोका
24 नवम्बर 2019
वर्ण क्रम - 05/07/07/-05/07/07
विषय - धूप, शीत, ओस
उत्कृष्ट रचनाएँ
01.
भोर के साथी
धूप ओस व शीत
साथ साथ सुखद
मनभावन
सुबह हो सुरीली
जब ये तीन साथ ।
□ अविनाश बागड़े
2.
ओस की बूंदें
मोती सी चमकतीं
धूप ऊर्जा पाकर
हम चमकें
ज्ञान छटा बिखेरें
ज्ञानवान होकर ।
--00--
□ ए.ए.लूका
3.
सुहानी धूप
शाखो पर परिंदे
मानो गुनगुनाते
जीवन मंत्र
मुस्कुराना सिखाते
गम की घड़ियों में ।
--00--
4.
भोर की बेला
केले के पत्तों पर
बिखरे ओस कण
मन लुभाते
कल-कल नदियां
जीना हमें सिखाते ।
--00--
□ क्रान्ति
5.
शीत की धूप
पड़ती ओस कण
चमक उठे मोती
नर्म कोमल
मुलायम सी धूप
शीत में प्यारी लगे ।
--00--
शर्मिला चौहान
6.
शीतल भोर
कड़कड़ाती सर्द
ठंड-धुंध-कोहरा
इनकी जोर
जीव-जंतु-मनुज
जकड़े शीत डोर ।
--00--
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
7.
धूप सुहानी
मस्ती में मस्तानी
स्वास्थ्य की निगरानी
धूप सेवन
सेहत का साधन
मुफ्त डी विटामिन ।
--00--
8.
सूर्य प्रकाश
पौधों को दे जीवन
बनाये क्लोरोफिल
पैदा हो अन्न
पोषित हो जीवन
बढ़े सृष्टि का क्रम ।
--00--
9.
धूप कारक
बैक्टीरिया नाशक
जगत प्रकाशक
दिन व रात
स्वर्णिम हो प्रभात
करें सूर्याराधना ।
--00--
10.
ओस की बूंद
पड़ी भोर की धूप
चमकते सितारे
स्वर्णिम वर्ण
बिछी पीत चादर
प्राकृतिक मंजर ।
--00--
□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
11.
कड़ी धूप मे
मेहनत करती
वह अबला नारी
पति शराबी
बच्चों के राशन की
करनी है जुगाड़ ।
--00--
12.
ओस के मोती
गिरते पौधो पर
मिलता जो पौषण
लहलहाती
फसले इठलाती
किसान होते खुश ।
--00--
13.
बूढा भिखारी
शीत से ठिठूरता
पड़ा है फुटपाथ
देखा उसने
निकालकर दे दी
अपनी ओढ़ी शाॅल ।
--00--
□ संजय डागा
14.
शीत के दिन
भानु निकले झट
सेंके धरा के लट
दिवसान्त में
ओढ़े लाल कंबल
दुबके झटपट ।
--00--
15.
यामिनी रोयी
अश्रु बिखरे पात
ओस-कण प्रभात
लाल पूरब
हंस निकला एक
मोती चुगते जात !
--00--
□ निमाई प्रधान "क्षितिज"
16.
पत्ती पे बैठा
चमकदार मोती
धीरे से हुआ क्षीण
सूर्य में समा
कहीं खो गया वह
जीवन देने हेतु ।
--00--
□ ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"
17.
धूप के पाखी
खिड़की पर बैठे
चहचहाने लगे
जागी सुबह
उष्मा के पथ पर
दाना चुगने लगी ।
--00--
18.
खिला सबेरा
रवि की गागर से
छलक गई धूप
स्वर्णिम रूप
टहनियों के बीच
अटक गई धूप ।
--00--
19.
धूप की उष्मा
उर्जा से भरपूर
है सुबह का नूर
चेतना जागी
चले वक़्त के साथ
कर्म के अनुरागी ।
--00--
20.
नन्हीं सी ओस
दूब पर ठिठकी
पत्तों बीच अटकी
भयभीत हैं
चुन लेगा सूरज
अंतर्मन की नमी ।
--00--
21.
रात ने लिखी
ओस की इबारत
ठंडी की शरारत
भोर चिंतित
ले लेगा दिनकर
ओस की शहादत ।
--00--
22.
पियूष कण
चमकदार मोती
पारदर्शी है द्युति
नन्हे नाजुक
सूर्य को देखकर
होने लगे विलुप्त ।
--00--
23.
शीत की गली
धुंध है मनचली
मचाती खलबली
ठंड अपार
सूरज गिरफ्तार
चली सर्द बयार ।
--00--
24.
शीत के शूल
भोर की गलियों में
उग रहा बबूल
चुभने लगी
कँटीली हैं हवाएँ
सिहरन जगाएँ ।
--00--
25.
शीत के गाँव
सुलगने लगा है
सूरज का अलाव
कुटिया दुखी
बुझी हुई अँगीठी
भड़क रही भूख ।
--00--
□ सुधा राठौर
26.
कड़क धूप
तरबतर देह
गर्भिणी मजदूर
तोड़े पत्थर
हाथों पावों में छाले
पड़े रोटी के लाले ।
--00--
□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
27.
धूप है खिली
नव-प्रेरणा मिली
ज़िन्दगी फिर चली
कलियाँ खिली
सरगम है घुली
कलरव में ढली ।
--00--
28.
शीत की धूप
पुनर्जीवन देती
पीड़ा को हर लेती
सेवा करती
सृष्टि भी आनन्दित
सेदोका पल्लवित ।
--00--
29.
ओस की बूँदें
प्रकृति उपहार
हीरे जैसी चमके
फसल पलें
नव-स्पर्श भी मिलें
काव्य-पुष्प हैं खिलें ।
--00--
30.
मोती के जैसी
हरी घास पे ओस
नन्हें-नन्हें क़दम
मधुर स्मृति
प्रभात का समय
काश! फिर से लौटें ।
--00--
31.
तितली चूमे
मनीप्लांट की ओस
भँवरा फूल ढूँढे
सोना लाएगी
धूप फिर आएगी
चिड़िया भी गाएगी ।
--00--
32.
धूप का रूप
भुजाओं को फैलाए
करता है स्वागत
पूर्ण विश्व का
पनाह में इसकी
कायनात है बसी ।
--00--
33.
शीत धूप में
मवेशी इठलाते
बच्चें खिलखिलाते
पतंग उड़े
झूमे बाँस-झाड़ियाँ
कानों में हैं बालियाँ ।
--00--
34.
चलता रहूँ
शीत धूप के संग
ओस-भरी उमंग
लिखता रहूँ
प्रकृति के ही गीत
सेदोका मनमीत ।
--00--
□ अयाज़ ख़ान
35.
सर्द मौसम
कुहासा ओढ़े दिन
काँख दबा सूरज
काँपती काया
गुनगुनी सी धूप
रात कटती बैठ ।
--00--
□ सुशीला जोशी
36.
मोती सी बूँदें
चमचमाती धूप
खुब लुभानी रुप
शीतल छाया
धुंधली सी कोहरे
सुन्दरता बिखेरें ।
--00--
37.
गुलाबी ठंड
सूरज की रोशनी
कड़कड़ाती धूप
मन को भाती
ऊर्जा देती है भर
ताजगी दिन भर ।
--00--
38.
ओस पड़ते
पत्तों में कण कण
लुभीती हर क्षण
गुलाबी धूप
पोखरों के अंदर
दिखे रुप सुन्दर ।
--00--
39.
ठंडी लहरें
ओस पत्तों में पड़ी
परियों की है छड़ी
बूँदे बिखेंरी
मोती चमचमाती
खुश होती धरती ।
--00--
40.
शीत लहरें
बलखाती हिलोरें
लहराती झरोखें
दुबक बैठे
समुद्र के किनारे
शैवाल के सहारे ।
--00--
41.
पेड़ की डाल
शीतल सी छाया
ठिठुर रही काया
शीत ऋतु में
ओढे़ कर चादर
सिसकते अंदर ।
--00--
□ सुशीला साहू "शीला"
42.
शीत आयी तो
बदल गयी हवा
सूरज के तेवर
ढीले पड़े हैं
सहम गयी धूप
भागने लगा दिन ।
--00--
43.
फुटपाथ पे
कफन बन फैली
कोहरे की चादर
लिपटे पड़े
ठिठुरते बदन
जगेगा प्रशासन ।
--00--
□ डाॅ. सुरंगमा यादव
44.
घना कुहासा
बिखरी घनी ओस
चरम पे ठंड़क
कांपे विक्षिप्त
फुटपाथ के कोने
फैले पत्तल दोने ।
--00--
□ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
45.
हिम शिखर
दमकता सौन्दर्य
भोर स्वर्णिम आभा
दर्पण बन
प्रतिबिंबित होता
क्षितिज में नजर ।
--00--
□ मंजू सरावगी "मंजरी"
46.
शीत कहानी
उषा-संध्या सुहानी
सर्दी की मनमानी
गुलाबी ठंड
सूर्य से कहा-सुनी
दोनों के बीच ठनी ।
--00--
47.
ओस की बूँद
चाँदनी का वात्सल्य
वसुंधरा के नाम
क्षणभंगुर
करती अठखेली
कलियों की सहेली ।
--00--
48.
धूप सेवन
आरोग्य संवर्धन
रोग का निवारण
औषधियुक्त
उर्जा से भरपूर
चेतना का प्रवाह ।
--00--
□ सुधा राठौर
49.
सुमन-वृंत
पल्लव-कुसुमन
अशेष प्रभामय
ओस से भीगा
फलाँगती नदी का
लहरिल प्रवाह ।
--00--
50.
शीत की धूप
कुहरे की चादर
अबोध ठिठुरन
जला अलाव
अविरल बहता
हिम भरा सैलाब ।
--00--
□ डाॅ. सुशील कुमार शर्मा
51.
धूप निराली
खिड़की सें झाँकती
मुस्कुराके कहती
सुबह हुई
लाओ मन में स्फूर्ति
रजनी चली गई ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
52.
आई जो धूप
ओस खिसक गई
शीत प्रभाव बढ़ा
शीत मौसम
गुनगुनी सी धूप
ओस भीगी सुबह ।
--00--
□ अविनाश बागड़े
53.
नारंगी वस्त्र
लिए ऊर्जा का अस्त्र
खिड़की से झांकती
आरोग्यदात्री
ये धूप महारानी
है जीवनदायनी ।
--00--
54.
शीत लहर
कोहरे का कहर
कठिन है डगर
प्राण हरती
विषकन्या हवाएं
ज्यों मौसमी सजाएं ।
--00--
55.
नभ के आँसू
वसुधा के आँचल
ज्यों ममत्व,वात्सल्य
छटा निराली
बावरी तृण चूमे
नेह के गीत झूमे ।
--00--
□ नीलम शुक्ला
56.
पतली धुंध
ठिठुरती वसुधा
चादर लपेटती
शीत हवाएं
भेदती बदन को
अलाव जलते हैं ।
--00--
57.
गुनगुनी सी
नर्म छुएं तन को
गर्मी का एहसास
लुकती छिपे
फुनगी तरु ओट
झिलमिलाए ओस ।
--00--
58.
तृण नोकों में
मुस्कुराती है ओस
देख रही ठिठकी
झणभंगुर
जीवन यथार्थता
सिखाती हमेशा ।
--00--
□ शर्मिला चौहान
59.
जीवन चक्र
चलता रहता है
छाँव- धूप सा सदा
परिस्थितियां
बदलती रहतीं
दुख के बाद सुख ।
--00--
60.
धूप न बनो
तपता तपाता है
बनना है अगर
शीतल छाँव
नीम देता जैसे
ठंडक मेरे गाँव ।
--00--
61.
शीत लहर
सिकुड़ता दिवस
सूर्य देव ओझल
जनजीवन
अलाव के सहारे
मध्य रात गुजारे ।
--00--
□ पुष्पा सिंह "प्रेरणा"
62.
दस्तक शीत
मखमली सी धूप
खिल उठी बगिया
मन ली जीत
पक्षी का कलरव
प्राकृतिक गौरव ।
63.
ओस की नमी
वसुंधरा जो भीगी
महकी पुरवाई
उषा ले आई
धूप मनभावनी
जन-जन सुहानी ।
--00--
□ पूर्णिमा साह
64.
ओस की बूंदें
मोती के एहसास
धरा करे श्रृंगार
उदित सूर्य
फिर रूप निखारे
मंत्र मुग्ध संसार ।
--00--
□ रंजन कुमार सोनी
65.
पथिक चला
चिलचिलाती धूप
नहीं पास था छाता
ठंडी बयार
प्रकृति उपकार
ये पेड़ छायादार ।
--00--
□ अरूणा साहू
66.
परिवर्तन
सृष्टि अनुशासन
जन्म-मृत्यु-जीवन
ज़िन्दगी हेतु
शीत-ऊष्म-बारिश
जीव-जंतु ख्वाहिश ।
--00--
67.
समय चक्र
चले हमेशा वक्र
धन-बल प्रभाव
शीत की रातें
गरीबी-ठिठुरती
अमीरी-सिहरती ।
--00--
68.
शीतलहर
त्रस्त गाँव-शहर
असमर्थ छप्पर
स्पंदित-धनी
अथाह आमदनी
हर रात चाँदनी ।
--00--
69.
ऋतु-समान
गर्म-सर्द-इंसान
फ़कीर-धनवान
माहौल देख
गर्मी में बिदकता
सर्दी में फुदकता ।
--00--
70.
शीत आगाज
ग़रीब को अंदाज
अंतिम दिन आज
रैन बसेरा
मजबूर का डेरा
भ्रष्टाचार ने घेरा ।
--00--
71.
शीत-प्रहार
हाड़ मांस गलता
चूल्हा नहीं जलता
राम-भरोसे
भूखा नंगा पलता
यूँ ही देश चलता ।
--00--
72.
शीत हवाएँ
दीन कंपकपाए
लोक-तंत्र कमाए
निरीह-प्राणी
अलाव इंतजाम,
मृत्यु खबर आम ।
--00--
73.
शीत का स्पर्श
पतझड़ समाप्त
आर्द्रता भी पर्याप्त
पुष्प-पुष्पित
मुस्कान-मुखरित
कोपलें प्रस्फुटित ।
--00--
74.
हरित-वन
रंगीन उपवन
भ्रमर का गुंजन
शीतल फिजा
हरी-भरी पत्तियाँ
फूल बनी कलियाँ ।
--00--
□ विनय कुमार अवस्थी
75.
हिम के कण
दुब पर जो गिरे
कई मोती बिखरे
चंचल मोती
अनजान राह में
चले किरण संग ।
--00--
□ रूबी दास
76.
रवि किरण
है जीवन दायिनी
नव पथगामिनी
पथिक बैठा
उत्साही रथ पर
लेकर कर्म-झोला ।
--00--
□ मधु सिंघी
77.
ऋतु शिशिर
गुनगुनी सी धूप
सुखद एहसास
चाय की प्याली
हाथों में अखबार
भला लगे संसार ।
--00--
78.
ओस की बूंदें
मोती सी बिछती
जेवर भू धारती
स्वर्णस्वरूप
सौर किरणों संग
चहुँओर उमंग ।
--00--
79.
शीत कहर
कोहरे की चादर
ओढ़ लेती प्रभाती
पंछी के स्वर
जीवन कर्म मर्म
सुख चैन गंवाती ।
--00--
□ पूर्णिमा सरोज
80.
खिलती धूप
सुबह का सौन्दर्य
बिखर गया सोना
जगमगाये
सूरजमुखी गाये
कमलदल भाये ।
--00--
81.
निर्दयी शीत
ठिठुरें बाल वृद्ध
नवजात आबद्ध
हैं भयभीत
सनसनाती हवा
काँपें वन, वानर ।
--00--
82.
झिलमिलाते
स्वर्णिम ओस कण
रुपहले हैं तृण
मनमोहक
मन रंजित सृष्टि
हो रही स्वर्ण वृष्टि ।
--00--
□ डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "आनन्द"
83.
ऋतु शीत की
सुबह की दस्तक
खुले नैनन द्वार
नीलाभ नभ
स्पर्श रवि किरण
मन पंछी भ्रमण ।
--00--
84.
शीत की भोर
जलद घनघोर
सिहराती बयार
थिरके पत्ते
धुंध भरी दिशाएँ
धूप भटकी राहें ।
--00--
85.
ओस की बूँदे
आसमान से गिरीं
दुर्वा अंक समायीं
मोती से बुना
कालीन रुपहला
वसुंधरा ने ओढ़ा ।
--00--
□ मंजु शर्मा
86
अठखेलियाँ
करती भोर किरण
खिले कमल संग
प्यार जताती
चूम पुष्प अधर
पी लेती प्रेम रस ।
--00--
□ मंजू सरावगी मंजरी
87.
धूप बर्फिली
ज्यों रूप सतरंगी
मिले बिछुड़े मीत
शीत लहर
ये ओस मुस्कुराये
बूंद बूंद संगीत ।
--00--
□ श्रवण चोरनेले 'श्रवण'
88.
पूस की रात
धान खेत चौकसी
घन घोर अंधेरा
अलाव संग
ठंड से बचने को
शीत रात को छाई ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
89.
तपती रेत
समुद्र का किनारा
चढ़े सूर्य का पारा
जलते पांव
कही न दिखे छांव
आंखें तलाशे गाँव ।
--00--
□ मंजू सरावगी मंजरी
90.
उषा आ रही
कोहरे की चादर
वसुधा पर ओस
हर तरफ
बिछी हुई भू पर
बटोरता सूरज ।
--00--
□ देवेन्द्र नारायण दास
91.
ओस बिखरी
ठंड जरा ठहरी
धूप ये सुनहरी
ठान निकली
ओस गलाने चली
कैसी है ये सहेली ।
--00--
□ डाॅ. संजीव नाईक
92.
जेठ-महीना
अविरल पसीना
ऋण चुके किसान
फसल-पके
उचित मिले दाम
आशानुरूप-घाम ।
--00--
93.
बदनसीबी
असहाय की वर्दी
असरदार सर्दी
सामर्थ्यवान-
कब्जाए आसमान
धूप-छाँव समान ।
--00--
94.
अनिश्चितता
धूप-छाँव का मेल
राजनीति का खेल
सिद्धांतहीन
भ्रष्ट तंत्र के साथ
कुर्सी बिना अनाथ ।
--00--
95.
आम-के-आम
गुठली के भी दाम
प्राथमिकता काम
भीषण धूप
हल जब चलता
परिश्रम फलता ।
--00--
96.
धूप हो तेज
दुःख-दर्द निस्तेज
सूरज का प्रताप
मिटे संताप
फसलें पक जातीं
घर खुशियाँ लातीं ।
--00--
97.
वर्षा जरूरी
मिटाए मजबूरी
आगमन गर्मियां
प्रभाव धूप
फटक रहे सूप
कृषक बने भूप ।
--00--
98.
आशा-किरण
खलिहान में अन्न
काश्तकार प्रसन्न
पके अनाज
सूदखोर बने बाज
किसान मोहताज ।
--00--
99.
लू के थपेड़े
हाँफ रहे फेफड़े
परिवार उजड़े
आंधी-तूफ़ान
मजदूर-किसान
रोगों से परेशान ।
--00--
□ विनय कुमार अवस्थी
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