हाइकु कवयित्री
उषा चतुर्वेदी
हाइकु
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गुलाबी सर्दी
सूरज सुहावन
हिया मुदित ।
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रवि उदय
चहुँ ओर लालिमा
ताप सुहाना ।
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मग निहारे
कजरारे नयन
प्रेम दीवानी ।
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यमुना कूल
कदम्ब तरुवर
खिले प्रसून ।
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मही हरित
फसल लहरायी
कृषक खुश ।
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नभ गरजा
कृषक अकुलाया
तृप्त वसुधा ।
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गीली लकड़ी
सुलगी धुँआ देती
रुलाती भी है ।
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चमका रवि
हँसे सूरजमुखी
हुलसा माली ।
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रवि रिसाय
तपती वसुधा
राही विकल ।
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चंचल मन
चिन्तातुर रहता
हिया बेचैन ।
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उषा चतुर्वेदी