हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

बुधवार, 31 जनवरी 2018

हाइकु मञ्जूषा जनवरी 2018 के चयनित हाइकु


हाइकु मञ्जूषा

जनवरी - 2018 के चयनित हाइकु

{ श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु संचयन }

संपादक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


( "हाइकु मञ्जूषा", "हाइकु - ताँका प्रवाह", एवं "हाइकु मंच छत्तीसगढ़" समूह से साभार । )


01.
साल  ये  नया
हरारत  भरी  है
हेमंती  हवा ।

✍सुधा राठौर

02.
श्रम की डोर
बाँधे नव उत्कर्ष
लाई है भोर ।

✍वीणा राघव

03.
अच्छे  संस्कार
जीवन में  खोलते
खुशी  के  द्वार ।

✍बलजीत सिंह

04.
नन्हा सा वर्ष
लिहाफ में लिपटा
मुस्कुराया है ।

✍सुशील शर्मा

05.
नव सृजन
बने नव वर्ष में
जीवन नया ।

✍सतीश राठी

06.
रवि वंदन
रश्मि और प्रकृति
शुभ मिलन ।

✍सविता बरई

07.
शीतल वात
गात पर आघात
पूस की रात ।

✍अनिल शुक्ला

08.
सह न सका
बत्ती का दुःख देखा
मोम पिघला ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

09.
चिंटियाँ करें
पर्वत रेखाकंन
कर्म वंदन ।

✍शैलमित्र अश्विनीकुमार

10.
नूतन वर्ष
माघ की ठिठुरन
गुड़ गजक ।

  ✍मृदुला मिश्रा

11.
है शरारती
शाख की चिलमन
चाँद बेपर्दा ।

✍सुधा राठौर

12.
नया जो साल
खुशियों के अंबार
भर लो थाल ।

✍कश्मीरी लाल चावला

13.
वर्ष नवल
हृदय बह गया
गीत सजल ।

✍पुष्पा सिंघी

14.
झरते पत्ते
चली वक्त की आँधी
ख्वाब टूटते ।

✍रामेश्वर बंग

15.
रातरानी का
मदमस्त यौवन
सजा है मन ।

✍प्रकाश कांबले

16.
खाट पे दादी
चश्मे से देख रही
ठूँठ तुलसी ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

17.
प्रेम के रंग
सद्भावना संग
छाये उमंग ।
    
✍रवीन्द्र वर्मा

18.
प्रभु वन्दन
करलें प्रातः हम
दिन सुगम ।

✍ए. ए. लूका

19.
भोर से आस
साँझ से शिकायत
यही ज़िंदगी ।
    
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

20.
खड़ा कोहरा
लिये ठण्ड की लाठी
छूपा सूरज ।

✍देवेन्द्र सगर

21.
रात महकी
चाँदनी ने उडेला
चाँद का इत्र ।

✍सुधा राठौर

22.
खूब निखरा
पत्तों पर प्रसरा
घना कोहरा ।

✍अल्पा जीतेश तन्ना

23.
तिमिर घना
झाँक रहा चंद्रमा
है अनमना ।

✍सुधा राठौर

24.
दाम्पत्य घड़ी
पति पत्नी दो कांटे
प्रेम है धुरी ।

✍ऋतुराज दवे

25.
घड़ी की घंटी
सुधि भाव भर दे
सुप्त मन में ।

✍मनीभाई"नवरत्न"

26.
खुशी के फूल
महकाये जीवन
निखारे मन ।

✍रामेश्वर बंग

27.
स्वयं का भान
अंतस में हो ध्यान
ईश का ज्ञान ।

✍निर्मला सुरेन्द्रन

28.
श्लोक का जाप
गागर में सागर
धुलते पाप ।

✍राधा अय्यर 'सवि'

29.
सर्द मौसम
अलाव से जज़्बात
किसे पुकारूँ ।

✍राजेश पाण्डेय

30.
भभक उठा
हवाओं की फूँक से
रवि का हुक्का ।

✍सुधा राठौर

31.
खिड़की खुली
कच्ची सी धूप मिली
ओस में घुली ।

✍अल्पा जीतेश तन्ना

32.
घर में बेटी
माँ देखती खेत में
सरसो फूल।

✍विष्णु प्रिय पाठक

33.
सारी दौलत
बेटों में गयी बंट
मां मर्माहत ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

34.
हँसे पलाश
आज फागुन मन
इठला उठा ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

35.
प्रेम की डोर
देख चाँद चकोर
मन विभोर ।

✍भीष्मदेव होता

36.
पहाड़ी ओट
साँझ सबेरे रवि
झाँकता रोज ।

✍नरेश जगत

37.
दर्द के अश्रु
मोती बन बिखरे
नैनों से झरे ।

✍उषा शर्मा "साहिबा"

38.
वृक्ष भी अड़ा
वर्षा की प्रतीक्षा में
सूखे से लड़ा ।

✍ऋतुराज दवे

39.
माघ आया है
धुँध सजी सरसों
जाड़ा छाया है ।

✍डॉ. बीना

40.
मन को हाँके
यादों की खिड़कियाँ
बुढ़ापा झाँके ।

✍ऋतुराज दवे

41.
बूढ़े ललाट
उम्र की सलवटें
कथा समेटे ।

✍ऋतुराज दवे

42.
बूढ़े , वृक्ष से
आशीष फल लदे
स्नेह से भरे ।

✍ऋतुराज दवे

43.
गिर जाते हैं
समय की शाख से
उम्र के पन्ने ।

✍अमन चाँदपुरी

44.
तेरा मिलना
मरु के तरु जैसा
शीतल छाँव ।

✍सुधा चौधरी

45.
शिशिर ऋतु
श्री हीन विटपों पे
पर्ण श्रृंगार  ।

✍मंजु शर्मा

46.
उम्र का घडा
मिट्टी के महल में
वक्त से टूटा ।

✍ऋतुराज दवे

47.
मेघ बरसे
जलमग्न है धरा
किसान झूमे ।

✍क्रान्ति

48.
शीत शर्बरी
रतिपति चलाये
कुसुम बाण ।

✍सूर्य करण सोनी

49.
बाँट दी मैंने
थोड़ी सी गर्माहट
रिश्तों के बीच ।

✍सुधा राठौर

50.
काँपते गात
कोहरा हिमपात
ठंडे लिहाफ ।

✍बिमला देवी

51.
धुँध कहर
सड़कों के हादसे
थमे पहर ।

✍बिमला देवी

52.
कोहरा पड़ा
खेतों में गेहूँ पका
किसान हँसा ।

✍बिमला देवी

53.
जीवन धूप
पिता का समर्पण
छाते का रूप ।

✍ऋतुराज दवे

54.
चुभती ठंड,
छिन्न भिन्न घमंड,
रूठी लुगाई ।

✍अजय श्रीवास्तव

55.
शुभ्र प्रभात
धुंध के लिहाफ में
सूर्य का गात ।

✍सुधा राठौर

56.
धूप निकली
क्षणभंगुर ओस
हुई बेहोश ।

✍सुधा राठौर

57.
हवा बेहाल
पत्तों की मर्ज़ी पर
बिगड़ी चाल ।

✍सुधा राठौर

58.
जलती रही
लालटेन उदास
जोहती बाट ।

✍देवेन्द्र नारायण दास

59.
पेड़पौधों पे
शीत मारता चाँटे
धूप ममता ।

✍आरती परीख

60.
खुशबू तेरी
यहाँ तक पहुँची
महका मन ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

61.
धूप के दाने
सुबह चुग लेगी
पेट भर के ।

✍शुचिता राठी

62.
अरुण गात
सूरज का ललना
झूले पलना ।

✍सुधा राठौर

63.
समेट ली है
रात ने चुपके से
काली चादर ।

✍सुधा राठौर
        
64.
किरण परी
छलकाए गगरी
जागी नगरी ।

✍सुधा राठौर

65.
हवा के तीर
दूब के नयनों में
ओस का नीर ।

✍सुधा राठौर

66.
पतंग कटी
ऊँची उड़ान टूटी
धरा पे लुटी ।

✍आर. के. निगम 'राज़'

67.
मेरी पतंग
आसमान में उड़े
बदले रंग ।

✍आर. के. निगम 'राज़'

68.
मुड़ा भास्कर
उत्तरायण गति 
हुई संक्रांति ।

✍मनी लाल पटेल

69.
बंधी पतंग
मांझा-डोरी के संग
लिए उमंग ।

✍नीरू मोहन

70.
नव उत्कर्ष
बयारित पवन
बसंत स्पर्श ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

71.
जख्म गहरा
खलिहान बंजर
सूखा दरिया ।

✍भीष्मदेव होता

72.
कर लें हम
उपासना प्रभु का
रहें प्रसन्न ।

✍ए. ए. लूका

73.
प्रेम सुगंधी
महके द्वय मन
मैं और तुम ।

✍नरेंद्र मिश्रा

74.
दुल्हन बन
कई रंगों के संग
रंगी पी रंग ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

75.
हुई उदास
पेड़ की झुकी डाली
देख कुदाली ।

✍रामेश्वर बंग

76.
छुप रहा है
अस्ताचल की ओट
निस्तेज रवि ।

✍मधु सिंघी

77.
गाँव की यादें
प्रेम भरे चेहरे
आँगन गूँजे ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

78.
माँ की ममता
आँचल की तलाश
छलकी आँखे ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

79.
मिलोगे तुम
ऐसी उम्मीद जगी
इन्तज़ार है ।

✍ए. ए. लूका

80.
गजरा चोटी
पहाड़ी में चिपके
बर्फ सफेद ।

✍नरेश जगत

81.
बिजली तार
दुनिया में पसरा
मीठा बाजार ।

✍जगत नरेश

82.
यामिनी आई
घर में दीप जले
तिमिर मिटे ।

✍सविता बरई

83.
यारों का यार
बैठा है छिप कर
पालन हार ।

✍डाॅ. मीता अग्रवाल

84.
भोर सुहानी
उगता हुआ सूर्य
लाता संदेश ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

85.
तरु  है  दादा
परिवार  का  मूल
नेक  इरादा ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

86.
जीवन मेरा
पिता का आशीर्वाद
छाँव का घेरा ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

87.
मूरत माँ की
ममता का आँचल
तीरथ झाँकी ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

88.
बहन की राखी
स्नेह भरी रसरी
उड़ती पाखी ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

89.
चाँदनी रातें
घुंघट में दुल्हन
मनोहरता ।

✍सुमिधा हेम सिदार

90.
भोर प्रभाग
सूरज का संगीत
किरण-राग ।

✍अविनाश बागड़े

91.
सर्द मौसम
पवन के सिर पे
बर्फ गठरी ।
   
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

92.
नभ में जंग
पाने क्षेत्राधिकार
लड़े पतंग ।

✍अभिषेक जैन

93.
उफनी नदी
तोड़ती सारे बंध
ये जलावृष्टि ।

गंगा पाण्डेय "भावुक"

94.
बाँधवी प्रेम
लिपटी सरसों से
मटर बेल ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

95.
रक्षा कवच
ममता का आँचल
देता ममत्व ।

✍रामेश्वर बंग

96.
थरथरायी
शज़र की पत्तियाँ
देख कुल्हाड़ी ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

97.
लहू का रंग
ईर्ष्या द्वेष से तंग
बदले ढंग ।

✍अर्चना कोचर

98.
कोहरे मध्य
सूरज दिख रहा
चाँदी का थाल ।

✍शशि त्यागी

99.
थका व हारा
ठंड से ठिठुरता
भोर का तारा ।

✍मनीष त्यागी

100.
रजनी तवा
सूरज ने बनाई
चाँद की रोटी ।

✍ऋतुराज दवे

101.
मौन पसरा
पंछी का कलरव
चुराती हवा ।

✍सुधा राठौर

102.
मन के शून्य
ईश्वर का स्वरूप
गहरा मौन ।

✍रामेश्वर बंग

103.
ओस की आस
गुलाबी अहसास
सूर्ख लिबास ।

✍अविनाश बागड़े

104.
रस टपके
आम के पुहूपों से
मन बहके ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

105.
सुखी संसार
घर बने मंदिर
माँ का सपना ।

✍सुमिधा हेम सिदार

106.
शहीद फूल
तिरंगा मे लिपटा
माँ का लाडला ।

✍भीष्मदेव होता

107.
अतीत देखा
बीते वक्त ना आये
फिसले  रेत ।

✍सुमिधा हेम सिदार

108.
हवा बहकी
महुआ है महका
रवि दहका ।

✍सुधा राठौर

109.
आया बसंत
कुहकती कोयल
मनवा डोले ।

✍महेन्द्र देवांगन माटी

110.
इंद्रधनुष
रंगीन गुलदस्ता
मन मोहता ।

✍भीष्मदेव होता

111.
डायन  मौत
जिंदगी  परेशान
लगती  सौत ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

112.
दिल को भाना
ऋतुराज का आना
गुनगुनाना ।

✍मधु गुप्ता

113.
वस्त्र हो पीले
गाए पीक सुरीली
बेर रसीले ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

114.
नई उमंग
हर्ष से भर आए
सूने नयन ।

✍उषा शर्मा "साहिबा"

115.
मन अधीर
परदेस में पिया
जाने ना पीर ।

✍राधा अय्यर 'सवि'

116.
जद्दोजहद
भूख और प्यास की
तोड़ती हद ।

✍जाविद हिदायत अली

117.
हल्दी के रंग
वक्त के साथ मिटे
गहरे जख्म ।

✍जगत नरेश

118.
उड़ती चील
अपने लक्ष्य पर
पैनी नज़र ।

✍भीष्मदेव होता

119.
बनना फूल
जीवन पथ पर
बन न शूल ।

✍रामेश्वर बंग

120.
जीवन गीत
है प्रेम का संगीत
तुम्हारी प्रीत ।

✍तृप्ति

121.
सूना जीवन
रिमझिम फ़ुहार
ख़्याल आपका ।

✍तृप्ति

122.
नाचता मोर
देखता पग ओर
रुदन ज़ोर ।

✍अंशुविनोद गुप्ता

123.
टूटी न जूडी
सास-बहूकी जोड़ी
रेल पटरी ।

✍आरती परीख

124.
दुखता दिल
बहते नेत्रजल
हरते पीर ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

125.
रवि का पथ
उष्मा से लथपथ
धूप सतत ।

✍सुधा राठौर

126.
नदी का पथ
मोड़ना आसां कहाँ
दिल आहत ।
                         
✍प्रकाश कांबले

127.
कुसूमासव
एकता की मिसाल
मधुमक्खियाँ ।

✍भीष्मदेव होता

128.
पवन बही
भ्रमर हैं चूमते
सुमन मुख ।

✍डॉ. रंजना वर्मा

129.
बौराया आम
पीत वर्ण सरसों
बासंती गान ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

130.
आमों के बौर
बने अलि के ठौर
आया बसंत  ।

✍कपिल जैन

131.
पिया हों संत
फिर कैसा फागुन
कैसा बसन्त ।

✍डाॅ. यतीश चतुर्वेदी "राज"

132.
सरसों फूली
चहुँ ओर अनन्त
आया बसन्त ।

✍डॉ. यतीश चतर्वेदी "राज"

133.
बसंत ऋतु
दिन पतंग हुये
रात सरसों ।
    
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

134.
बासंती धूप
ऋतुराज निखारे
सौंदर्य रूप ।

✍मनीभाई

135.
हे मां शारदे
हमको दो आशीष
नवाते शीष ।

✍पुरुषोत्तम होता

136.
गीत पँक्तियाँ
आह गढ़ती रही
अश्रु के संग ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

137.
बौराया आम
कुंचाया है महुआ
भीनी सुगंध ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

138.
ॠतुराज है
कोयल कूकी फूली
आम्र मंजरी ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

139.
बिखेर देता,
सुगंध की सत्ता को,
भू, में वसंत ।

✍देवेन्द्र नारायण दास

140.
स्वप्न की साधें,
याद आती पुरानी,
जागती रातें ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

141.
सरसों फूल
बासंती परिधान
ओढ़ी धरती ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

142.
पुष्प लिबास
स्वर्ण रजत घास
मधु का मास ।

✍राकेश गुप्ता

143.
धूप बिछाती
बिछौने पीले हरे
धरा शर्माती ।

✍राकेश गुप्ता

144.
चंद्रमा झाँके
गगन गोटेदार
सितारे  टाँके ।

✍राकेश गुप्ता

145.
गेंहूँ की बाली
सरसों पर लट्टू
बजाती ताली ।

✍राकेश गुप्ता

146.
दिल पतंग
मिलन आस ताजा
नजर माँझा ।

✍राकेश गुप्ता

147.
गाँव शहर
वसंत मुखरित
अवनि पर  ।  

✍अविनाश बागड़े   
                  
148.
वासन्ती गाँव
पीत वर्ण आनन
मुग्ध कानन ।

✍सुधा राठौर

149.
वासंती टेर
भँवरे का प्रणय
कली हृदय ।

✍अविनाश बागड़े

150.
प्रणय दाह
सिंगार वसंत का
भरता आह ।

✍विवेक कवीश्वर

151.
हवा दहकी
वासन्ती हरारत
पिघला मन ।

✍सुधा राठौर

152.
पराग-गंध
सम्मोहित अनंग
लिखता छंद ।

✍सुधा राठौर

153.
वासंती गीत
गाता हुआ समीर
नदिया तीर ।

✍अविनाश बागड़े

154.
बाजे मृदंग
यूँ ताथैय्या ताथैय्या
नाचे कदम ।

✍रति चौबे

155.
सूरज लिखे
धरा के आँचल पे
बासंती छंद ।

✍रीमा दीवान चड्ढा

156.
पी उर जागी
नेह की भागीरथी
मैं बड़भागी ।

✍विवेक कवीश्वर

157.
बसंत आया
लगी फूलों की हाट
भटका भौंरा ।

✍डाॅ. सुरंगमा यादव

158.
ये पतझड़
झरनों की तरह
गिरते पात ।

✍मधु गुप्ता

159.
कोयल गाती
फागुन अगुवाई
करे बसंत ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

160.
बसंत आया
महके जर्रा जर्रा
हर्षित धरा ।

✍आरती परीख

161.
कटते पेड़
धरती की पुकार
टूटती साँस ।

✍ऋतुराज दवे

162.
मेरे भीतर
है सबके अंदर
वही ईश्वर ।

✍मनिषा वाणी मेने

163.
लो खुल गया
सूरज का पिटारा
दौड़ीं रश्मियाँ ।

✍सुधा राठौर

164.
सूखता गया
पन्नों में दबकर
प्रेम गुलाब ।

✍अंशुविनोद गुप्ता

165.
ऋतु वसंत
नवल भू यौवन
खिले आकंठ ।

✍सुशील शर्मा

166.    
माता का दूध
बड़ा होकर भूला
उसका पूत ।         
  
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

167.
कटते वृक्ष
फटे धरती वक्ष
प्रश्न है यक्ष ।

✍महेन्द्र देवांगन माटी

168.
कपोत उड़े
आजादी का उत्सव
उमंग भरे ।

✍सविता बरई

169.
खिलते फूल
गंध जग मे लुटा
झर मिटते ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

170.
हुआ बिहान
करलो स्तुतिगान
प्रभु महान ।

✍ए. ए. लूका

171.
जय भारत
हो वन्दे मातरम
सबकी आन ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

172.
देश की शान
गणतंत्र दिवस
दिन महान ।

✍मनीभाई

173.
पुण्य दिवस
लहराता तिरंगा
राष्ट्र की आन ।

✍पुरुषोत्तम होता

174.
सबका हक
हमारा गणतंत्र
सबकी हद ।
  
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव

175.
खड़ी शान से
छब्बीस जनवरी
सीना तान के ।

✍अभिषेक जैन

176.
कभी तो होगा
सुखद गणतंत्र
हृदयासीन ।

✍डॉ. रंजना वर्मा

177.
वक़्त बदला
अबला नहीं रही
आज की नारी ।

✍उषा शर्मा

178.
झंडा हमारा
सुख शांति ऐश्वर्य
प्रतीक प्यारा ।

✍डाॅ. मीता अग्रवाल

179.
लहलहाए,
सोने की चिडिया है
भारत देश ।

✍पूनम मिश्रा

180.
सूरज ढला
साँझ सजने लगी
दीपक जला।

✍मनिषा वाणी

181.
तिरंगा शान
प्रतीक स्वाभिमान
गौरव गान ।

✍ऋतुराज दवे

182.
गर्व समाया
तिरंगे में लिपटी
गौरव गाथा ।

✍ऋतुराज दवे

183.
हो गई भोर
करे भाव विभोर
खगों का शोर ।

✍अविनाश बागड़े

184.
भोर सुहानी
नित नई कहानी
रश्मि की बानी ।

✍पूर्णिमा सरोज

185.
देश की शान
शहीदों का लिखना
विजय गान ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

186.
पलकें उठी
लजाई सी कलियाँ
पास भ्रमर ।

✍अविनाश बागड़े

187.
पलकें उठी
झुकी थी एक पल
जैसे कमल ।

✍प्रकाश कांबले

188.
स्नेह की गंध
महकाते जीवन
खुशी के फूल ।

✍रामेश्वर बंग

189.
सरहद पे
तैनात हैं  सैनिक
देश रक्षित ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

190.
प्रीत में बंधे
धरा और बसंत
मुलाकातों में ।

✍सुधा राठौर

191.
ढाई आखर
वसंत लिख रहा
पात-पातों में ।

✍सुधा राठौर

192.
वीर जवान
देशप्रेम कवच
ध्वज प्रेरणा ।

✍कमलेश कुमार वर्मा

193.
डूबे सूरज
नयी उम्मीद लिये
उगे सूरज ।

✍अयाज़ ख़ान

194.
स्त्री की राह में
उड़ने न दो धूल
बिछा दो फूल ।

✍शुचिता राठी

195.
सौम्य स्वरूप
प्रभात की किरणें
भोर की धूप ।

✍शुचिता राठी

196.
दूर अँधेरा
करता दिनकर
लाता सवेरा ।

✍शुचिता राठी

197.
आँसू के मोल
बिक रहीं उम्मीदें
दिल दूकान ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

198.
मन सपेरा
जादू से भरी बीन
लोभ के नाग ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

199.
ढूँढते ठाँव
धूप से डरकर
शीत के पाँव ।

✍सुधा राठौर

200.
धूप महकी
टहनियाँ लहकी
हवा बहकी ।

✍सुधा राठौर

201.
बाहर सख्त
साधु मानो श्रीफल
अंतः कोमल ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

202.
चूल्हे में तवा
लगी आग खेत में
बाजार गर्म ।

✍नरेश जगत

203.
रात सयानी
लोरी सुनाती मैय्या
झिंगुर राग ।

✍नरेश जगत

204.
रेल इंजन
नजरों को खिंचते
सरसों फूल ।

✍जगत नरेश

205.
सत्ता है दास
जिसकी सरकार
करे संताप ।

✍देवेन्द्रनारायण दास

206.
बिखरी रातें
सो गयी है चांदनी
टूटती सांसे ।

✍पूनम मिश्रा

207.
भाव निष्प्राण
संवेदना ने फूँकी
मुर्दे में जान ।

✍ऋतुराज दवे

208.
रस घोलते
पंछियों के कलरव
गीत सुनाते ।

✍उषा साहिबा

209.
नभ से गिरा
टहनी में अटका
उनींदा चाँद ।

✍सुधा राठौर

210.
मधुप हास
फूल कली श्रृंगार
है मधुमास ।

✍अंशुविनोद गुप्ता

211.
धूप के गाँव
लड़खड़ाते हुए
शीत के पाँव ।

✍आरती परीख

212.
नभ रंगोली
सूर्य देता विदाई
साँझ रंगीली ।

✍मीनाक्षी भटनागर

213.
नागफनियाँ
काँच हुए टुकड़े
सजी दीवारें ।

✍जगत नरेश

214.
मन की नदी
फागुनी हवा चली
लहर उठी ।

✍देवेन्द्र नारायण दास

215.
हवा चलती
मैना डाली पे बैठी
झूला झूलती ।

✍सविता बरई

216.
हुआ अजूबा
झील के नयनों में
चंद्रमा डूबा ।

✍सुधा राठौर

217.
मन कोमल
सहेजे अविरल
स्वप्न कोंपल ।

✍पूर्णिमा सरोज

218.
मन की व्यथा
हम किसे सुनाएँ
सभी बेगाने ।

✍ए. ए. लूका

219.
ऋतु वसंत
आम्रमञ्जरी संग
बौराया मन ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

220.
झूठे वहम
मिट्टी के घरोंदे का
मालिक अहं ।

✍ऋतुराज दवे

221.
शमशान में
मुर्दे समझा रहे
जीवन अर्थ ।

✍ऋतुराज दवे

222.
चाँदनी रात
दरिया का किनारा
तेरी जुस्तजू ।

✍हाॅरून वोरा

223.
सिसके रिश्ते
पड़े तनहाई में
माँ बाप बूढ़े ।

✍कमलेश कुमार वर्मा

224.
चाँदनी रात
चमकते सितारे
नीर के झाग ।

✍जगत नरेश

225.
दूधिया बल्ब
उज्ज्वलमय निशा
पूर्णिमा तिथि ।

✍जगत नरेश

226.
घायल उर
पर वंशी का स्वर
होता मधुर ।

✍सुधा राठौर

227.
माना ग्रहण
रूपवान चन्द्रमा
लज्जा से लाल ।

✍अंशु विनोद गुप्ता

रविवार, 28 जनवरी 2018

रेंगा

 

विश्व के प्रथम रेंगा संग्रह "कस्तूरी की तलाश" एवं संग्रह के संपादक 

आ. प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी की 

उपलब्धियों की शान में आयोजित रेंगा सृजन ।

        प्रस्तुति : अविनाश बागड़े

    संचालक : हाइकु ताँका प्रवाह

         13 जनवरी 2018

        ●●●●●●●

दीपक सदा
प्रकाशित ही रहा
राह दिखाते  - अविनाश बागड़े
नित नवीन पथ
कल्पनाएँ साकार  - सुधा राठौर
एक दीपक
हमको मिल गया
सम्भाले इसे  - अविनाश बागड़े
स्नेह साथ विश्वास
कस्तूरी की तलाश - प्रदीप कुमार
हम सब है
पांच सात व पांच
सात - सात है  - अविनाश बागड़े
हां साथ साथ चलें
साहित्य पथ रचें  - हेमलता मानवी
सृजन पथ
होता रहे विस्तृत
पूर्ण आश्वस्त  - सुधा राठौर
शब्द ब्रम्ह चढ़ाएं
अक्षत चंदन से  - हेमलता मानवी
हाइकु ताँका
कहीं पे रेंगा रचें
चोका भी साथ  - सुधा राठौर

मिल कर कदम

बढ़ाएँ साथ-साथ  - प्रदीप कुमार
समूह बढे,
हाइकु पहचान,
फैलता जाल  - पूनम
शाम की यह बेला
रेंगा ये अलबेला  - अविनाश बागड़े
चला अथक
मिलते गए राही
बना कारवाँ  - सुधा राठौर

महक चला पथ

 मिले हमसफर  - प्रदीप कुमार
शब्द बुनते,
रेंगा बनते चले
 साहित्य रूचि  - पूनम
कल्पना व साधना
कृति की आराधना  - निर्मल सुरेन्द्र
शब्दों के मोती
चुनते चलें  सभी
बुनें सृजन  - पूर्णिमा
कुछ भाव पिरोएँ
कुछ बिम्ब सजाएँ  - सुधा राठौर
कुछ अक्षर
थोड़े बहुत शब्द
भाव प्रवल - अविनाश बागड़े
होते गहरे अर्थ
देते हमें रोशनी  - रामेश्वर बंग
दीप निःस्वार्थ
जला करे जाँबाज
तम परास्त  - राकेश गुप्ता
मिटता है अँधेरा
मिलता है प्रकाश  - रामेश्वर बंग
ज्ञान प्रदीप्त
बने आकाशदीप
आत्मा उज्ज्वल  - मधु सिंघी
मन करे शीतल
महकता चंदन - रामेश्वर बंग
सुखानुभूति
सदा रहे स्वीकृति
होती प्रगति  - मधु सिंघी

निरंतर चलना
सुखद अनुभूति  - प्रदीप कुमार

शब्दो की माला,
पांच सात पांच ये,
अर्थ है पूर्ण  - पूनम
हाइकु और रेंगा
प्रवाह बना रहे  - अविनाश बागड़े
मन सरिता
शब्द शब्द के मोती
कृति है काव्य  - रामेश्वर बंग
ऊर्जावान बनाये
ये प्रदीप दीपक - अविनाश बागड़े
शिक्षार्थी हम
गुरुजन सम्मुख
नतमस्तक  - सुधा राठौर
गुरु देते आशीष
शब्द शब्द का ज्ञान - रामेश्वर बंग
ज्ञान की पूँजी
अमूल्य धरोहर
करें अर्जित  - सुधा राठौर
निखारे मन भाव
जीवन मे आलोक - रामेश्वर बंग
जीवन पथ
भर देता उजास
ज्ञान -प्रकाश - सुधा राठौर
देता नव चेतना
खिले खुशी के फूल - रामेश्वर बंग
वैश्विक रूप
कस्तूरी की तलाश
मिला स्वरुप - अविनाश बागड़े
रचा है इतिहास
विश्व पटल पर - रामेश्वर बंग
होवे प्रशस्त
सृजन का ये पथ
नित सतत - सुधा राठौर
मिल जाये कस्तूरी
तलाश हो सफल - अविनाश बागड़े
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