हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शनिवार, 27 नवंबर 2021

हाइकु साहित्य में छत्तीसगढ़ प्रदेश स्तरीय महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य

हाइकु साहित्य में छत्तीसगढ़ प्रदेश स्तरीय महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य


1. मइनसे के पीरा-2000 (छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संग्रह) - प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

2. हाइकु मंजूषा (छत्तीसगढ़ी हाइकु विशेषांक-2007) संपादक- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

3. बसना के हाइकुकार-2015 (हाइकु संकलन) संपादक- रमेश कुमार सोनी

4. छत्तीसगढ़ की हाइकु साधना - 2018 (हाइकु संकलन व इतिहास छत्तीसगढ़) संपादक- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

5. मेघदूत - 2019 (छत्तीसगढ़ी हाइकु में अनूदित हाइकु कृति) - डाॅ. रामनारायण पटेल 

6. हरियर मड़वा - 2019 (छत्तीसगढ़ी का प्रथम तांका संग्रह) - रमेश कुमार सोनी

7. रायगढ़ की हाइकु साधना - 2021(हाइकु संकलन) संपादक- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


28 नवम्बर, छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस की अशेष शुभकामनाएं व हार्दिक बधाइयाँ ...


   जय छत्तीसगढ़ी ! छत्तीसगढ़िया ! जय छत्तीसगढ़  !


सबले मीठ

छत्तीसगढ़ी भाखा 

लागथे निक ।


~ प्रदीप कुमार दाश दीपक

सोमवार, 22 नवंबर 2021

चित्र आधारित हाइकु सृजन प्रतियोगिता, नवम्बर-2021

चित्र आधारित हाइकु सृजन प्रतियोगिता

संचालक मंडल

हाइकु से हाइबुन प्रवाह 

चयनित प्रतिभागी

(माह - नवम्बर, क्र. 19)


प्रविष्टि के 21 हाइकु


1.

प्यारा जलज

हंसिका सैर करे 

शोभा बढ़ाए ।


~ बन्दना गुप्ता 


2.

जल क्रीड़ा में

मदमस्त खग है

देखे नयन ।


~ जाविद अली


3.

चरित्र उच्च

स्थान का न महत्त्व

माता के प्रिय ।


~ राजश्री राठी 


4.

मन बत्तख

हंसती हरियाली

खिलें कमल ।


~ कविता कौशिक 


5.

मन है शान्त

मन चाहा एकान्त

रंगीन यादें ।


~ निर्मला पांडेय


6.

देखे कँवल

हंसनी नैन जल

बहते पल ।


~ अमिता शाह "अमी"


7.

मोहक दृश्य

पद्म बतख देखूँ

भ्रमित दृग ।


~ मीरा जोगलेकर 


8.

जलज खिले

निहारे जल सृष्टि

विरही हंस ।


~ शर्मिला चौहान 


9.

निश्चिंत सा है

पद्म में विचरता 

हरित साक्ष्य ।


~ निर्मला सुरेन्द्रन


10.

सलिल सुधा

सरसे सरोवर

हंस सरोज ।


~ शीला तापड़िया 


11.

गहराइयाँ

डूबा नही पाएंगी

आता तैरना ।


~ ए. ए. लूका


12.

पद्म कुमुदी 

हंसवाहिनी शारदे 

जल जगती ।


~ कल्पना कामदार 


13.

पंक में पले

कलुषता से परे

पुनीत पद्म ।


~ विद्या चौहान 


14.

मन की झील

हंस कमल सम

पवित्र हुई ।


~ शीला भार्गव 


15.

हंस ले मोती

पंकज में न पंक

पानी हटा के ।


~ देवयानी बनर्जी 


16.

स्थिर जल में

अचल राजहंस

खिलते पद्म ।


~ रेशम मदान 


17.

पानी बीच हैं

कमल औ' बदक

फिर भी सूखे ।


~ संतोष बुद्धराजा 


18.

हंस, कमल

ज्ञान सतह पर

विनय, शील ।


~ अल्पा जीतेश तन्ना 


19.

ताल में हंस

नीर क्षीर विभेद

तैरते कंज ।


~ गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"


20.

खडी कलियां 

पंकज  मुस्कुराते

बतख देखे ।


~ पूनम मिश्रा "पूर्णिमा"


21.

पंक के साथ

हंस कमल वास

फिर भी पाक ।


~ रूबी दास 

☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

हिन्दी हाइकुओं में "किरेजी" प्रयोग

 

हिन्दी हाइकु में किरेजी / 切れ字 प्रयोग

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       शाब्दिक रूप से "कटिंग वर्ड" कुछ विशेष प्रकार के जापानी पारंपरिक कविता में प्रयुक्त शब्दों की एक विशेष श्रेणी के लिए शब्द है। इसे पारंपरिक हाइकु के साथ-साथशास्त्रीय रेंगा और इसके व्युत्पन्न रेन्कू ( हाइकाई नो रेंगा) दोनों के होक्कु या उद्घाटन कवितामें एक आवश्यकता के रूप में माना जाता है। अंग्रेजी में किरेजी का कोई सटीक समकक्ष नहीं है, और इसके कार्य को परिभाषित करना मुश्किल हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि यह पद्य को संरचनात्मक समर्थन प्रदान करता है। जब एक कविता के अंत में रखा जाता है, तो यह एक सम्मानजनक अंत प्रदान करता है, कविता को समापन की उच्च भावना के साथ समाप्त करता है। एक कविता के बीच में प्रयुक्त, यह संक्षेप में विचार की धारा को काट देता है, यह दर्शाता है कि कविता में दो विचार हैं जो एक दूसरे से आधे स्वतंत्र हैं। ऐसी स्थिति में, यह लयबद्ध और व्याकरणिक रूप से विराम का संकेत देता है, और इससे पहले के वाक्यांश को भावनात्मक स्वाद दे सकता है ।

         "किरेजि" cutting word हिन्दी में  'काटने वाला अक्षर' कह सकते हैं ...

   कुछ उदाहरण देखें-


नदी के तट

मिलने की उत्कण्ठा 

अह.. बेबस ।


~ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


बंद संवाद

तड़पते हृदय

अह.. आकुल ।


किले फतह

करतीं लड़कियाँ

वा.. बेमिसाल ।


~ शर्मिला चौहान


केशव राह

तकती रही गोपी

आये न हाय..


दिल का दर्द

अनदेखा  ही रहा

हाय.. बेचैनी ।


~ निर्मला पांडेय

     

अश्रु की धार

अह.. री तड़पन

नेत्र के द्वार ।


~ अमिता शाह 'अमी'


एक संवाद

बनते बिगड़ते

ओह.. मिजाज ।


पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


अशक्त देह

बिलबिलाती भूख

उफ.. गरीबी ।


~ अंजुलिका चावला 


राह निहारूँ

ओह तुम न आये 

मन बेचैन ।


~ शीला तापड़िया 


जुगनू जले

शाम की महफिल

वाव...क्या बात ।


~ अविनाश बागड़े


जुल्फें खुलती

गज चाल उसकी

वाह.. सादगी ।


~ पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


अन्न ही ब्रह्म

कचरे में भोजन

धिक् रे इंसान !


~ अंजुलिका चावला 


रात सुहानी

रातरानी खिलती

वाह.. महक ।


परियां आती

सपने है सजाती

अहा.. मुस्कान ।


~ पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


भूख का मारा

गरीबी ने जकड़ा

हाय बेचारा ।


~ रुबी दास


तन की पीड़ा

मन तक पहुंचे

हाय..क्या करें !


धूल का कण

आँख में लाए पानी

उफ..चुभन


~ अमिता शाह "अमी.."


उफ्फ ये इश्क

अंतस से उभरा

दर्द का लावा


~ अल्पा जीतेश तन्ना


मन  सहेजे

संवेदना के पल

अरे संभल ।


तन चंचल

निर्मल मन पटल

वाह शैशव ।


शक्ति अपार

चला पंख पसार

अहा यौवन ।


जर्जर काया

लगे व्यर्थ माया

आह बुढ़ापा ।


~ अंजुलिका चावला 


फिर लटका

कर्ज़दार किसान

हा!.. तक़दीर 


बच्चा अनाथ

तर्पण कर लौटा

ओह!... अभागा !


पूस की रात

हल्कू कुड़कुड़ाया

उफ़.. ये ठंड !


वासन्ती भोर

प्रकृति नटी हँसी

अहा!.. अहह!!


स्वार्थ पनपा

बढ़ते वृद्धाश्रम

धिक्... रे पूत ।


बुद्धि भ्रमित

चोट खाई,समझी

ओ!... ये बात है ।


~ सुधा राठौर


     यहाँ इन हाइकुओं में किरेजि शब्दों  के प्रयोग से भाव अधिक गहरे, दंशक या मारक हो गये हैं .....


     हिन्दी हाइकुओं में प्रयुक्त कुछ किरेजि शब्दों की सूची

ह..

हह..

अह..

अहह..

हाय..

ओ...

ओह..

आह..

अहा..

ओ.. हो..

धिक्..

वाह..

उफ..

छि..

थू..

अरे..

ओ.. रे..

काश..

     हाइकु में इन सभी शब्दों के प्रयोग, 'किरेजि' माने जाएंगे ।


*जापानी हाइकुओं में प्रयुक्त किरेजी की सूची*


か का : जोर; जब एक वाक्यांश के अंत में, यह एक प्रश्न को इंगित करता है ।


/ kana : जोर; आमतौर पर एक कविता के अंत में पाया जा सकता है, आश्चर्य दर्शाता है ।


- केरी : विस्मयादिबोधक मौखिक प्रत्यय, अतीत परिपूर्ण ।


/ - या -  : मौखिक प्रत्यय संभाव्यता दर्शाता है ।


- शि : विशेषण प्रत्यय; आमतौर पर एक खंड समाप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।


- त्सू : मौखिक प्रत्यय; पूर्ण वर्तमान ।


や फिर : पूर्ववर्ती शब्द या शब्दों पर जोर देती है। एक कविता को दो भागों में काटकर, इसका तात्पर्य एक समीकरण से है, जबकि पाठक को उनके अंतर्संबंध का पता लगाने के लिए आमंत्रित करना । 

'हाइकु' एक लघु काव्य विधा होने के कारण लंबी-लंबी पंक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है । यहाँ निश्चित 5-7-5 (17) अक्षरों में संपूर्ण भाव की  अभिव्यक्ति आवश्यक होती है । 'किरेजी' पंक्तियों को काटता है । भाव गुंफन हेतु हाइकु में 'किरेजी' महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इनके प्रयोग से रचनाकार अपने हाइकुओं में भावों की गहनता लाने हेतु पूर्ण सफल हो जाते हैं ।

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      -  प्रदीप कुमार दाश 'दीपक"

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

दीप और पतंग : हाइकु के प्रति समर्पित कवि की रचनाएँ

हाइकु के समर्पित व निष्ठावान कवि की रचनाएँ

                                                      - कमलेश भट्ट कमल



            विश्व की सबसे संक्षिप्त कलेवर तथा जापानी मूल की कविता हाइकु एक बेहद अनुशासनप्रिय और सहज काव्य विधा है। अकेले हिंदी भाषा में इस विधा में सृजन करने वाले रचनाकारों की संख्या एक हज़ार या उससे भी अधिक हो सकती है। इनमें से अधिकांश रचनाकार निजी स्तर पर हाइकु की साधना कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो निजी साधना के साथ-साथ हाइकु के लिए भी साधनारत हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' का भी है, जिनका सातवाँ हाइकु संग्रह 'दीप और पतंग' नाम से प्रकाशित हो रहा है। वर्ष 1989 से प्रारंभ हिंदी के प्रतिनिधि हाइकु संकलनों की श्रृंखला की तृतीय कड़ी 'हाइकु-2009' के रचनाकार  दीपक जी अपनी हाइकु रचना-यात्रा में दो दशकों से अधिक की दूरी तय कर चुके हैं। इस बीच उनके द्वारा संपादित सात अन्य हाइकु कृतियाँ भी प्रकाश में आ चुकी हैं। उनके द्वारा वर्ष 2006-07 में न केवल 'हाइकु मञ्जूषा'  नामक त्रैमासिक का  संपादन किया गया, वरन इसके कुल 7 अंकों का एक समवेत संकलन भी प्रकाशित किया गया। आगे चलकर इस पत्रिका को साप्ताहिक रूप दे दिया गया और इसके 25-7-2016 से 08-7-2017 की अवधि के 50 अंकों की 3565 हाइकु कविताओं को 'हाइकु मञ्जूषा' नाम से 456 पृष्ठों के एक वृहद ग्रंथ के रूप में वर्ष 2018 में संकलित/संपादित किया जा चुका है। ये सब कार्य हाइकु के प्रति प्रदीप जी के गहरे समर्पण को प्रमाणित करते हैं। इसी तरह उनके सातवें हाइकु संग्रह का प्रकाशन यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उनके अंदर हाइकु-सृजन की कितनी गहरी ललक है !  लेकिन हाइकु का विपुल लेखन ऐसे हर रचनाकार के समक्ष एक चुनौती भी प्रस्तुत करता आया है। क्योंकि बड़ी संख्या में उत्कृष्ट हाइकु लिख ले जाना बहुत-बहुत कठिन कार्य है। लेकिन कठिनाई भरी इस कड़ी चुनौती से छनकर प्रदीप जी के जो हाइकु परिदृश्य पर उभरते हैं,वे इस विशिष्ट काव्य विधा के विषय में उनकी गहरी समझ और उनके व्यापक सरोकारों को बहुत अच्छी तरह प्रकट भी करते हैं और प्रमाणित भी करते हैं।  

             छत्तीसगढ़ की एक छोटी सी जगह सांकरा से निकलकर एक दूसरी छोटी जगह रजपुरी में अध्यापन कार्य करते हुए भी  दीपक जी हाइकु सृजन और उसके संकलन तथा प्रचार-प्रसार में जिस तरह लगे हुए हैं वह अवश्य  ही रेखांकित किए जाने योग्य है। अभी-अभी उन्होंने अपने जीवन का 42वाँ बसंत देखा है और इस  कम आयु में ही उनके खाते में हाइकु की यदि इतनी किताबें जुड़ चुकी हैं तो आने वाले समय में उनके स्तर से कुछ अन्य बहुत महत्वपूर्ण हाइकु कृतियों, विशेष रूप से अनुवाद और संकलनों की अपेक्षा करना सर्वथा उचित होगा।

              प्रदीप कुमार दाश ' दीपक ' का प्रथम हाइकु संग्रह 'मइनसे के पीरा'(वर्ष 2000) छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संग्रह भी है। इसी वर्ष उनकी दूसरी हाइकु कृति ' हाइकु चतुष्क' में  हिंदी, उड़िया, छत्तीसगढ़ी एवं संबलपुरी भाषा में उनके हाइकु संग्रहीत हैं और उनका 'काशतण्डीर हस' शीर्षक से एक उड़िया हाइकु संग्रह भी है जो वर्ष 2019 में आया है। कहने का आशय यह है कि दीपक जी की गति केवल हिंदी भाषा में ही नहीं, उड़िया समेत छत्तीसगढ़ी और संबलपुरी भाषाओं में भी समान रूप से हैं। इतनी भाषाओं में उनकी गति और रचनाशीलता का विस्तार  प्रदीप जी के हाइकुकार व्यक्तित्व को अलग ही आयाम प्रदान करता है।

               प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' उन हाइकुकारों में से नहीं है जो केवल प्रकृति-चित्रण को ही हाइकु की साधना समझते हैं।उनकी हाइकु कविताओं में पर्यावरण है तो जीवन के विविध पक्ष भी हैं। समय और समाज का शायद ही कोई  ऐसा पक्ष होगा जिस पर उनके हाइकु न मिलें। नदियों-पर्वतों, ग्रहों-नक्षत्रों, पर्वों-त्योहारों, रिश्ते-नातों, राजनीतिक हलचलों और छल-छद्मों, पर्यावरण ,अध्यात्म,दर्शन, इतिहास,मिथक,कोरोना, महानायकों आदि कितने ही विषयों पर उनके हाइकु इस संग्रह में जुड़े हैं। किंतु विषय केंद्रित हाइकु कविताओं के साथ जब-तब एक मुश्किल यह पेश आती है कि वे अनुभूति के चरम क्षण की अभिव्यक्ति न होकर सामान्य क्षणों की अभिव्यक्ति होते हैं और जब ऐसी स्थिति होती है तो उनमें हाइकु की आत्मा को सुरक्षित रख पाना  कठिन हो जाता है।

              714 हाइकु कविताओं वाले इस नए संग्रह 'दीप और पतंग'  में सबसे अच्छे हाइकु वे बन पड़े हैं जिनमें उन्होंने तुकांतों का भी ध्यान रखा है। यद्यपि संस्कृत साहित्य की तरह हाइकु में भी तुकांतों की कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन जब हाइकु कविताओं में तुकांतों का सटीक निर्वाह होता है तो उनमें जैसे चार चाँद लग जाते हैं-


घर थे कच्चे

तब की बात और

मन थे सच्चे ।


अंधेरी रात

एक दीप बता दे

उसे औकात ।


थोड़ी सी राख

अंतिम सत्य यही

फिर भी साख ।


मन में भेद

कैसे करोगे रफू 

दिल के छेद ?


ईंट सोचती

मेरे बिना दीवार

कैसे टिकती ।


सूरज रोज

भोर की कविता में 

भरता ओज ।


मौन की भाषा

संवादों पर भारी

कलम हारी।



           समकालीन यथार्थ को अपनी  हाइकु कविताओं के माध्यम से  अभिव्यक्त करते हुए दीपक जी ने कुछ बहुत अच्छे हाइकु दिए हैं। यथार्थ को देखने की उनकी यह दृष्टि ऐसे रचनाकारों के लिए भी एक उदाहरण है, जिनकी  दृष्टि बहुत सीमित विषयों में ही बँध कर रह जाती है। मैं समझता हूँ हाइकु अंततः एक कविता है और कविता  की आत्मा उसकी संवेदना में बसती है। यदि कविता पाठक को संवेदित नहीं कर पाती है तो वह हाइकु या किसी और विधा में ही क्यों न हो, शब्दों का जोड़-तोड़ ही अधिक लगती है। दीपक जी ने अपनी इन हाइकु कविताओं से पाठकों को संवेदित करने का भरपूर प्रयास किया है-


रिश्ते व नाते 

बोनसाई हो गए

मौन जज़्बात ।


मातृ दिवस 

बूढ़ी माँ थक गई

देख नाटक ।


समय मौन

आखिर बता देता

किसका कौन।



दरख्त कटा

थका लकड़हारा

छाया ढूँढता।


जलता देश

बारी की अपेक्षा में

लाशों के ढेर।


माटी की आन

गलवान की घाटी

लहूलुहान।


             पर्यावरण संकट अखिल विश्व का संकट है। यह आज के साथ-साथ आने वाली सदियों के लिए भी बड़ी चुनौतीपूर्ण समस्या है। बावजूद इसके, आश्चर्य इस बात का है कि साहित्य की दुनिया में इस विषय को लेकर अपेक्षित हलचल कम दिखाई देती है। लेकिन यह संतोष का विषय है कि हिंदी की हाइकु कविता ने इस विषय का संज्ञान पर्याप्त गंभीरता से लिया है।  प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' ने अपने संग्रह में इस परिप्रेक्ष्य में कई महत्वपूर्ण हाइकु दिए हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं-


बड़ा सवाल

क्यों सूख गये कुएँ

खोया क्यों ताल ?


पेड़ हैं सुन्न 

दादुर की आवाज़ 

हुई क्यों गुम ?


आहत मन

काटे लकड़हारा

पेड़ का तन ।


आरियाँ चलीं 

पेड़ से कट कर 

डालियाँ रोईं ।


गायब नीर

किसे सुनाए नदी

अपनी पीर ।


               कुछ हाइकु कविताओं में कवि दीपक का प्रेक्षण (ऑब्जर्वेशन) गजब का है। किसी भी रचनाकार की प्रेक्षण की गहरी दृष्टि उसकी रचनाओं में प्राण फूँकने का काम करती है। हर रचनाकार में यह अपने मौलिक ढंग से ही साँस लेती है। इसे हम निम्न हाइकु रचनाओं से समझ सकते हैं-


कित्ते भी गोरे

पर परछाइयाँ

सदैव काली ।


हिसाब नेक 

श्मसान में सबका 

बिस्तर एक


चाँद तनहा

झील की पगडण्डी

चला अकेला ।


फटी पुस्तक

दीमक के पेट में  

ज्ञान के शब्द ।


जली लकड़ी 

अकड़ टूट गई 

राख जो हुई ।


नदी जो सूखी

घोर अवसाद में

हुई लकीर ।


              दीपक जी ने इस संग्रह में एक ही विषय पर कई हाइकु लिखे हैं- एक साथ भी और अलग-अलग भी। ऐसी हाइकु कविताओं में प्रायः रचनाकार की संवेदना की बहुस्तरीय अभिव्यक्तियाॅं मुखरित होती देखी जा सकती हैं। इसे हम रावण पर केन्द्रित निम्न रचनाओं के उदाहरण से समझ सकेंगे-


काश जलता

बुराई का रावण

पुतले संग ।


पुतला जला

भीतर का रावण

मुस्करा रहा ।


रावण जला

अब अगले साल

फिर जलेगा ।                      


इस सन्दर्भ के सबसे अधिक हाइकु दीपक पर हैं। कुछ उदाहरण अवश्य ही देखने योग्य हैं-



दीपक जला

पर वह तो स्वयं

तम में पला । 


दीप निर्मम

प्रेम करने वाले 

जले पतंग ।


दीया व बाती 

अंधेरे से लड़ने 

बनते साथी । 


प्रीत पुरानी 

दीया और बाती की 

कथा कहानी ।


निशा घनेरी

पर दीपक की लौ 

चीर डालती । 


दीप सम्मुख 

थकी, हारी व झुकी

निविड़ निशा।


  

          दीपक जी ने कुछ शाश्वत सत्यों को भी हाइकु कविताओं के माध्यम व्यक्त करने का प्रयास किया है जो अच्छा बन पड़ा है। कविता का काम ही है कि वह खुरदुरे,अनगढ़ विचारों और भावों और सत्यों को किसी विधा का जामा पहनाकर उन्हें सहज और बोधगम्य बनाए। ताकि वे श्रोताओं-पाठकों के हृदय तक अपनी पैठ बना सकें। सोशल मीडिया के समय में जीवन से जुड़े हुए तमाम सारे सत्य और विचार हमारी आँखों के सामने से नित्य ही आवाजाही करते रहते हैं, पढ़ने तक वे बड़े अच्छे भी लगते हैं।परन्तु उसके बाद वे विस्मृति के गर्त में चले जाते हैं। लेकिन वही सत्य,वही विचार जब किसी साहित्यिक विधा का स्वरूप ग्रहण करते हैं तो उनकी उम्र बढ़ जाती है, उनकी ग्राह्यता में वृद्धि हो जाती है। दीपक जी की हाइकु कविताओं के निम्न उदाहरण कदाचित यही कहते प्रतीत होते हैं -

       

राम की जीत

हर युग में पक्की

बात ये सच्ची।


साँसें गिनना

नहीं होता केवल

जीवन जीना ।


सूरज उगा 

अंधेरे का साम्राज्य 

काँपने लगा ।


दीये तो नहीं

सदियों से जलते

घी और रुई ।


रवि का रथ

हुआ फिर वापस 

साँझ के पथ ।


छोटा दीपक

तिमिर हरण का

बने द्योतक ।


बूँदें टपकीं

निखर गयी मानो

सहसा पृथ्वी ।


                    कहना न होगा कि हाइकु कविता की मशाल जिन कुछ महत्वपूर्ण हाथों में प्रकाशित हो रही है, उनमें प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' का नाम बेहद अहम है। हाइकु के प्रति उनका समर्पण इस विधा के तमाम रचनाकारों के लिए एक संबल भी है और एक उदाहरण भी। उन्होंने हाइकु-सृजन तथा उसके प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। उनके लिए यह कार्य कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न रहा हो, लेकिन उसे उन्होंने पूर्ण निष्ठा के साथ संपन्न किया है। हाइकु कविता के प्रति उनकी निष्ठा और उनका उत्साह निरंतर बढ़ता रहे तथा उनके माध्यम से हाइकु कविता  नये आयाम और नई ऊँचाइयाँ प्राप्त करे, यही कामना है !

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05 सितंबर 2021

‘गोविन्दम' 1512, कारनेशन-2,

गौड़ सौन्दर्यम् अपार्टमेंट, ग्रेटर नोएडा वेस्ट,

गौतम बुद्ध नगर ( उत्तर प्रदेश ), पिन कोड-201318

मो.-9968296694

kamlesh59@gmail.com

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