हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

हाइकु मञ्जूषा (नवम्बर माह के चयनित हाइकु)

हाइकु मञ्जूषा

नवम्बर - 2017 के चयनित हाइकु

{श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु संचयन}

संपादक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


( "हाइकु मञ्जूषा", "हाइकु - ताँका प्रवाह", "हाइकु मंच छत्तीसगढ़" एवं "हाइकु की सुगंध" समूह से साभार )

01.
बुने रश्मियाँ
सूर्य लला के लिये
पीताभ वस्त्र ।

✍सुधा राठौर

02.
भोर झंकृत
प्रकृति अलंकृत
झरे अमृत ।
     
✍पूर्णिमा सरोज

03.
गाँव की नाक
लोभ ने काट दिया
आम का बाग ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

04.
गजब नूर
सुबह की मांग में
सजा सिंदूर ।

✍सुधा राठौर

05.
नहीं परायी
आंगन की तुलसी
सदा हूँ  साक्षी ।।

✍उपेन्द्र प्रसाद मेहेर

06.
विष्णु की प्रिया
शालिग्राम से ब्याही
तुलसी वृंदा ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

07.
शाल के वृक्ष
चिडियों की चहक
गूंजते वन ।

✍क्रान्ति

08.
जेठ की परी
तपती दोपहरी
दुःखी बेचारी ।

✍वासुदेव साव

09.
शहीद पिया
एकादशी त्यौहार
बिलखे दिया ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

10.
प्रेम का रस
सुमधुर सुखद
सुधा सरस ।

✍सविता बरई

11.
आश्रम चार
मनु हों शत आयु
शुद्ध आचार ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

12.
कार्तिक मास
बढ़े शीत  आभास
तुलसी  खास ।

✍प्रबोध मिश्र 'हितैषी'

13.
कपास पुष्प
फैल रहे नभ में
शरद मेघ ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

14.
हवा है मौन
पत्तों की फुनगी पे
बैठा ये कौन ।

✍सुधा राठौर

15.
प्रतीक्षारत
बुढ़ाया बरगद
सूनी चौपाल

✍शशि त्यागी

16.
तुलसी दल
हरे शरीर व्याधि
अमृत तुल्य ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

17.
पूस की रात
खिसकी खपरैल
फूस न पास ।

✍मनीष त्यागी

18.
लिख रही हैं
सूरज की किरणें
दिन की चिट्ठी ।

✍सुधा राठौर

19.
बजा न ढोल
सोच समझ कर
प्रेम से बोल ।

✍परमेश्वर अंचल

20.
देश की मिट्टी
जैसे सौंधी महकी
अम्माँ की लिट्टी ।

✍सुधा राठौर

21.
जगमगाता
अँधेरे उजालों का
बेनाम रिश्ता

✍मीनाक्षी भटनागर

22.
धरा को ताके
साँझ की चुनरी से
सूरज झाँके ।

✍ऋतुराज दवे

23.
धूप में छाया
खुशियों का खजाना
माता का साया ।

✍सविता बरई

24.
उठी ऊंगली
फितरत हमारी
यह बीमारी ।

✍अविनाश बागड़े

25.
दीवार पार
भाई का परिवार
इधर हम ।

✍डॉ. रंजना वर्मा

26.
ईमान भरा
ऑफिस में खो गया
बॉस अकेला ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

27.
नन्हें-से तारे
चाँदनी की गोद में
किलकें सारे

✍सुधा राठौर

28.
थोथी निकली
स्वच्छता की मुहिम
मन की गली ।

✍अभिषेक जैन

29.
निकल भागी
पत्तों से निकल के
पीपल छाँव ।

✍सुधा राठौर

30.
पूर्वी ललाभ
प्रात प्रदीप्त हुई
आशा महकी ।

✍राजेश पाण्डेय

31.
तितली उड़ी
फूल-फूल पे बैठी
बिखरी ख़ुशी ।

✍अविनाश बागड़े

32.
रजनी में भी
रातरानी की खुश्बू
सोने न देती ।

✍निर्मला हाण्डे

33.
सिहरन सी
ओढ़ा है माँ का शाल
एक सुकून ।

✍रति चौबे

34.
हर्ष -विषाद
अनुभूति के द्वार
मन आधार ।

✍सुधा राठौर

35 .
वक्त के जाल
उम्र काँटे में फंसी
जैसे मछली ।

✍ऋतुराज दवे

36.
जलता चूल्हा
गगनचुंबी धुआं
भूखा टाबर ।

✍भुपिंदर कौर

37.
आग जो लगी
पता नही क्या हुआ
छा गया धुँआ ।

✍जाविद अली

38.
दो जून रोटी
छाई ख़ुशी अनूठी
निर्धन कोठी ।

✍नीलम शुक्ला

39.
बेटी व ख़ुशी
नाज़ो से है मिलती
सदा फलती ।

✍शुचिता राठी

40.
तितली हँसी
फूलों के अधरों पे
रख दी खुशी ।

✍सुधा राठौर

41.
अजान शुरू
मंदिर की घंटियां
बजाते गुरु ।

✍सुशील शर्मा

42.
उजली रात
चाँद मुस्कुराता है
बुलाता पास ।

✍जगत नरेश

43.
देखे चेहरे
घाव अति गहरे
कब थे हँसे ?

विनय कुमार अवस्थी

44.
संस्कृति साख
चल अमल कर
कर साकार ।

✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"

45.
नाव की धारा
है दिशा विपरित
यात्रा मंगल ।

✍सुमिधा सिदार

46.
आज की बेला
आदमी है अकेला
स्वार्थ का खेला ।

✍धनीराम नंद

47.
क्षिति जननी
क्षितिज है जनक
मित्र दरख्त ।

✍सविता बरई

48.
रात जागती
करवट बदलें
नैन उनींदे ।

✍डाॅ. रंजना वर्मा

49.
जगत हुआ
ऊर्जा से भरपूर
सुहानी भोर ।
 
✍पूर्णिमा सरोज

50.
झरता रहे
मुख से मधु मीठा
मन किलके ।

✍रीमा दीवान चड्ढा

51.
मेरा संसार
संयुक्त परिवार
नेक विचार  ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

52.
दिल्ली में घर
कुंभीपाक की पीड़ा
भोगते नर ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

53.
सुंदर फूल
जीवन की बगिया
झरे खुशबू ।

✍रामेश्वर बंग

54.
सुलग रही
प्रदूषण की बीड़ी
धुआँ विषाक्त ।

✍सुधा राठौर

55.
मन्दिर न जा
खुद के 'भीतर' जा
तू 'भी तर' जा ।

✍राकेश गुप्ता

56.
जुल्फों की घटा
सावन याद आया
महकी फिज़ा ।

✍संतोष जी

57.
रश्मि चिड़िया
पेड़ की फुनगी पे
करे बसेरा ।

✍रंजना वर्मा

58.
भूखा बालक
माँ गई है करने
रेसिपी क्लास ।

✍अभिषेक जैन

59.
शब्द की चोट
रिश्तों की गरदन
देती है घोंट

✍सूर्य करण सोनी

60.
नवल ध्वज
प्रात पर लेकर
हम सहज ।

✍राजेश पाण्डेय

61.
पात चहके
उष्मा रवि पा खग
तृण चुनते ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

62.
सूर्य वंदन
नव्या नवेली ज्योति
धरा शोभित ।

✍सविता बरई

63.
सफर घड़ी
जीवन संघर्ष है
मेला की बेला ।

✍तेरस कैवर्त्य "आँसू"

64.
हवा बौराई
फिरती पगलाई
कहाँ चुनरी ।

✍सुधा राठौर

65.
कुरेद दिये
संतोष की चमड़ी
ईर्ष्या के नख ।

✍अभिषेक जैन

66.
कटारी नैन
लहराती अलकें
डसती चैन ।

✍किरण मिश्रा

66.
तिरछी  नोक
झालरदार  पत्ते
पेड़ अशोक  ।

✍बलजीत  सिंह

67.
वायु मलिन
फ़ेफ़ड़े गमगीन
व्याधि नवीन ।

✍संजीव नाईक

68.
भक्ति में खोना
ज्यों पारस का छूना
हुई मैं सोना ।

✍शुचिता राठी

69.
सुलझे गाँठ
बन जा मनमीत
दुनिया जीत ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

70.
मन के कच्चे
जब तक थे बच्चे
हम थे सच्चे ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

71.
मासूम बच्चे
खो गया बचपन
बोझों से लदे ।

✍अभिषेक जैन

72.
ज़िंदा है अभी
मेरे-तेरे भीतर
नन्हा सा बच्चा ।

✍सुधा राठौर

73.
अश्रु के मोल
दर्द की अनुभूति
यही भूगोल ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

74.
चाचा के ख़्वाब
टुकड़े-टुकड़े में
पीला गुलाब ।

✍विष्णु प्रिय पाठक।

75.
मोबाइल  से
खो गया बचपन
सूना आँगन  ।

✍अनिता मंदिलवार "सपना"

76.
थपकी देती
हथेलियाँ सख्त क्यों
पिता की गोद ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

77.
नोंच के फेंकी
बाल दिवस को ही
कोख से कली ।

✍अंशुविनोद गुप्ता

78.
लालिमा कहे
सूर्योदय का भान
लगाओ ध्यान ।

✍पूर्णिमा सरोज

79.
अचल मेरु
एकता में पत्थर
खड़े अटूट ।

✍सुशील शर्मा

80.
मन की धरा
पानी बदले रंग
वक्त के संग ।

✍रामेश्वर बंग

81.
कुड़े में रोटी
गरीब का निवाला
भूख की मार ।

✍संजय कुमार

82.
हर्षित मन
पुलकित बदन
ख्वाब सदन ।

✍अविनाश बागड़े

83.
निःस्तब्ध वृक्ष
निर्निमेष निहारे
विहान-पथ ।

✍सुधा राठौर

84.
सर्द आहट
सिहरे तन मन
हँसा सूरज ।

✍हेमलता मिश्र

85.
विवाह स्थल
तलाकशुदा चाची
हल्दी ले खड़ी ।

✍अभिषेक जैन

86.
बुनता नभ
बादलों के कंबल
सर्द मौसम ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

87.
प्रभु के बंदे
प्रभु के नाम पे क्यों
करते दंगे ?

✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"

88.
धूल की गर्द
प्रकृति का विनाश
चेहरे जर्द ।

✍सुशील शर्मा

89.
वृद्ध आश्रम
वृद्धा के सिरहाने
बेटे की फोटो ।

✍अभिषेक जैन

90.
बर्फीले तीर
निर्धन की झोपड़ी
सहती पीर ।
       
✍सुधा राठौर

91.
नारी ह्रदय
पल्लवित पंकज
शुभ्र मलय ।

✍डाॅ. संतोष चौधरी

92.
चाँद बे-आब
रजनी की आँखों में
धुंधले ख़्वाब ।

✍सुधा राठौर

93.
निशा सुंदरी
ओढ़ काली चादर
खोजती चाँद ।

✍रति चौबे

94.
जल दर्पण
प्रतिबिंब देखूंगी
अंतरमन ।

✍स्नेहलता 'स्नेह'

95.
कुटिया कच्ची
थरथराती बच्ची
कहाँ रजाई ।

✍डाॅ. संजीव नाईक

96.
बहुत रोई
निज बच्चों खातिर
भूखी चिड़िया ।

✍डॉ. संतोष चौधरी

97.
शोणित दान
जीव रक्षा संकल्प
कर्म महान ।

✍स्नेहलता "स्नेह"

98.
सयानी बेटी
वैवाहिक चिंतन
खुशियाँ देती ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

99.
लाड़ न प्यार
पड़े आया की मार
बच्चा लाचार ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

100.
कण्टक पथ
राही चला अकेला
खिलाने फूल ।

✍रामेश्वर बंग

101.
ताड़ न बन
वक्त झोंके से लड़े
तृण का मूल ।

✍डाॅ. संतोष चौधरी

102.

103.
सर्दी की भोर
अलसाया सूरज
धुंध की ओट ।

✍ज्योतिर्मयी पंत

104.
साँझ की बेला
सूरज अलबेला
सिंदूरी आभा।

✍शगुफ्ता यास्मीन काज़ी

105.
चूल्हा जलाओ
भूखे सोये है बच्चे
रात बाकी है ।

✍देवेन्द्र नारायण दास

106.
विकास पथ
नदी बनी मैदान
कालोनी कटी ।

✍सुशील शर्मा

107.
खिला चेहरा
ज्यों सुनहरी धूप
बेटी का रूप ।

✍मधु गुप्ता

108.
बेटे की चाह
अफसोस खुद से
मिलती आह ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

109.
प्रयास पथ
देता है सफलता
चल सतत ।

✍सुधा राठौर

110.
विकास पथ
नदी बनी मैदान
कालोनी कटी ।

✍सुशील शर्मा

111.
खिला चेहरा
ज्यों सुनहरी धूप
बेटी का रूप ।

✍मधु गुप्ता

112.
बेटे की चाह
अफसोस खुद से
मिलती आह ।

✍तोषण कुमार चुरेन्द्र

113.
पेट की आग
भले कैसे बुझेगी
दमकल से ।

✍अभय सिंह सोलंकी "असि"

114.
चन्दु के पापा
लेने गये खिलौना
तारो के घर ।

✍विष्णु प्रिय पाठक।

115.
नारी सम्मान
जगत का उत्थान
मर्यादा जन्म ।

✍डॉ. राजीव पाण्डेय

116.
चिर यौवना
मधुमासी स्मृतियाँ
सजल नैना ।

✍पुष्पा सिंघी

117.
काँटो के पथ
खिले कर्म के फूल
झरे खुशबू ।

✍रामेश्वर बंग

118.
गाल पे आँसू
पेड़ से  जुदा एक
हरी टहनी ।

✍विष्णु प्रिय पाठक।

119.
जली लकड़ी
गिला सा मन लिए
धुआँ-धुआँ सा..

✍डाॅ. अनिता रानी

120.
फटी रजाई
छेदों भरा कम्बल
ठंड बैरन ।

✍डॉ. रंजना वर्मा

121.
मौन था बाँस
देह मिली बाँसुरी
सुने समाज ।

✍डाॅ. अनिता रानी

122.
बहती नदी
जल भरी अंजुरी
प्यास बुझाई ।

✍अविनाश बागड़े

123.
भाव अलाव
बदलता जीवन
नव विचार ।

✍रामेश्वर बंग

124.
जगत कुआँ
जीवन छोटी डोर
रीती गागर ।

✍अंशुविनोद गुप्ता

125.
मन के नभ
अंतर्मन के शून्य
दिव्य आलोक ।

✍रामेश्वर बंग

126.
श्रम का स्वेद
माथे पर झलके
ओस मानिंद ।

✍सुशील शर्मा

127.
पकती रोटी
फैलती खूशबू से,
लगती भूख ।

✍पूनम मिश्रा

128.
दादा की साँस
बारह पे काँपती
घड़ी की सुई ।

✍विष्णु प्रिय पाठक

129.
सेवानिवृत्त
साँझ के ढलते ही
लौटा सूरज ।

✍सुधा राठौर

130.
झरते पात
नई सम्भावनाएं
देखते पेड़ ।

✍अविनाश बागड़े

131.
सूरज चला
लड़ा अंधकार से
लाया सवेरा ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

132.
नाप रही है
नीलाकाश का छोर
नन्हीं चिड़िया ।

✍डाॅ. संतोष चौधरी

133.
मनभावन
पल पल दिन का
हर तिनका ।

✍अविनाश बागड़े

134.
मन नयन
करें आत्म दर्शन
ईश स्मरण ।

✍डाॅ. संतोष चौधरी

135.
वक्त के साथ
अक्सर मिट जाते
घाव गहरे ।

✍डॉ. मीता अग्रवाल

136.
प्रसव पीड़ा
जग में आता शिशु
जन्म लेती माँ ।

✍अविनाश बागड़े

137.
पुत्र रतन
बिन माँ का जीवन
बिच्छु सा दंश ।

✍सूर्य करण सोनी

138.
सूखता कुआं
अत्यधिक दोहन
टूटा दर्पण ।

✍गंगा पाण्डेय "भावुक"

139.
पंछी के गान
सुनते नहीं कान
कोठी में धान ।

✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

140.
ऋतु शिशिर
पाखी गुनगुनाए
प्राची के तीर ।

✍सुधा राठौर

141.
रवि सफर
सिकुड़ रहे साये    
झाँकता चाँद ।

✍मंजु शर्मा


142.
बूँदें ओस की
लागे जोगी समान
तप में लीन ।

✍भुपेन्द्र कौर

143.
छोटा सा सच
पल भर में काटे
झूठ के पर ।

✍रामेश्वर बंग

144.
शीत का गान
बुझी हुई अँगीठी
रोता किसान ।

✍सुधा राठौर

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