हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 21 जून 2020

हाइकुकार श्रवण चोरनेले 'श्रवण' जी के हाइकु

हाइकुकार

श्रवण चोरनेले 'श्रवण'

पितृ-दिवस

पिता पर समर्पित हाइकु

~ १ ~
नव जीवन
सुख की परछाई
पिता बनना  

~ २ ~
सुखी संसार
बाहों भरे खुशियाँ
वात्सल्य प्यार ।

~ ३ ~
पथ दर्शक
रक्षक - संरक्षक
पिता शिक्षक ।

~ ४ ~
आत्म विश्वास
एक ही अहसास
बेटी की आस ।

~ ५ ~
साथ रहते
सहारा पल पल 
सदा करते ।

~६ ~
आपका हाथ
सारे तम हरते
हमारे साथ ।

~ ७ ~
पिता के लिए
होते दोनों समान
बेटी या बेटा ।

~ ८ ~
दिल में रहे
लालन पालन की
जुगाड़ करे ।

~ ९ ~
कुटुंब प्यारा
ले के सबको साथ
तटस्थ हाथ ।

~ १० ~
कदम सारे
पर्यवेक्षक बन
पिता निहारे ।

~ ११ ~
पिता नाम है
मेहनती शान है
चारों धाम  है ।
---0---

□ श्रवण चोरनेले 'श्रवण'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

~ हाइकुकार विवेक कवीश्वर जी के हाइकु ~

हाइकुकार

विवेक कवीश्वर

हाइकु 
--0--

धूप का गौना
धूप को लजाने का
मिला बहाना ।
--0--

बिजुका देखे 
लहलहाते रंग 
हुआ मलंग ।
--0--

मन बादल 
तन मोरपंख सा 
भाव तरल ।
--0--

अश्व रवि के 
थके हैं; चुके नहीं 
फिर दौड़ेंगे ।
--0--

कुटिल नभ 
यायावर सन्दर्भ 
साज़िश गढ़ी ।
--0--

रक्तबीज हैं 
दिशाहीन धरने 
और उगेंगे ।
--0--

पैरों के चिन्ह
सब हुए बैरागी
बस, जाने के ।
--0--

भूख से मरे
पिता का श्राद्ध हुआ
कौवा है तृप्त ।
--0--

सिर्फ़ वो लम्हे 
जो ना थे कभी मेरे 
रहे नूरानी ।
--0--

जीवन रेत
मृगतृष्णा वहन 
पूर्णविराम ।
---0---

□ विवेक कवीश्वर
39-बी, सूर्या अपार्टमेन्ट्स
नई दिल्ली, पिन - 110019

शनिवार, 20 जून 2020

हाइकुकार डॉ. राजेन्द्र सिंह "राही" जी के हाइकु

योग दिवस विशेष

हाइकुकार
डॉ. राजेन्द्र सिंह "राही"

हाइकु

1.
रखना ध्यान 
कांतिवर्धक योग
स्वस्थ शरीर । 

2.
भारत देश 
पुरातन संस्कृति 
दिखता योग । 

3.
योग दिवस
भारतीय गौरव
विश्व संदेश । 

4.
निरोगी तन
प्रसन्नचित्त मन
स्वास्थ्य है धन । 

4.
वेद-पुराण
मिलते है प्रमाण 
योग कल्याण । 

5.
भारत देश 
सनातन संस्कृति 
योग विधान । 

6.
औषधि योग
तन-मन की पीड़ा 
करता दूर । 

7.
दूर तनाव
नियमित व्यायाम 
कर लो योग । 

8.
रक्त संचार
सक्रिय सब अंग
दूर बुढ़ापा । 

9.
जरूरी ज्ञान 
अनेक योगासन 
ध्यान सुविधा । 

10.
दूर हो भ्रम
योग एक माध्यम 
स्वस्थ जीवन । 
---0---

□ डाॅ. राजेन्द्र सिंह "राही"
बस्ती, (उ. प्र.) 

~ हाइकुकार अजय चरणम् जी के हाइकु ~

हाइकुकार 


अजय चरणम् 


हाइकु 

--0--


घाटी में घूम 
निर्गुण गा रही है 
बावली हवा ।
--0--

धरा तुलसी 
आसमां बरगद 
मैं नागफनी ।
--0--

भटक रही 
मन की नदिया में 
तन की नाव ।
--0--

काट गया जो
लकीर से लकीर 
बना फकीर ।
--0--

आँखों  के रास्ते
कोई गुजर गया
आँसू  बन के । 
--0--

चूल्हे की आग
कितनी ठंडी  होती
रोटी के  बिना ।
--0--

दलित अब
सिर्फ दलित नहीं
साहित्य बना । 
--0--

हवा जो आई
गिर रहीं  पत्तियाँ
साथ जाने को ।
---0---

□ अजय चरणम् 
पूरब अजीम गंज, हवेली खङगपुर, 
मुंगेर (बिहार) पिन - 811213

~ हाइकु कवयित्री शीला शर्मा जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

शीला शर्मा 

हाइकु 
--0--

शब्द दामिनी 
सवलता स्वामिनी 
निर्झर यही ।
--0--

परंपरा का 
आध्यात्मिक दर्शन 
नदी सा भाव ।
--0--

हदें निगाहें
संस्कारों से विमुख 
शून्य सी स्थिति ।
--0--

स्मृति लहर
उमड़ती सी आई 
डूबती गई ।
--0--

मनाया जश्न 
ओढ़ लिए सैलाब 
सो गए प्रश्न ।
--0--

तृण नोकों से 
मुस्कराती है ओस
क्षणभंगुर ।
--0--

भू आच्छादित
अद्भुत संयोजन 
ऋतु योजन ।
--0--

निखरे वही 
जो बिखरा होता है 
तजुर्बा यही ।
---0---

□ शीला शर्मा 
नागपुर (महाराष्ट्र)

~ हाइकुकार ओ. पी. गुप्ता जी के हाइकु ~

हाइकुकार 

ओ. पी. गुप्ता

हाइकु 
--0--

रोया व हँसा 
रोया तो मुस्काया औ
हँसा तो रोया ।

कल्पनाजीवी 
धरती पर खड़े 
नभ निहारे ।

सत्य कड़वा 
कड़वा ही रहेगा 
मीठा कैसे हो !

जज़्बा या तर्क 
दुनिया ज़ज्बे संग 
तर्क निस्संग ।

चढ़ोगे यदि 
उतरना भी होगा 
जीना-मरना ।

कौन जीता है 
तर्क वितर्क जंग 
दोनों हारे हैं ।

मरते रहो 
अमरता है जड़
जग है धारा ।

बादल छाये 
शायद वर्षा होगी 
कभी न होगी ।
---0---

□ ओ. पी. गुप्ता 
हाँसी रोड, शिव नगर, भिवानी 
(हरियाणा)

हाइकुकार सूर्यदेव पाठक "पराग" जी के हाइकु

हाइकुकार 

सूर्यदेव पाठक "पराग"

हाइकु 
--0--

माता की साँस 
शिशु की धड़कन 
पाती जीवन ।

फूलों की गंध 
कंटकों की चुभन 
यही जीवन ।

चाँद सलोना 
रजनी मुख पर
लगा डिठौना ।

खिली चमेली 
खुशबू अलबेली 
नई नवेली ।

धरती पर
ममता सदा रोती 
माँ जो न होती ।

नन्हाँ सा शिशु 
माँ का दिया संस्कार 
घुट्टी में पाता ।
---0---

□ सूर्यदेव पाठक "पराग"
मढौरा, जिला- सारण (बिहार)
पिन - 841418

शुक्रवार, 19 जून 2020

~ हाइकुकार शंम्भू सिंह रघुवंशी जी के हाइकु ~

हाइकुकार 

शंम्भू सिंह रघुवंशी "अजेय"
हाइकु

मासूम कली
सदा दबी मसली
फिर भी फली ।

कलिका चली
भगवान को भली
पीढियां जलीं ।

सुमन कली
पाशविकता खली
सरिता गली ।

मैं रामकली
उदर में मचली
आई धवली ।

फुलबगिया
परिवार कलिका
अश्रुछलिका ।

तट हमारा
ढूंढते पतवार
तुम्हारे द्वार ।

नदी किनारे
संगम इतराएं
गंगा नहाते ।

देखते कूल
समय प्रतिकूल
जीवन धन ।

जीव विकट
असमंजस तट
ये मरघट ।

दूर किनारा
अखिलेश सहारा
फिरता मारा ।
---0---

□ शंम्भू सिंह रघुवंशी "अजेय"
 मगराना, गुना (म. प्र.)

~ हाइकुकार दिनेश रस्तोगी जी के हाइकु ~

हाइकुकार


दिनेश रस्तोगी 

हाइकु 
--0--

मानव वन
करुणा,प्रेम,दया
ईश सर्वत्र ।

साफ रखिये
हृदय का दर्पण
हरि दर्शन ।

देश अपना
लुटेरे भी अपने
यही तो रोना ।

मचले तन
कसमसाता मन
लगी लगन ।

सूरज अस्त 
संध्या हो रही मस्त 
दोनों अभ्यस्त ।

मोह के पत्ते
सूख सूख गिरते
वृक्ष बुढ़ापा ।

तितलियों के
फूलों से थे इशारे
हम तुम्हारे ।
---0---

□ दिनेश रस्तोगी

~ हाइकुकार राजकुमार चौहान जी के हाइकु ~

हाइकुकार

राजकुमार चौहान "भारतीय"

हाइकु 
---0---

धरा थी मौन
घेरा है विपदा ने
दोषी है कौन ।

कहा सलाम
हैं साजिशें दिल में
प्यार धड़ाम ।

ये तानाबाना
रखा ही रह जाना
भजो राम रे ।

तू दयालु है
उबारेगा बला से
मैं अकिंचन ।

भूला नहीं मैं
याद मुझे तू रख
मत परख ।

तम धड़ाम
पूर्व से सूरज का
हुआ सलाम ।

उगा सूरज
एक आस जगी है
भागेगा तम ।

सुख औ दुख
दो किनारे हैं साथ
सिखाते ज्ञान ।
---0---

□ राजकुमार चौहान "भारतीय"
शिवपुरी (म.प्र.)

~ हाइकु कवयित्री साधना कृष्ण जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

साधना कृष्ण 


हाइकु 
--0--

सावन आया
विहँसे भू पहन
हरा वसन ।

उदास पाखी
तलाश रही पानी
सुखी नदियाँ ।

जीवन गति
मौन अनवरत
करती काम ।

सपने मेरे
शीश महल सम
टूटे बिखरे  ।

गीतिका गंध
मदहोश अंतस
भावाविभोर ।

नेह का धन
बेसुमार पास जो
कैसी गरीबी ।

बहती नदी
बस यही कहती
चलते रहो ।

उफनी नदी
कहती रही सदा
धीर रे मन ।

सूखी नदियाँ
जल में प्यासी
भोगती सजा ।

पड़ते रज
बोल उठा पाषाण
ताड़े मुझको ।

सोचे  पाषाण
कलकल नदियाँ
प्यास बुझाती ।

ख्वाहिश बुने
परिंदे बैठ अपने
सुघर नीड़ ।

नन्ही चिड़िया
उडती गगन में
सोती घोंसला ।

नयन करे
बेहद मनमानी
हो बदनामी ।
     
रीत पुरानी
रखना बचा कर
आँखों का पानी ।

बाली धान की
खेतों में खुशहाली
हुलसे मन ।

मंद पवन 
बहे  चहुँ ओर ही
कम्पित तन ।

उतरी प्राची
बिखरी चहुँ ओर
स्वर्णकिरण ।

□ साधना कृष्ण

~ हाइकुकार बलजीत सिंह जी के हाइकु ~

हाइकुकार
बलजीत सिंह 

हाइकु

---0---

         
मांस न अंडा
शाकाहारी भोजन
कलेजा ठंडा ।

          
अंधविश्वास
सामाजिक बुराई
घर का नाश ।

       
चाकू न छुरी
बड़ी ख़तरनाक
               नज़र बुरी ।                  

           
बहानेबाजी
जैसे टूटी प्लेट में
सब्जियां ताजी ।

     
घोड़े न हाथी
जीवन की गाड़ी को
धकेले साथी ।

    
लंगड़ा-अंधा
रोटी ही करवाये
सबसे धंधा ।

     
फूल न डाली
जब कटा बगीचा
रो पड़ा माली ।

    
चाचा-भतीजा
स्वार्थ के चूल्हे पर
पकाये पिज्जा ।

      
सोना न चांदी
समय बलवान
रानी को बांदी ।

   
नेक इंसान
खरीद कर जख्म
बांटे मुस्कान ।
---00---

□ बलजीत  सिंह
ग्राम / पोस्ट - राजपुरा  ( सिसाय )
जिला -  हिसार (हरियाणा) पिन - 125049
Email-- baljitsinghrajpura77@gmail.com
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हाइकुकार आरविलि आशेन्द्र लूका जी के हाइकु

हाइकुकार

आरविलि आशेन्द्र लूका 

हाइकु 
--0--

न बिखरना
ज़िंदगी को आज़मा
रख हौसला ।

दिल के रिश्ते
किस्मत से बनते
सम्भालें इसे ।

तकते नैन
विरह की अगन
आओ सजन ।

प्रेम गागरी
करुणा रस भरी
स्नेहिल मातृ ।

टूटे सपने
रूठे सब अपने
मनाऊं कैसे ?

प्रभु हमारा
दुःख भंजनहारा
तारणहारा ।

झांकता सूर्य
अलसाई सी धूप
मेघों के बीच ।

मां की ममता
गई है लाने दाना
चूज़ा है भूखा ।
---0---

□ आरविलि आशेन्द्र लूका
ओम नगर, जरहाभाटा बिलासपुर 
(छत्तीसगढ़)

गुरुवार, 18 जून 2020

हाइकु कवयित्री आशा लता सक्सेना जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

आशा लता सक्सेना 

हाइकु 
--0--

वह  गुलाब 
मैं कंटक उसका 
बचे रहना ।
--0--

प्यार दुलार 
पर्यायवाची लगे 
प्रेम स्नेह के ।
--0--

नहीं भ्रमित 
टूट गया बंधन 
अनुराग का ।
--0--

स्नेह माता का 
अनुराग प्रिया का 
जाने न देता ।
--0--

सागर सीपी 
एक स्थान पर हैं  
मोती है खरा ।
--0--

पानी मोती का 
नूर चेहरे का है 
सच्चा परखा ।
--0--

□ आशा लता सक्सेना

~ हाइकु कवयित्री शर्मिला चौहान जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

शर्मिला चौहान 

हाइकु 
---0---

मेघ बरसे
भीगी धरा गमके
प्रेम महके ।

बरसे पानी
नवांकुर फूटते
चूनर धानी ।

पेड़ लगाएँ
पाले सींचे बढ़ाएँ
धरा बचाएँ ।

जीवन भर
देते वायु भोजन
ऋणी है जन ।

जिंदगी चली
लेकर कई बलि
कमियां खली ।

वर्ष बीतेंगे
अपनों से दूरियां
दिल रीतेंगे  ।

दुनिया सारी
मृगतृष्णा सी ढूंढे
राह निराली ।

मन की प्यास 
दिन गिना करता
शुभ की आस ।

परीक्षा घड़ी
जिंदगी सहमी सी
व्यथित खड़ी ।
---0---

□ शर्मिला चौहान

~ हाइकु कवयित्री मधु शुक्ला जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

मधु शुक्ला 

हाइकु 
--0--

चिंता सताये
हैरान परेशान
बेटी की शादी ।
---0---

प्रतियोगिता
कृत्रिम व्यवहार 
चिंता प्रदाता ।
---0---

बेरोजगारी
ये चिंता का विषय 
शिक्षा व्यवस्था ।
---0---

लाॅक डाउन
काम काज ठप्प है 
रोटी की चिंता ।
---0---

स्वार्थपरता
अपने में मगन
देश की चिंता ।
---0---

जीवन शैली
बदले मान दंड
कल की चिंता । 
---0---

चिंता चिता है
सुलगता इंसान
रहो सजग ।
-----0-----

□ मधु शुक्ला
सतना (मध्यप्रदेश)

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