हाइकु मञ्जूषा
नवम्बर - 2017 के चयनित हाइकु
{श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु संचयन}
संपादक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
( "हाइकु मञ्जूषा", "हाइकु - ताँका प्रवाह", "हाइकु मंच छत्तीसगढ़" एवं "हाइकु की सुगंध" समूह से साभार )
01.
बुने रश्मियाँ
सूर्य लला के लिये
पीताभ वस्त्र ।
✍सुधा राठौर
02.
भोर झंकृत
प्रकृति अलंकृत
झरे अमृत ।
✍पूर्णिमा सरोज
03.
गाँव की नाक
लोभ ने काट दिया
आम का बाग ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
04.
गजब नूर
सुबह की मांग में
सजा सिंदूर ।
✍सुधा राठौर
05.
नहीं परायी
आंगन की तुलसी
सदा हूँ साक्षी ।।
✍उपेन्द्र प्रसाद मेहेर
06.
विष्णु की प्रिया
शालिग्राम से ब्याही
तुलसी वृंदा ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
07.
शाल के वृक्ष
चिडियों की चहक
गूंजते वन ।
✍क्रान्ति
08.
जेठ की परी
तपती दोपहरी
दुःखी बेचारी ।
✍वासुदेव साव
09.
शहीद पिया
एकादशी त्यौहार
बिलखे दिया ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
10.
प्रेम का रस
सुमधुर सुखद
सुधा सरस ।
✍सविता बरई
11.
आश्रम चार
मनु हों शत आयु
शुद्ध आचार ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
12.
कार्तिक मास
बढ़े शीत आभास
तुलसी खास ।
✍प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
13.
कपास पुष्प
फैल रहे नभ में
शरद मेघ ।
✍ज्योतिर्मयी पंत
14.
हवा है मौन
पत्तों की फुनगी पे
बैठा ये कौन ।
✍सुधा राठौर
15.
प्रतीक्षारत
बुढ़ाया बरगद
सूनी चौपाल
✍शशि त्यागी
16.
तुलसी दल
हरे शरीर व्याधि
अमृत तुल्य ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
17.
पूस की रात
खिसकी खपरैल
फूस न पास ।
✍मनीष त्यागी
18.
लिख रही हैं
सूरज की किरणें
दिन की चिट्ठी ।
✍सुधा राठौर
19.
बजा न ढोल
सोच समझ कर
प्रेम से बोल ।
✍परमेश्वर अंचल
20.
देश की मिट्टी
जैसे सौंधी महकी
अम्माँ की लिट्टी ।
✍सुधा राठौर
21.
जगमगाता
अँधेरे उजालों का
बेनाम रिश्ता
✍मीनाक्षी भटनागर
22.
धरा को ताके
साँझ की चुनरी से
सूरज झाँके ।
✍ऋतुराज दवे
23.
धूप में छाया
खुशियों का खजाना
माता का साया ।
✍सविता बरई
24.
उठी ऊंगली
फितरत हमारी
यह बीमारी ।
✍अविनाश बागड़े
25.
दीवार पार
भाई का परिवार
इधर हम ।
✍डॉ. रंजना वर्मा
26.
ईमान भरा
ऑफिस में खो गया
बॉस अकेला ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
27.
नन्हें-से तारे
चाँदनी की गोद में
किलकें सारे
✍सुधा राठौर
28.
थोथी निकली
स्वच्छता की मुहिम
मन की गली ।
✍अभिषेक जैन
29.
निकल भागी
पत्तों से निकल के
पीपल छाँव ।
✍सुधा राठौर
30.
पूर्वी ललाभ
प्रात प्रदीप्त हुई
आशा महकी ।
✍राजेश पाण्डेय
31.
तितली उड़ी
फूल-फूल पे बैठी
बिखरी ख़ुशी ।
✍अविनाश बागड़े
32.
रजनी में भी
रातरानी की खुश्बू
सोने न देती ।
✍निर्मला हाण्डे
33.
सिहरन सी
ओढ़ा है माँ का शाल
एक सुकून ।
✍रति चौबे
34.
हर्ष -विषाद
अनुभूति के द्वार
मन आधार ।
✍सुधा राठौर
35 .
वक्त के जाल
उम्र काँटे में फंसी
जैसे मछली ।
✍ऋतुराज दवे
36.
जलता चूल्हा
गगनचुंबी धुआं
भूखा टाबर ।
✍भुपिंदर कौर
37.
आग जो लगी
पता नही क्या हुआ
छा गया धुँआ ।
✍जाविद अली
38.
दो जून रोटी
छाई ख़ुशी अनूठी
निर्धन कोठी ।
✍नीलम शुक्ला
39.
बेटी व ख़ुशी
नाज़ो से है मिलती
सदा फलती ।
✍शुचिता राठी
40.
तितली हँसी
फूलों के अधरों पे
रख दी खुशी ।
✍सुधा राठौर
41.
अजान शुरू
मंदिर की घंटियां
बजाते गुरु ।
✍सुशील शर्मा
42.
उजली रात
चाँद मुस्कुराता है
बुलाता पास ।
✍जगत नरेश
43.
देखे चेहरे
घाव अति गहरे
कब थे हँसे ?
विनय कुमार अवस्थी
44.
संस्कृति साख
चल अमल कर
कर साकार ।
✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"
45.
नाव की धारा
है दिशा विपरित
यात्रा मंगल ।
✍सुमिधा सिदार
46.
आज की बेला
आदमी है अकेला
स्वार्थ का खेला ।
✍धनीराम नंद
47.
क्षिति जननी
क्षितिज है जनक
मित्र दरख्त ।
✍सविता बरई
48.
रात जागती
करवट बदलें
नैन उनींदे ।
✍डाॅ. रंजना वर्मा
49.
जगत हुआ
ऊर्जा से भरपूर
सुहानी भोर ।
✍पूर्णिमा सरोज
50.
झरता रहे
मुख से मधु मीठा
मन किलके ।
✍रीमा दीवान चड्ढा
51.
मेरा संसार
संयुक्त परिवार
नेक विचार ।
✍अनिता मंदिलवार "सपना"
52.
दिल्ली में घर
कुंभीपाक की पीड़ा
भोगते नर ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
53.
सुंदर फूल
जीवन की बगिया
झरे खुशबू ।
✍रामेश्वर बंग
54.
सुलग रही
प्रदूषण की बीड़ी
धुआँ विषाक्त ।
✍सुधा राठौर
55.
मन्दिर न जा
खुद के 'भीतर' जा
तू 'भी तर' जा ।
✍राकेश गुप्ता
56.
जुल्फों की घटा
सावन याद आया
महकी फिज़ा ।
✍संतोष जी
57.
रश्मि चिड़िया
पेड़ की फुनगी पे
करे बसेरा ।
✍रंजना वर्मा
58.
भूखा बालक
माँ गई है करने
रेसिपी क्लास ।
✍अभिषेक जैन
59.
शब्द की चोट
रिश्तों की गरदन
देती है घोंट
✍सूर्य करण सोनी
60.
नवल ध्वज
प्रात पर लेकर
हम सहज ।
✍राजेश पाण्डेय
61.
पात चहके
उष्मा रवि पा खग
तृण चुनते ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
62.
सूर्य वंदन
नव्या नवेली ज्योति
धरा शोभित ।
✍सविता बरई
63.
सफर घड़ी
जीवन संघर्ष है
मेला की बेला ।
✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"
64.
हवा बौराई
फिरती पगलाई
कहाँ चुनरी ।
✍सुधा राठौर
65.
कुरेद दिये
संतोष की चमड़ी
ईर्ष्या के नख ।
✍अभिषेक जैन
66.
कटारी नैन
लहराती अलकें
डसती चैन ।
✍किरण मिश्रा
66.
तिरछी नोक
झालरदार पत्ते
पेड़ अशोक ।
✍बलजीत सिंह
67.
वायु मलिन
फ़ेफ़ड़े गमगीन
व्याधि नवीन ।
✍संजीव नाईक
68.
भक्ति में खोना
ज्यों पारस का छूना
हुई मैं सोना ।
✍शुचिता राठी
69.
सुलझे गाँठ
बन जा मनमीत
दुनिया जीत ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
70.
मन के कच्चे
जब तक थे बच्चे
हम थे सच्चे ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
71.
मासूम बच्चे
खो गया बचपन
बोझों से लदे ।
✍अभिषेक जैन
72.
ज़िंदा है अभी
मेरे-तेरे भीतर
नन्हा सा बच्चा ।
✍सुधा राठौर
73.
अश्रु के मोल
दर्द की अनुभूति
यही भूगोल ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
74.
चाचा के ख़्वाब
टुकड़े-टुकड़े में
पीला गुलाब ।
✍विष्णु प्रिय पाठक।
75.
मोबाइल से
खो गया बचपन
सूना आँगन ।
✍अनिता मंदिलवार "सपना"
76.
थपकी देती
हथेलियाँ सख्त क्यों
पिता की गोद ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
77.
नोंच के फेंकी
बाल दिवस को ही
कोख से कली ।
✍अंशुविनोद गुप्ता
78.
लालिमा कहे
सूर्योदय का भान
लगाओ ध्यान ।
✍पूर्णिमा सरोज
79.
अचल मेरु
एकता में पत्थर
खड़े अटूट ।
✍सुशील शर्मा
80.
मन की धरा
पानी बदले रंग
वक्त के संग ।
✍रामेश्वर बंग
81.
कुड़े में रोटी
गरीब का निवाला
भूख की मार ।
✍संजय कुमार
82.
हर्षित मन
पुलकित बदन
ख्वाब सदन ।
✍अविनाश बागड़े
83.
निःस्तब्ध वृक्ष
निर्निमेष निहारे
विहान-पथ ।
✍सुधा राठौर
84.
सर्द आहट
सिहरे तन मन
हँसा सूरज ।
✍हेमलता मिश्र
85.
विवाह स्थल
तलाकशुदा चाची
हल्दी ले खड़ी ।
✍अभिषेक जैन
86.
बुनता नभ
बादलों के कंबल
सर्द मौसम ।
✍ज्योतिर्मयी पंत
87.
प्रभु के बंदे
प्रभु के नाम पे क्यों
करते दंगे ?
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"
88.
धूल की गर्द
प्रकृति का विनाश
चेहरे जर्द ।
✍सुशील शर्मा
89.
वृद्ध आश्रम
वृद्धा के सिरहाने
बेटे की फोटो ।
✍अभिषेक जैन
90.
बर्फीले तीर
निर्धन की झोपड़ी
सहती पीर ।
✍सुधा राठौर
91.
नारी ह्रदय
पल्लवित पंकज
शुभ्र मलय ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
92.
चाँद बे-आब
रजनी की आँखों में
धुंधले ख़्वाब ।
✍सुधा राठौर
93.
निशा सुंदरी
ओढ़ काली चादर
खोजती चाँद ।
✍रति चौबे
94.
जल दर्पण
प्रतिबिंब देखूंगी
अंतरमन ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
95.
कुटिया कच्ची
थरथराती बच्ची
कहाँ रजाई ।
✍डाॅ. संजीव नाईक
96.
बहुत रोई
निज बच्चों खातिर
भूखी चिड़िया ।
✍डॉ. संतोष चौधरी
97.
शोणित दान
जीव रक्षा संकल्प
कर्म महान ।
✍स्नेहलता "स्नेह"
98.
सयानी बेटी
वैवाहिक चिंतन
खुशियाँ देती ।
✍तोषण कुमार चुरेन्द्र
99.
लाड़ न प्यार
पड़े आया की मार
बच्चा लाचार ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
100.
कण्टक पथ
राही चला अकेला
खिलाने फूल ।
✍रामेश्वर बंग
101.
ताड़ न बन
वक्त झोंके से लड़े
तृण का मूल ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
102.
103.
सर्दी की भोर
अलसाया सूरज
धुंध की ओट ।
✍ज्योतिर्मयी पंत
104.
साँझ की बेला
सूरज अलबेला
सिंदूरी आभा।
✍शगुफ्ता यास्मीन काज़ी
105.
चूल्हा जलाओ
भूखे सोये है बच्चे
रात बाकी है ।
✍देवेन्द्र नारायण दास
106.
विकास पथ
नदी बनी मैदान
कालोनी कटी ।
✍सुशील शर्मा
107.
खिला चेहरा
ज्यों सुनहरी धूप
बेटी का रूप ।
✍मधु गुप्ता
108.
बेटे की चाह
अफसोस खुद से
मिलती आह ।
✍तोषण कुमार चुरेन्द्र
109.
प्रयास पथ
देता है सफलता
चल सतत ।
✍सुधा राठौर
110.
विकास पथ
नदी बनी मैदान
कालोनी कटी ।
✍सुशील शर्मा
111.
खिला चेहरा
ज्यों सुनहरी धूप
बेटी का रूप ।
✍मधु गुप्ता
112.
बेटे की चाह
अफसोस खुद से
मिलती आह ।
✍तोषण कुमार चुरेन्द्र
113.
पेट की आग
भले कैसे बुझेगी
दमकल से ।
✍अभय सिंह सोलंकी "असि"
114.
चन्दु के पापा
लेने गये खिलौना
तारो के घर ।
✍विष्णु प्रिय पाठक।
115.
नारी सम्मान
जगत का उत्थान
मर्यादा जन्म ।
✍डॉ. राजीव पाण्डेय
116.
चिर यौवना
मधुमासी स्मृतियाँ
सजल नैना ।
✍पुष्पा सिंघी
117.
काँटो के पथ
खिले कर्म के फूल
झरे खुशबू ।
✍रामेश्वर बंग
118.
गाल पे आँसू
पेड़ से जुदा एक
हरी टहनी ।
✍विष्णु प्रिय पाठक।
119.
जली लकड़ी
गिला सा मन लिए
धुआँ-धुआँ सा..
✍डाॅ. अनिता रानी
120.
फटी रजाई
छेदों भरा कम्बल
ठंड बैरन ।
✍डॉ. रंजना वर्मा
121.
मौन था बाँस
देह मिली बाँसुरी
सुने समाज ।
✍डाॅ. अनिता रानी
122.
बहती नदी
जल भरी अंजुरी
प्यास बुझाई ।
✍अविनाश बागड़े
123.
भाव अलाव
बदलता जीवन
नव विचार ।
✍रामेश्वर बंग
124.
जगत कुआँ
जीवन छोटी डोर
रीती गागर ।
✍अंशुविनोद गुप्ता
125.
मन के नभ
अंतर्मन के शून्य
दिव्य आलोक ।
✍रामेश्वर बंग
126.
श्रम का स्वेद
माथे पर झलके
ओस मानिंद ।
✍सुशील शर्मा
127.
पकती रोटी
फैलती खूशबू से,
लगती भूख ।
✍पूनम मिश्रा
128.
दादा की साँस
बारह पे काँपती
घड़ी की सुई ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
129.
सेवानिवृत्त
साँझ के ढलते ही
लौटा सूरज ।
✍सुधा राठौर
130.
झरते पात
नई सम्भावनाएं
देखते पेड़ ।
✍अविनाश बागड़े
131.
सूरज चला
लड़ा अंधकार से
लाया सवेरा ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
132.
नाप रही है
नीलाकाश का छोर
नन्हीं चिड़िया ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
133.
मनभावन
पल पल दिन का
हर तिनका ।
✍अविनाश बागड़े
134.
मन नयन
करें आत्म दर्शन
ईश स्मरण ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
135.
वक्त के साथ
अक्सर मिट जाते
घाव गहरे ।
✍डॉ. मीता अग्रवाल
136.
प्रसव पीड़ा
जग में आता शिशु
जन्म लेती माँ ।
✍अविनाश बागड़े
137.
पुत्र रतन
बिन माँ का जीवन
बिच्छु सा दंश ।
✍सूर्य करण सोनी
138.
सूखता कुआं
अत्यधिक दोहन
टूटा दर्पण ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
139.
पंछी के गान
सुनते नहीं कान
कोठी में धान ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
140.
ऋतु शिशिर
पाखी गुनगुनाए
प्राची के तीर ।
✍सुधा राठौर
141.
रवि सफर
सिकुड़ रहे साये
झाँकता चाँद ।
✍मंजु शर्मा
142.
बूँदें ओस की
लागे जोगी समान
तप में लीन ।
✍भुपेन्द्र कौर
143.
छोटा सा सच
पल भर में काटे
झूठ के पर ।
✍रामेश्वर बंग
144.
शीत का गान
बुझी हुई अँगीठी
रोता किसान ।
✍सुधा राठौर
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