हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

डाॅ. कुँअर बेचैन जी के प्रसिद्ध हाइकु

~ डॉ. कुँअर बेचैन जी के प्रसिद्ध हाइकु ~

हाइकु 

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जल चढ़ाया

तो सूर्य ने लौटाए

घने बादल । 


हुई अधीर 

छुआ जब मेघ ने

नदी का नीर ।


तटों के पास

नौकाएं तो हैं, किन्तु

पाँव कहाँ हैं ? 


ज़मीन पर

बच्चों ने लिखा 'घर'

रहे बेघर । 


रहता मौन

तो ऐ झरने तुझे 

देखता कौन ? 


चिड़िया उड़ी

किन्तु मैं पिंजरे में

वहीं का वहीं ! 


तितली उड़ी

जा बैठी पर्स पर

फूल उदास ।


ओ रे कैक्टस 

बहुत चुभ लिया

अब तो बस ।


आपका नाम

फिर उसके बाद

पूर्ण विराम ! 


मेरी किताबें

भव से पार करें

वो नन्ही नावें ।


लालसाएं हैं

जब तक जीने की

साँस रहेगी ।


□  कुँअर बेचैन


कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच 

एक बड़ी दुःखद घटना

 नीरज जी के बाद मंच पर सराहे जाने वाले 

सर्वाधिक प्रिय कवि, प्रख्यात साहित्य विभूति 

डॉ. कुँअर बेचैन जी नहीं रहे । 

हाइकु मञ्जूषा परिवार की ओर से उन्हें 

अश्रुपूरित 

भावभीनी श्रद्धांजलि ....

 श्रद्धा के फूल 

हे दिवंगत कवि

करें कबूल ।

💐💐💐🙏🙏

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

चित्र आधारित कतौता सृजन प्रतियोगिता (अप्रैल-2021)

 ~ चित्र आधारित कतौता सृजन प्रतियोगिता ~

हाइकु ताँका प्रवाह 

माह - अप्रैल 2021, क्र. 12 

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प्रविष्टि के कतौता
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1.
इनके जैसे
बन जाओ जग में
ना करें कोई  तंग ।

पत्थर पृष्ठ 
बन गए  ऐसे ही
नहीं हम में जान ।

कीमत मिले
घर जाऊँ मैं फिर
मिटे भूख हमारी ।

कविता कौशिक

2.
झेल रही है
अस्तित्व का संकट
ये संस्कृति विकट ।

अंतिम सांसें
ले रही लोक कला
बंदा सोच में पड़ा ।

भवरें भरी
जीवन पतवार
नहीं मानुंगा हार ।
                  
नीलम शुक्ला

3.
हाथों  का  खेल 
हुआ  जीविका  मेल 
यही  रेलमपेल ।

भाग्य का  लेखा 
रहता  अनदेखा 
विधान  चक्र रेखा ।

भटकता  मैं 
कठपुतली  हुआ 
नहीं  रैन  बसेरा ।

निर्मला पाण्डेय

4.
नाच न सत्य
कठपुतलियों की 
नचैया ही है सत्य ।

जादूगर ही
सत्य, झूठा मगर
उसकी जादूगरी ।

ईश्वर सत्य
पर सत्य नही न 
अजब मायापुरी ।

देवयानी बनर्जी

5.
काठ पुतली
डोर से बँध कर
इशारो पर नाचे ।

कठपुतली
सूझबूझ न जाने
कहे मन की बात ।

किसके हाथ
बंधी तार की डोर
आज तक न जानी ।

रेशम मदान

6.
दीवारें हंसीं
मूक पुतली देखें
रोजी के रंग फीके ।

नैनन बोली
डोर में बँध जाऊं
तेरी रोटी कमाऊँ ।

बेटी सी लगो
रिश्तों की डोर बंधी
वो दूजे घर डोले ।

शर्मिला चौहान

7.
तू क्यों न जागे
इशारों पे क्यों भागे
अब  तोड़  ये  धागे ।

भाग्य है बली
दुनिया   रंगमंच
हम कठपुतली ।

भूल जाता है
हर  खेलने  वाला
वो भी एक खिलौना ।

राकेश गुप्ता

8.
रंग बिरंगी
ये कठपुतलियाँ
रोजी रोटी साधन ।

मानव सदा
बना कठपुतली
जगत रंगमंच ।

झूठ का दौर
नाचे कठपुतली
नचाये कोई ओर ।

मधु सिंघी

9.
सुनो दास्तान
होती जुंबा हमारी 
कह देते मन की ।
            
हम माध्यम 
लोक-कलाओं हेतु
योजना प्रसार का ।
              
दर्द जानता 
तुझ बेजुबान का
सवाल पेट ‌का है ।

रति चौबे

10.
लोककलाएं
खामोश आज क्यों है
जीवन दर्शन है ।

धर पुतली
सूत्रधार सोचता
उदर कैसे भरूँ ।

सूत्रधार हो
बाँध  धागों मे मुझे
सजीव बना डालो ।

रूबी दास

11.

तमाशे बंद,
बिखरती खुशियाँ 
काठ कठपुतली ।

कोरोना डर
दूर हुई संस्कृति
मौन कठपुतली ।

परेशान हूँ
खामोश है जिंदगी
कठपुतलियां भी ।

पूनम मिश्रा

12.

रूह बेजान
बुत बाँटे मुस्कान
खींचे डोर सुजान ।

मैं  काष्ठ जिस्म
तू माटी का मानुष
नाच रहे हैं दोनों ।

अधीनस्थ मैं
चैतन्य ये दुनिया
पर पीर क्या जाने !

विद्या चौहान

13.
काठ की गुड्डी
अधमरी सी बैठी
सूत्रधार बेजान ।

राणा उदास
उंगली पे पुतली
जिंदगी है वीरान ।

विपन्न स्थिति
हताशा की इंतहा
कला भी हुई तन्हा ।
 
निर्मला हांडे

14.
स्त्री की नियति
जड़ा मुँह पे ताला
कठपुतली बनी ।

स्वाभिमानी हूँ
इशारों पे क्यों नाचूँ
क्या मैं कठपुतली ?

बाज़ारी वस्तु
इसीलिए सजाया
कठपुतली हूँ ना ।

सुधा राठौर

15.
धागों से बंधी 
तकदीर हमारी
है दुनिया नचाती  ।

हे सूत्रधार
तुम हमे नचाते
पेट नचाता तुम्हें ।

डोरी में बंधी
रंगीन कतरनें
किस्से कई सुनाए ।

शीला तापड़िया

16.
तू मेरी कृति
मैं तेरा शिल्पकार
हुए दोनों लाचार ।

बीते वो दिन
जब जमाते रंग
अब सब बेरंग ।

बिन हाथ मैं
डोर बिना हुई तू
दोनों हुए लाचार ।

सुषमा अग्रवाल

17.
कठपुतली
साज़न की जुबानी
नाचे बोल कहानी ।

डोरी वो धरे
नाच ऐसे नचाये
सज़ा कला कहाये ।

मर्जी ना चले
जैसा भी हो पात्र
निभाए सारे गात्र ।

अमिता शाह "अमी"

18.
कठपुतली
लिये हाथ सोचता
डोर किसके पास ।

मानव स्वयं
एक कठपुतली
डोर ईश्वर हाथ ।

कठपुतली
भरती नये स्वांग
जैसा चाहे नियंता ।

गंगा प्रसाद पांडेय 'भावुक'

19.
कठपुतली
विलुप्त होती कला
जीया में जलजला ।

थामेगा कौन
तेरी मेरी ये डोर
मुखरित है मौन ।

बिना नर्तन
हो गई है दुबली
हर कठपुतली ।

अल्पा जीतेश तन्ना 

20.

कठपुतली
जीवन का निर्वाह
लाचार है मनुज ।

ऊपर वाला
रखे अपने हाथ
डोर, नचाये, हमें ।

हम सब ही
प्रभु के हाथ की ही
कठपुतली हुए ।

मीरा जोगलेकर

21.
नियति तेरी
मेरे इशारों पर 
नाच कठपुतली ।

सौंप दे डोर
गिरने नहीं देंगी
कुशल उंगलियाँ ।

कठपुतली
दुनिया एक मंच 
नृत्य तेरा प्रारब्ध ।

रमा प्रवीर वर्मा
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आपके प्रतिभाव

विश्व का प्रथम कतौता संग्रह
विश्व की प्रथम चित्राधारित कतौता सृजन प्रतियोगिता का श्रेय प्रदीप कुमार दाश जी आपके नाम है। यह आनंददायी एवं अविस्मरणीय है।
     अविनाशजी की विधागत निष्ठा, पटल को सतत गतिशील बनाये रखने का उपक्रम एवं रचनाधर्मियों को स्नेह सूत्र में पिरोए रखने की कला बेजोड़ है।
    प्रसन्नता का विषय यह है कि समस्त कतौताकारों ने सहभागिता तो की ही, हर निर्णय का स्वागत खुले दिल से किया । ऐसा अन्यत्र कम ही नज़र आता है।
      "हाइकु ताँका प्रवाह "
निरंतर सरस प्रवाहों से सृजन को नर्म कोमल मर्मरी संवेदन सौंप रहा है।
     लाजवाब तस्वीर
इस बार अनिवार्यतः उल्लेख करना चाहूंगी कि प्रत्येक हस्ताक्षर ने चित्र का मर्म जाना तथा अनुरूप कतौता पेश किया।
कठपुतलियों का भौतिक कलेवर एवं डोरियां
राणा की ऊंगलियों का करतब अंततः ईश्वर और मानव संबंधों को व्यंजित कर गया।
   समस्त विजेताओं का हृदय से  अभिनंदन/आभार ।

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□  इंदिरा किसलय 

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