मान्यवर प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी के अनमोल चोका संग्रह "माटी के दीप" की समीक्षा
मेरे अंचल, मेरी माटी, मेरे घर छत्तीसगढ़ से निकली पुस्तक हाइकु साहित्य के पारंगत मान्यवर "प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी द्वारा प्रकाशित चोका संग्रह "माटी के दीप के लिए मेरे दो शब्द ।
सर्व प्रथम इस पुस्तक में पहले ही देखने को मिलता है कि वे अपनी धर्म पत्नी को समर्पित यह पुस्तक नारी के प्रति उनका सम्मान झलकता है । आपकी इस पुस्तक की विशेषता उनके मनोभाव को दर्शाती है । भावों की तरलता से कलमबद्ध किया है ।चोका हाइकु विधा की छोटी सी काव्य शैली में अपने अनुभव का रस कविता मे पिरोया है । हर काव्य में परिस्थितियों के आंकलन का सशक्त निराकरण किया है ।
उनकी पहली कविता 'चिड़िया' उषा के उदय होते ही पंछी के कलरव से शुरु होकर नीड़ बनाने की यात्रा तक उसकी जीवन शैली को दर्शाती है । "बेटियाँ" कविता में नारी की वेदना, नारी अपनी मन की इच्छा को कब तक दबा के रखेगी जबकि नारी में जीवन दान देने की शक्ति है। "तुलसी" के पौधे से नारी का तुलनात्मक वर्णन किया है । तुलसी का पौधा जैसे पवित्र है वैसे दवाई के काम भी आती है । "छोटा सा दीप" यदि अपने किंचित आभा से प्रज्वलित होकर अंधेरे को दूर करती है और हराकर सुबह का इंतजार करती है ।
"सुप्रभात" कविता में प्रकृति को एक माँ का रूप मानते हुए उगते सूर्य को अबोध बालक मान लिया और प्रकृति का वर्णन करते हुए प्रकृति के गोद में समाहित कर दिया । शाश्वत प्रीत का बिम्ब कितना सुंदर है, तन बाँसुरी और पूरे जग को एक विशाल कदम के पेड़ के रूप मे दर्शा कर अपने मनोभावना को व्यक्त किया है । "शुभ चंन्द्रिका" में प्रियतम से मिल कर बात करने की और प्रेम की परिभाषा को इंगित करती है । मिलन कविता मे ओ री जूही में पुष्प के खिलते ही मानो अपनी आहुति श्रृंगार से पूजा स्थल देने आई हो । भौरों का रस चूसना समर्पित भाव को दर्शाता है । अवसाद कविता में सुन्दर बिम्ब उभर कर आया है । उर की खिड़की दर्द की धूप के साथ साथ जीवन के प्रति उदासीनता का वर्णन मन को छू लेती है । भोर स्वागत, मेघों के गाँव, प्रकृति के वर्णन के साथ साथ जीवन दर्शन को दर्शाती है । सृजन द्वार में कल्पना की उँचाई को छूते हुए रात के गर्भ में पल रहे सूरज को एक नवजात के रूप में परिलक्षित करता है । तृण का सूखना भी पंछी के लिए सौगात है क्यों कि उसी तिनके से वह अपना नीड़ बनायेगा । कितना दूर दृष्टिकोण है कवि के मन में । सुबह के वर्णन के साथ-साथ उन्होने संध्या को भी अपनी पुस्तक में स्थान दिया है ।आपने संध्या को एक प्रेयसी के रूप में वर्णन कर नव वधू मान शाम के क्रियाकलाप को बुना है । लोगों की परवाह न करते हुए जीवन के गति को चलने देना चाहिए । कौन कविता में दृष्टिगोचर होता है । जिन्दगानी में बदलते परिवेश को दर्शाते हुए उसी के समकक्ष सूरज की तलाश को दर्शाया है । मिट्टी का बेटा एक अहम रचना है जिसमें हमारे जीवन में किसान की कितनी आवश्कता है ।कवि का कहना है किसान देश की रीढ़ की हड्डी है । धन्य है आज देश की आजादी का वर्णन, देश प्रेम से ओत-प्रोत, शहीदों को वंदन करते हुए आजादी को न भूलने की हिदायत दी है । यादो के रील बार बार संस्मरण का आना जाना चलता रहता है । मेरा भारत देशभक्ति को चिन्हित करती है । निशा का जाल एक कुम्हार की जीवन को दर्शाता है, जो कि भूखा रहकर अपने बच्चों को पालना चाहता है और अंधेरे से उजाले की ओर ले जाना चाहता है ।कवि के मन मे वर्षा के आते ही जो खुशी प्रकृति के अंदर दिखाई देती है उसका भी वर्णन बखूबी की है ।
मुखपृष्ठ "माटी के दीप" शीर्षक को सार्थक करती है । अविशा प्रकाशन नागपुर से प्रकाशित यह पुस्तक पूर्ण रूप से अपना कर्तव्य निभाने में सफल हुआ है । मेरा पाठक गणों से आग्रह है कि इस किताब को पढ़ें और चोका काव्य का आनंद लें ।
मैं पुस्तक के लेखक मान्यवर प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी एवं अविशा प्रकाशन को मेरी शुभकामनाओं सहित बधाई देती हूँ ।
~ रूबी दास "अरु"
नागपुर महाराष्ट्र
9145252882
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